India के आधे से ज्यादा जंगलों पर आखिर क्यों मंडरा रहा है आग का खतरा
प्रतीकात्मक तस्वीर
भारत में पेड़ों की कम होती संख्या और प्राकृतिक आपदाएं काफी समय से जानमाल के लिए खतरा बने हुए हैं। लेकिन इसके साथ ही एक अन्य समस्या जंगलों में लगने वाली आग भी है। इस आग से ना केवल जंगलों को नुकसान होता है बल्कि उसके आसपास स्थित घरों तक भी आग पहुंच जाती है। द फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार भारत के 49 फीसदी जंगलों पर आगजनी का खतरा है। भारत में जंगलों में आगजनी की समस्या उत्तराखंड से लेकर महाराष्ट्र तक है। द फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के मुताबिक देश में जंगलों में आगजनी की घटनाएं हर साल तेजी से बढ़ती जा रही हैं।
ग्लोबल फॉरेस्ट द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत में आगजनी की घटनाओं में बीते 16 सालों (2003-2017) में 46 फीसदी की वृद्धि हुई है। ये घटनाएं महज दो साल (2015 से 2017) में 15,937 से बढ़कर 35,888 हो गई हैं।
साल 2017 में जंगलों में आग लगने की सबसे ज्यादा घटनाएं मध्यप्रदेश (4,781), ओडिशा में (4,416) और छत्तीसगढ़ में (4,373) हुईं।
33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 23 में जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ी है। पंजाब में ये घटनाएं सबसे अधिक बढ़ी हैं। ये समस्या हरियाणा और राजस्थान में भी तीन से चार गुना तक बढ़ी है।
इंडियन स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (आरएफए) की 2015 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार भारत के 64.29 फीसदी जंगल के इलाके में आग लगने का खतरा है।
डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट में कहा गया है कि जंगलों में लगने वाली आग के चलते भारत में हर साल 550 करोड़ रुपये खर्च हो जाते हैं। दिसंबर, 2017 में फॉरेस्ट मैनेजमेंट स्कीम की समीक्षा करने के बाद उसकी जगह फॉरेस्ट फायर प्रिवेंशन एंड मैनेजमेंट स्कीम को रखा गया।
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अगस्त, 2017 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से जंगल की आग को रोकने और नियंत्रित करने के लिए एक राष्ट्रीय नीति विकसित करने को कहा था।
एनजीटी ने साथ ही राज्य सरकारों से जंगलों की आग की रोकथाम और नियंत्रण के लिए वन अग्नि प्रबंधन योजना तैयार करने और इसे लागू करने के लिए भी कहा था। इस मामले में नवंबर 2017 में ड्राफ्ट सौंपने को भी कहा गया, लेकिन इसपर कुछ काम नहीं हुआ।
जिसके बाद 14 अप्रैल, 2018 में एनजीटी की प्रमुख पीठ ने मंत्रालय को दो सप्ताह के भीतर जंगल की आग पर एक राष्ट्रीय नीति को अंतिम रूप देने का निर्देश दिया। बावजूद इसके इन घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है।
क्या है कारण?
द फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार आगजनी की 90 फीसदी घटनाएं मानवीय गलती के कारण होती हैं। इसका शिकार हर साल 30.7 लाख हेक्टेयर जंगल होते हैं। ये समस्या उत्तराखंड, हिमाचल और घाटी के जंगलों में राष्ट्रीय चिंता का विषय बनी हुई है। वन विभाग की ओर जारी आंकड़े बताते हैं कि देश का 19.27 फीसदी हिस्सा ही जंगलों के हिस्से में आता है।
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क्या है बाकी देशों का हाल?
ये समस्या केवल भारत में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी बनी हुई है। चीन के बड़े भूभाग में जंगलों का आधिपत्य है। दक्षिण-पश्चिम चीन के दूरदराज के पहाड़ों के आसपास लंबे समय से जंगलों में आग धधक रही है।
आग को बुझाने के काम में कई दमकल कर्मियों की मौत हो चुकी है। इस काम में अरबों का नुकसान भी हुआ है। यहां बीते साल की तुलना में ये समस्या और भी बढ़ी है। इन घटनाओं में कई लोग लापता भी हुए हैं।
दक्षिण कोरिया में भी ये एक विकट समस्या बनी हुई है। यहां जंगलों में लगने वाली आग उत्तर पूर्व तट के पांच शहरों तक पहुंच गई है। यहां काउंटी के जंगल का बड़ा हिस्सा भी इसकी चपेट में आ चुका है। यहां की सरकार ने इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया है। यहां आग लगने से कई लोग झुलस भी चुके हैं।
ये समस्या अमेरिका के कैलिफोर्निया और ग्रीस के एथेंस जैसे शहरों में भी है। बीते साल नवंबर माह में कैलिफोर्निया के जंगलों में लगी आग से 76 लोगों की मौत हो गई थी और 600 लोग लापता हो गए थे। इस बीच प्रांत की करीब 12 हजार इमारतें पूरी तरह जलकर राख हो गईं और पूरा पैराडाइज शहर अपनी पहचान खो चुका था।
जंगलों के मामले में क्या है भारत की स्थिति?
विकास के नाम पर आए दिन जंगलों को साफ कर वहां नई परियोजनाओं पर कार्य हो रहा है। जितनी मात्रा में पेड़ों को काटा जाता है, उतनी मात्रा में नए पेड़ नहीं लगाए जाते।
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हो रहा गंभीर नुकसान
पेड़ों के कम होने से गहराते खतरे के बारे में बताते हुए येल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ फॉरेस्ट्री एंड एन्वायरमेंटल स्टडीज में रिसर्चर थॉमस क्राउथर का कहना है, "धरती पर पेड़ों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। इसका हम नतीजा देख रहे हैं। बारिश के मौसम में तेज गर्मी, गर्मी के मौसम में तेज ठंड और ठंड के मौसम में बारिश का सामना बीते एक से ही किया जा रहा है।"
विकास के नाम पर तबाह हो रहे जंगल
थॉमस क्राउथर का कहना है कि विकास के नाम पर जंगलों का सफाया किया जा रहा है। एक समय ऐसा भी था जब पूरी तरह यूरोप जंगलों से ढंका हुआ था। लेकिन आज हर जगह खेत और घास के मैदान दिखाई देते हैं। इस वक्त दुनिया में हर व्यक्ति के हिस्से में करीब 422 पेड़ हैं। लेकिन जंगलों की आग से इनपर भी खतरा बना हुआ है।
पेड़ों की ताजा संख्या बेशक अधिक हो लेकिन हर साल इन्हें काटा जा रहा है। आए दिन इनमें आग लगने की घटनाएं सामने आती हैं। इमारती लकड़ी के लिए ही हर साल 10 अरब पेड़ कट रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि धरती से करीब आधे से अधिक पेड़ नष्ट हो चुके हैं।
आपके लिए- पेड़ों की कम होती संख्या से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। पूरे विश्व को इससे गंभीर परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं। लेकिन बावजूद इसके पेड़ों को विकास के नाम पर काटा जा रहा है, इसके अलावा जंगलों की आग से भी पेड़ों को नुकसान हो रहा है। कई योजनाएं शुरू किए जाने के बावजूद भी इस ओर प्रगति बेहद कम दिख रही है।