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शुक्रवार, 26 अगस्त 2022
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BHU के वैज्ञानिकों ने त्रिपुरा में ऑक्सीजनिकरण के लिए जिम्मेदार नए सायनोबैक्टीरिया को खोजा
BHU के वैज्ञानिकों ने त्रिपुरा में ऑक्सीजनिकरण के लिए जिम्मेदार नए सायनोबैक्टीरिया को खोजा
वाराणसी। वैश्विक जलवायु परिवर्तन दुनियाभर में जैव विविधता को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक जैव विविधता की पहचान और संरक्षण के लिए समर्पित प्रयास नहीं किए जाते, मानव जाति के समक्ष ऐसी स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है, जहां जीवों के कई प्रकार गुमनामी में ही हमेशा के लिए विलुप्त हो सकते हैं। सायनोबैक्टीरिया (नील हरित शैवाल) लगभग उन सभी पारिस्थितिक तंत्रों के महत्वपूर्ण घटक हैं जहां जीवन की कल्पना की जा सकती है। सरल शब्दों में, सायनोबैक्टीरिया वे जीव हैं जो पृथ्वी के ऑक्सीजनिकरण के लिए जिम्मेदार हैं।
सायनोबैक्टीरिया और उनके विविध रूपों के बारे में अधिक जानकारी जुटाने के लिए वैश्विक स्तर पर गहन अध्ययन चल रहे हैं। इसी दिशा में (Taxonomy के क्षेत्र में) एक विशेष सफलता हासिल करते हुए, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पूर्वाेत्तर राज्य त्रिपुरा से सायनोबैक्टीरिया के एक नए जीनस की पहचान की और उसके बारे में जानकारी जुटाई है। बीएचयू के वनस्पति विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन के दौरान यह खोज आधुनिक पॉलीफेसिक दृष्टिकोण (Polyphasic approach) का उपयोग करके की गई है। सायनोबैक्टीरिया या अन्य जीवों की पहचान करने में पॉलीफैसिक दृष्टिकोण अन्य दृष्टिकोणों (approaches) की तुलना में अधिक सटीकता और विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराने में अहम है। यह अध्ययन 2020 में त्रिपुरा की मूल निवासी सागरिका पाल द्वारा शुरू किया गया था। सागरिका काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रशांत सिंह के मार्गदर्शन में पीएचडी कर रही हैं।
जॉन कैरोल विश्वविद्यालय अमेरिका, के जाने-माने फाइकोलॉजिस्ट प्रो. जेफरी आर. जोहानसन के सम्मान में इस नए जीनस का नाम ‘जोहानसेनिएला’ रखा गया है। जबकि प्रजाति का नाम ‘त्रिपुरेंसिस’, त्रिपुरा राज्य की वजह से दिया गया है, जहां इस शैवाल के नमूने लिये गए थे।
भारत का पूर्वाेत्तर क्षेत्र वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट के रूप में जाना जाता है और दुर्लभ वनस्पतियों और जीवों के भण्डार के रूप में प्रख्यात है। पूर्वाेत्तर क्षेत्र में जैव विविधता के विभिन्न रूपों पर कई टैक्सोनॉमिक अध्ययन किए जाने के बावजूद, आधुनिक दृष्टिकोणों (modern approaches) का उपयोग करते हुए चुनिंदा सायनोबैक्टीरियल टैक्सोनॉमिक अध्ययन ही हुए हैं। ख़ास बात यह है कि जोहानसेनिएला त्रिपुरेंसिस इस क्षेत्र से खोजे गए एक नए सायनोबैक्टीरियल जीनस की पहली रिपोर्ट है। यह भारत में इस तरह के जेनेरा के गिनेचुने निष्कर्षों में से एक है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इस वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट में बड़ी संख्या में ऐसे सायनोबैक्टीरिया हो सकते हैं, जिनका पता नहीं चल पाया है और इसलिए, यह अध्ययन शोधकर्ताओं को सायनोबैक्टीरिया की खोज, पहचान और संरक्षण में मदद करने के लिए प्रेरित करने का काम करेगा।
पिछले कुछ वर्षों में डॉ. प्रशांत सिंह के शोध समूह ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों से सायनोबैक्टीरिया की कई नई प्रजातियों का वर्णन किया है। शोध समूह का उद्देश्य अधिक शोधकर्ताओं को जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में काम करने के लिए प्रोत्साहित करना है। इसे वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से व्यापक रूप से खतरा है। शोध दल में अनिकेत सराफ (आरजे कॉलेज, मुंबई), नरेश कुमार (पीएचडी छात्र, बीएचयू) और आरुष सिंह, उत्कर्ष तालुकदार और नीरज कोहर (एमएससी, वनस्पति विज्ञान, बीएचयू) भी शामिल थे।
इस कार्य को विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, (DST-SERB), भारत सरकार, नई दिल्ली की कोर रिसर्च ग्रांट और बीएचयू इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस (IoE) स्कीम के तहत मिले अनुसंधान अनुदान द्वारा वित्त पोषित किया गया था। यह अध्ययन वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित शोध पत्रिका FEMS माइक्रोबायोलॉजी लेटर्स में प्रकाशित हुआ है।
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