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सोमवार, 20 मई 2019

कई प्रत्याशियों की जमानत हो सकती है जब्त,यहां कम मतदान से उड़ी राजनीतिक दलों की नींद

कई प्रत्याशियों की जमानत हो सकती है जब्त,यहां कम मतदान से उड़ी राजनीतिक दलों की नींद


आगरा उत्तर विधानसभा के मतदाता
आगरा उत्तर विधानसभा के मतदाता - फोटो : bharat rajneeti
आगरा उत्तर विधानसभा सीट पर कम वोट पड़ने से सिर्फ भाजपा की नहीं, अन्य दलों की नींद उड़ गई है। उपचुनाव में मतदान का आंकड़ा 39.45 फीसदी में ही सिमट कर रह गया, जो वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले 18.95 फीसद कम है। वहीं, 18 अप्रैल को आगरा लोकसभा सीट के लिए हुए मतदान के दौरान इस विधानसभा क्षेत्र में 56.25 फीसदी मतदान हुआ था। कारण यह है कि वैश्यों की तरह दलित और मुस्लिम वोटर भी कम निकले हैं। इन हालात में नतीजा कुछ भी हो सकता है। हालांकि भाजपाइयों के चेहरे कुछ ज्यादा खिले हैं। उन्हें लग रहा है कि दूसरों का वोट कम पड़ने से जीत पक्की है। सपाइयों को लग रहा है कि बूथ नहीं पहुंचे वोटर भाजपा के हैं।

2017 का नतीजा सबके सामने है। जगन प्रसाद गर्ग 80 हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे। तब वोट पड़े थे 58.4 फीसदी। अब 40 से कम पड़े हैं यानी लगभग 19 फीसदी मतदान कम हुआ। इन्हें वोटों में बदलें तो लगभग 75 हजार वोटर कम पहुंचे वोट डालने। इन 75 हजार पर ही सारा गणित लगाया जा रहा है।

प्रत्याशी लगा रहे अपना अपना गणित

भाजपा नेता कह रहे हैं कि जितने वोट वैश्य समाज के कम पड़े हैं, उतने ही दलित और मुस्लिम भी कम निकले हैं। जितना नुकसान इधर है, उतना ही उधर है तो नतीजा तो वही रहेगा जो 2017 और इससे पहले रहा। जगन प्रसाद गर्ग पांच बार विधायक रहे।

सपाइयों का गणित कुछ अलग है। उनका कहना है कि भाजपा के वोट घटे हैं। गठबंधन होने से सपा के वोट बढ़े हैं। कांग्रेस कहीं मुकाबले में ही नजर नहीं आई। जैसे लोकसभा चुनाव में रंग फीका रहा। वैसे ही उत्तर में भी जम नहीं पाया। हालांकि किसे कितने वोट मिले, नतीजा 23 मई को सबके सामने होगा।

27 हजार वोटों पर बचेगी जमानत

उत्तर में कुल 12 उम्मीदवार हैं। राजनीति के जानकारों का कहना है कि दो को छोड़कर सभी की जमानत जब्त हो सकती है। लगभग 1.60 लाख वोट पड़े हैं। जमानत बचाने के लिए इनका छठा हिस्सा यानी 27 हजार वोट चाहिए।

गठबंधन के फायदे हैं तो नुकसान भी हैं। आवास विकास और बोदला में कई वोटर ईवीएम में हाथी ढूंढते नजर आए। उनका कहना था कि हाथी वाला बटन तो है ही नहीं। माना जा रहा है कि गठबंधन से बसपा का उम्मीदवार न होने के कारण बसपा समर्थक वोटरों में उत्साह कम रहा।

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