पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार की गैरकानूनी गतिविधियों को यह कहते हुए पहला बड़ा झटका दिया कि इंटरनेट की आजादी एक मौलिक अधिकार है।
उन्होंने दावा किया कि मोदी-शाह के लिए दोहरा झटका है कि विरोध को धारा 144 लगाकर नहीं दबाया जा सकता। उन्होंने कहा कि मोदी जी को याद दिलाया गया है कि राष्ट्र उनके सामने नहीं, संविधान के सामने झुकता है।
फैसला ऐतिहासिक, इस बार किसी दबाव में नहीं आया उच्चतम न्यायालय: आजाद
वहीं गुलाम नबी आजाद ने उच्चतम न्यायालय के आदेश की सराहना करते हुए शुक्रवार को कहा कि सरकार ने लोगों को गुमराह करने की कोशिश की थी और इस बार शीर्ष अदालत किसी दबाव में नहीं आई। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष आजाद ने कहा, ‘हम फैसले का स्वागत करते हैं। यह पहली बार है कि उचचतम न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर के लोगों की दिल की बात कही है। उसने लोगों की नब्ज पकड़ ली है। मैं ऐतिहासिक निर्णय के लिए उच्चतम न्यायालय का धन्यवाद करना चाहता हूं। पूरे देश खासकर जम्मू-कश्मीर के लोग इसके लिए इंतजार कर रहे थे।’ उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने पूरे देश को गुमराह किसा। इस बार उच्चतम न्यायालय किसी दबाव में नहीं आई।मलिक गोवा के राज्यपाल पद से इस्तीफा दें: चिदंबरम
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम के मुताबिक उच्चतम न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर में लगाए गए प्रतिबंधों को लेकर केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन के असंवैधानिक, अहंकारी रुख से पीछे हटने को कहा है। चिदंबरम ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में योजना बनाने और उसका क्रियान्वयन करवाने वाली टीम को बदला जाए। साथ ही जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक को जिम्मेदारी लेनी चाहिए और गोवा के राज्यपाल के पद से इस्तीफा देना चाहिए।फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा है कि जम्मू कश्मीर सरकार एक सप्ताह के भीतर सभी प्रतिबंधात्मक आदेशों की समीक्षा करे। कोर्ट ने प्रशासन से अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों जैसी आवश्यक सेवाएं प्रदान करने वाली सभी संस्थाओं में इंटरनेट सेवाओं को बहाल करने के लिए कहा। साथ ही जम्मू-कश्मीर प्रशासन से प्रतिबंध लगाने के सभी आदेशों की एक हफ्ते में समीक्षा करने और उन्हें सार्वजनिक करने के लिए कहा।सुप्रीम कोर्ट ने कहा, किसी विचार को दबाने के लिए धारा 144 सीआरपीसी (निषेधाज्ञा) का इस्तेमाल उपकरण के तौर पर नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कश्मीर में बहुत हिंसा हुई है। हम सुरक्षा के मुद्दे के साथ मानवाधिकारों और स्वतंत्रता को संतुलित करने की पूरी कोशिश करेंगे। इंटरनेट पर एक समयसीमा तक ही रोक लगना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि यह कोई संदेह नहीं है कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में बोलने की स्वतंत्रता अनिवार्य तत्व है। इंटरनेट का उपयोग करने का अधिकार अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत एक मौलिक अधिकार है।
न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने इन प्रतिबंधों को चुनौती देने वाली गुलाम नबी आजाद और अन्य की याचिकाओं पर पिछले साल 27 नवंबर को सुनवाई पूरी की थी।
केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान समाप्त करने के बाद वहां लगाए गए प्रतिबंधों को 21 नवंबर को सही ठहराया था। केंद्र ने न्यायालय में कहा था कि सरकार के एहतियाती उपायों की वजह से ही राज्य में किसी व्यक्ति की न तो जान गई और न ही एक भी गोली चलानी पड़ी।