नड्डा ने कहा- देश चाहता था श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु की जांच हो, लेकिन नेहरू ने नकारा - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

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रविवार, 23 जून 2019

नड्डा ने कहा- देश चाहता था श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु की जांच हो, लेकिन नेहरू ने नकारा

नड्डा ने कहा- देश चाहता था श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु की जांच हो, लेकिन नेहरू ने नकारा

Bharat Rajneeti
श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि देते अमित शाह और जेपी नड्डा - फोटो : Bharat Rajneeti
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा और पार्टी के अन्य कार्यकर्ताओं ने रविवार को जनसंघ के संस्थापक डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि दी। जेपी नड्डा ने कहा, 'पूरे देश ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत की जांच कराने की मांग की थी लेकिन पंडित नेहरू ने जांच का आदेश नहीं दिया। इतिहास इसका गवाह है। डॉक्टर मुखर्जी का बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाएगा। भाजपा इसे लेकर प्रतिबद्ध है।'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर ट्विट करते हुए लिखा, 'मुखर्जी को उनके बलिदान दिवस पर याद कर रहा हूं। एक देशभक्त और राष्ट्रभक्त डॉक्टर मुखर्जी ने अपनी जिंदगी भारत की एकता और अखंडता को समर्पित कर दी थी। एक मजबूत और एकजुट भारत के लिए उनका जुनून हमें प्रेरित करता है और हमें 130 करोड़ भारतीयों की सेवा करने की ताकत देता है।'

डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म छह जुलाई 1901 को कलकत्ता के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी शिक्षाविद् के रूप में मशहूर थे। 1917 में उन्होंने मैट्रिक और 1921 में बीए की उपाधि हासिल की थी। 1923 में कानून की डिग्री लेने के बाद वह विदेश चले गए थे और 1926 में इंग्लैंड से बैरिस्टर बनकर भारत वापस लौटे। उन्होंने जिस तरह छोटी सी उम्र में शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की उसी तरह केवल 33 साल की उम्र में कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। वह इस पद पर नियुक्त होने वाले सबसे उम्र के शख्स थे। 

22 साल की उम्र में सुधादेवी से उनकी शादी हो गई थी। उनकी दो बेटियां और दो बेटे थे। साल 1939 में राजनीति में हिस्सा लिया और फिर इसी में लगे रहे। उन्होंने गांधी और कांग्रेस की नीतियों का विरोध किया। उन्हें एक देश के दो झंडे स्वीकार्य नहीं थे इसलिए कश्मीर का भारत में विलय करने की कोशिशें की। 1947 में स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में उन्होंने एक गैर-कांग्रेसी मंत्री के तौर पर वित्त मंत्रालय का काम संभाला। हालांकि बाद में पद से इस्तीफा दे दिया था।

मुखर्जी कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान था। वह धारा 370 के प्रखर विरोधी थे और उन्होंने इसे खत्म करने की पुरजोर वकालत भी की। 1952 में एक रैली के दौरान उन्होंने कश्मीर के लोगों से कहा था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान दिलाउंगा या फिर इसके लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा। अपने संकल्प के लिए वह 1953 में बिना परमिट लिए जम्मू-कश्मीर चले गए। यहां उन्हें गिरफ्तार करके नजरबंद कर लिया गया। 23 जुलाई 1953 को यहीं उनका निधन हो गया।

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