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शुक्रवार, 26 अगस्त 2022
कान्हा के ब्रज के कायाकल्प में खर्च होंगे 16000 करोड़
-9000 करोड़ रुपये से संवरेगा 84 कोसीय परिक्रमा मार्ग
-6100 करोड़ की मथुरा-वृंदावन बाईपास परियोजना भी मंजूर
लखनऊ, 26 अगस्त (हि.स.)। सनातन संस्कृति में ब्रज की 84 कोसीय परिक्रमा को मोक्षदायिनी माना जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार यह विश्वास किया जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने मैया यशोदा और नंदबाबा के दर्शनों के लिए सभी तीर्थों को ब्रज में ही बुला लिया था। 84 कोस की परिक्रमा लगाने से 84 लाख योनियों से छुटकारा मिलता है। सरकार 84 कोसी परिक्रमा की इस शास्त्रीय जन आस्था को नवाकार देने और श्रद्धालुओं के लिए सुविधा बढ़ाने में जुटी हुई है। ब्रज का परिक्रमा मार्ग शानदार इंफ्रास्ट्रक्चर की नजीर बनने जा रहा है।
सरकार की मंशा के अनुरूप भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) द्वारा राधा-कृष्ण की लीला स्थली में 84 कोसीय परिक्रमा मार्ग के विकास की योजना स्वीकृत की गई है। इसका डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) बनाने का कार्य प्रगति पर है। योजना की अनुमानित लागत 9000 करोड़ रुपये है। इसी तरह भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण द्वारा मथुरा-वृंदावन बाईपास परियोजना को भी मंजूरी प्रदान की गई है। इसका भी डीपीआर बनाने का कार्य प्रगति पर है। योजना की अनुमानित लागत करीब 6100 करोड़ रुपये है ।
850 करोड़ की लागत से रेल से मथुरा-वृंदावन को जोड़ने की तैयारी
देश-विदेश के श्रद्धालुओं की सहूलियत के लिए मथुरा से वृंदावन को जोड़ने वाली 12.8 किमी रेल लाइन का पुनर्विकास किया जाना भी प्रस्तावित है। इसकी अनुमानित लागत 850 करोड़ रुपये है। रेल लैण्ड डेवलपमेंट अथॉरिटी द्वारा प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार की जा चुकी है।
एक-एक कदम पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलने की मान्यता
मान्यता है कि ब्रज भूमि पर परिक्रमा लगाने से एक-एक कदम पर जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। सनातनी शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि इस परिक्रमा के करने वालों को एक-एक कदम पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। साथ ही जो व्यक्ति इस परिक्रमा को लगाता है, उस व्यक्ति को निश्चित ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके महात्म्य का वर्णन वेदों एवं पुराणों में भी मिलता है। गर्ग संहिता में यह आख्यान मिलता है कि यशोदा मैया और नंदबाबा ने एक बार भगवान श्रीकृष्ण से चार धाम की यात्रा की इच्छा जाहिर की। उनकी अधिक हो चुकी आयु के कारण प्रभु ने सभी तीर्थों व चारों धामों का आह्वान कर उन्हें ब्रज के 84 कोस की भूमि के दायरे में प्रतिष्ठित कर दिया। मैया यशोदा और नंदबाबा ने 84 कोसीय परिक्रमा कर आत्मीय संतुष्टि को प्राप्त किया। तभी से ब्रज में 84 कोस की परिक्रमा की शुरुआत मानी जाती है। करीब 268 किलोमीटर की यह परिक्रमा उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान एवं हरियाणा से होकर गुजरती है। वाराह पुराण के अनुसार धरती के 66 अरब तीर्थ चातुर्मास में ब्रज क्षेत्र में निवास करते हैं। लिहाजा इसकी परिक्रमा करने वालों को 84 लाख योनियों से मुक्ति मिल जाती है।
हिन्दुस्थान समाचार/ दिलीप शुक्ल
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