उम्र सीमा में ली छूट तो सामान्य श्रेणी में दावा नहीं कर सकते आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थीः सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा है आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी, जिन्होंने उम्र सीमा में छूट का लाभ लिया हो वह मेरिट लिस्ट में अधिक अंक प्राप्त करने के आधार पर सामान्य श्रेणी में शामिल करने का दावा नहीं कर सकता। न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि आरक्षित वर्ग के लोगों को छूट या प्राथमिकता संबंधी नीति बनाना पूरी तरह से राज्य सरकार की स्वेच्छा पर निर्भर है।
पीठ ने कहा कि आरक्षण एक समर्थ बनाने वाले प्रावधान है। आरक्षण किस तरीके से दिया जाए इस संबंध में राज्य सरकार समय-समय पर आदेश पारित करती है। वास्तव में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह प्रश्न था कि आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी अगर प्रारंभिक परीक्षा में उम्र सीमा में छूट का लाभ लेता है तो क्या वह फाइनल मेरिट में सामान्य श्रेणी में शामिल होने का दावा कर सकता है?
याचिकाकर्ता नीरव कुमार दिलीप भाई मकवाना का कहना था कि आरक्षित वर्ग का होने के नाते उसने प्रारंभिक परीक्षा में उम्र में छूट का लाभ लिया था। उसका कहना था कि प्रारंभिक और फाइनल परीक्षा अलग-अलग है। ऐसे में मेरिट लिस्ट में अधिक अंक प्राप्त करने पर उसे सामान्य श्रेणी में शामिल किया जाना चाहिए। लेकिन पीठ ने इस दलील को नकारते हुए कहा कि प्रारंभिक परीक्षा और फाइनल परीक्षा को अलग-अलग समझना, पूरी तरह से गलत है।
कोर्ट ने कहा है कि संविधान का अनुच्छेद-16(4) राज्य सरकार को पिछले वर्ग के लोगों को नौकरी में आरक्षण देने को लेकर प्रावधान बनाने का अधिकार देता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पाया कि गुजरात सरकार ने साफ कर दिया था कि अनुचित जाति-अनुसूचित जनजाति और आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के अभ्यर्थी अगर उम्र सीमा, शैक्षणिक योग्यता, परीक्षा में बैठने की संख्या सीमा में छूट का लाभ लेता है तो उन अभ्यर्थियों को आरक्षित पदों के लिए ही विचार किया जाएगा। उन्हें सामान्य श्रेणी में नहीं शामिल किया जा सकता।