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शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

चुनावी समीकरण में बड़ा और सीधा फर्क डालते हैं ‘Floating Voters’, कम अंतर से जीत-हार में प्रमुख किरदार

चुनावी समीकरण में बड़ा और सीधा फर्क डालते हैं ‘Floating Voters’, कम अंतर से जीत-हार में प्रमुख किरदार


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मतदाताओं की कतारें 

खास बातें

जानें कौन होते हैं फ्लोटिंग वोटर
वोट किसे देना है, यह तय करने में अंतिम समय तक अनिर्णय की स्थिति में रहने वाले मतदाता इस श्रेणी में आते हैं। इनके लिए पार्टी या विचारधारा अहम नहीं। जिस पार्टी के प्रचार से प्रभावित हो जाएं या जिसे जीतता हुआ आंक लें, उधर चले जाते हैं। पार्टी की लीडरशिप या प्रत्याशी से प्रभावित होकर उसके साथ जा सकते हैं।आसपास के प्रभावशाली लोग जिधर जाते हैं, ये भी वही राह अपना सकते हैं।  
लोकसभा चुनाव में हार को जीत में बदलने में ‘फ्लोटिंग वोटर’ अहम भूमिका निभा सकते हैं। कम अंतर यानी 3 से 5 फीसदी फ्लोटिंग वोटर नतीजे में बड़ा बदलाव कर सकते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी में आधा दर्जन सीटें ऐसी थीं, जिसे भाजपा पांच प्रतिशत से कम वोटों के अंतर जीती थीं।  इसी तरह 10 सीटें ऐसी थीं जहां जीत-हार का अंतर 10 प्रतिशत से कम था। विश्लेषक तो पहली बार के वोटर से लेकर निजी लाभ-हानि और सरकारों के परफार्मेंस का मूल्यांकन कर मत देने वालों को भी इसी वर्ग में गिन रहे हैं। ऐसे मतदाताओं की तादाद लगातार बदल रही है और राजनीतिशास्त्री इसे राजनीति के लिए बेहतर संकेत मानते हैं।

बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के समाजशास्त्री डॉ. विवेकानंद नायक कहते हैं, यूपी की सियासत जाति पर केंद्रित नजर आती है। मगर, फर्स्ट टाइम वोटर के पैमाने अलग हैं। यह व्यक्ति विशेष की ओर जा सकता है। 

प्रत्याशी यदि फिल्मी दुनिया से है या उसे कोई दूसरा प्रत्याशी पसंद आ गया तो वह परिवार से अलग अपना वोट दे सकता है। वे कहते हैं- पिछली बार फर्स्ट टाइम वोटर का झुकाव नरेंद्र मोदी की ओर था। इसके अलावा एक ऐसा वर्ग भी है, जो जिसे जीतते देखता है, उसके साथ हो जाता है। ऐसे लोग भी हैं जो तात्कालिक लाभ-हानि देखकर वोट करते हैं।

राजनीतिशास्त्री प्रो. एसके द्विवेदी फ्लोटिंग वोटर को नए नजरिए से देखते हैं। कहते हैं, कुछ लोग ऐसे हैं जो जिस दल से जुड़े हैं, वह गलत-सही कुछ भी करे, वोट उसी को देते हैं। मगर, अब ऐसे मतदाता बढ़ रहे हैं, जो किसी दल की छाप लेकर नहीं चलते। 

वह अपने जीवन को सहज-सरल बनाने वाले काम देखता है। परफॉर्मेंस पर कसता है, फिर वोट करता है। कुछ साल पहले तक सपा पिछड़ों की,  बसपा दलितों की व भाजपा अगड़ों की पार्टी कही जाती थी। 

यूपी में कांग्रेस का कई सालों से आधार नहीं रहा। मगर, अब कहा जाने लगा कि सपा का आधार वोट यादव है और बसपा का जाटव। पिछड़े व अनुसूचित जाति के अन्य वर्ग अपने हिसाब से वोट करने लगे। वे खूंटा बनकर नहीं रहना चाहते। यह अच्छा संकेत है।

फर्स्ट टाइम वोटर पर ज्यादा जोर

पीएम मोदी ने पिछले लोकसभा चुनाव में भी फर्स्ट टाइम वोटर को अपने अभियान के केंद्र में रखा था और इस चुनाव में भी वे यही अपील कर रहे हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सपा मुखिया अखिलेश यादव युवाओं को जोड़ने पर लगातार फोकस कर रहे हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने युवाओं को पार्टी की ओर आकृष्ट करने के लिए अपने युवा भतीजे आकाश आनंद को साथ-साथ मंच पर ले जाना और आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है। 

लुभावने वादे फ्लोटिंग वोटर को करते हैं प्रभावित
विश्लेषक बताते हैं कि फ्लोटिंग वोटर को लुभावने वादे अधिक प्रभावित करते हैं। ऐसे वादे जो सीधे उन्हें लाभ पहुंचाए। भाजपा का किसानों को नकद भुगतान, कांग्रेस का ‘न्याय’ का वादा भी ऐसी ही श्रेणी में आते हैं। मायावती नौकरी देने की बात कर रही हैं। अखिलेश यादव रोजगार देने की बात कर रहे हैं।

यूपी में कैसे असर डाल सकते हैं फ्लोटिंग वोटर

पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा व अपना दल ने मिलकर 43.30 प्रतिशत वोट हासिल किए और 80 में से 73 सीटें जीत ली थीं। सपा 22.20 प्रतिशत वोट लेकर पांच सीटें और बसपा 19.60 प्रतिशत वोट हासिल करने के बावजूद एक सीट भी नहीं जीत पाई थी।

2019 में सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन है। 2014 के इनके वोट शेयर काे जोड़ें तो यह 42.32 % हो जाता है, यह एनडीए से एक प्रतिशत कम है।2-3 प्रतिशत फ्लोटिंग वोटर जहां-जैसी भूमिका निभाएगा, नतीजों में फर्क ला सकता है।

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