वोट बैंक के लिए एक बार और सरकार ने खेल गेम सवर्ण आरक्षण का

कानूनी स्थिति
सुप्रीम कोर्ट दीपा ई वी के मामले में दो साल पहले ही फैसला सुना चुका है कि यदि कोई व्यक्ति एक श्रेणी के तहत आरक्षण का लाभ उठाना चाहता है तो वह दूसरी श्रेणी के तहत लाभ उठाने का दावा नहीं कर सकता। दीपा ने ओबीसी कैटगरी के तहत नौकरी के लिए आवेदन किया था लेकिन उनका चयन नहीं हो सका। तब उन्होंने अदालत से अपील की उनका चयन सामान्य वर्ग के तहत हो रहा है। उन्हें इसकी अनुमति दी जाए। लेकिन अदालत ने यह कहते हुए साफ इंकार कर दिया कि वे उम्र में ओबीसी वर्ग के तहत रियायत ली और इंटरव्यू भी उसी वर्ग के तहत दिया। इसलिए वे सामान्य वर्ग के लिए चयन की पात्र नहीं हैं।
कानूनी खामियां
संविधान विशेषज्ञ संजय पारेख कहते हैं कि यह कानून यदि बन भी गया तो ज्यूडीशियल स्क्रूटनी (अदालत की जांच) में खरा नहीं उतर पाएगा। 95 प्रतिशत ग़रीब जनता के लिए 60 प्रतिशत आरक्षण और पांच प्रतिशत अमीरों के लिए 40 प्रतिशत पद, न तो अदालत मानेगी और न ही संविधान निर्माताओं के बनाए मानकों पर।
बहुत विसंगतियां
आम आदमी पार्टी सांसद संजय सिंह कहते सरकार हड़बड़ी में जो बिल लाई है वह बहुत विसंगतियों से भरा है। इससे ग़रीबों को लाभ के बजाए हानि ज्यादा होगी। सामाजिक समरसता खत्म होगी सो अलग। यह मोदी सरकार का केवल अमीरों को फायदा पहुँचाने का प्रयास है। केवल चुनाव में लोगों को गुमराह करने के लिए यह कानून बनाया जा रहा है।