वाराणसी। यूनेस्को की सूची में दर्ज और विश्व प्रसिद्धरामनगर की लीला के तीसरे दिन लीला प्रेमियों का जुटान और पारम्पिरिक लीला का अद्भुद दिश्य था। रविवार की लीला में देवताओं के आग्रह पर ही प्रभु श्रीराम ने धरती पर मनुष्य रूप में अवतार लिया। इस अवतार के निहितार्थ सामने आने ही थे। लेकिन राजा दशरथ को कहां पता था कि उनके घर में खुद प्रभु ने अवतार लिया है। तभी तो जब मुनि विश्वामित्र ने राक्षसों से रक्षा के लिए श्रीराम को साथ भेजने के लिए कहा तो राजा दशरथ परेशान से हो उठे। लेकिन श्रीराम तो धरती पर आये ही थे जन कल्याण के लिए। चल दिये विश्वामित्र के साथ। रास्ते में जहां जहां राक्षस मिले उनका संहार कर आगे बढ़ते गए। रामलीला के तीसरे दिन इन्ही प्रसंगों का मंचन किया गया।

रामलीला रविवार को अयोध्या से चल कर जनकपुर पहुंची। तीसरे दिन के प्रसंग के मुताबिक राक्षसों से परेशान मुनि विश्वामित्र संत समाज की रक्षा के लिए राजा दशरथ की शरण में पहुंचते हैं। आवाभगत के बाद वह अपने अयोध्या आने का प्रयोजन बताते हैं। विश्वामित्र दशरथ से उनके दो पुत्रों को अपने लिए मांग बैठते हैं। दशरथ यह सुन परेशान हो जाते और कहते हैं उनके बालक सुकुमार है। राक्षसों से कैसे लड़ेंगे। पहले तो वे इंकार कर देते हैं। बाद में लेकिन गुरु वशिष्ठ के समझाने पर वह राम और लक्ष्मण को उनके साथ भेज देते हैं।

मुनि विश्वामित्र के साथ गए दोनों भाई उनके यज्ञ की रक्षा करते हैं। यज्ञ में विंध्य डालने का प्रयास करने पर ताड़का और सुबाहु को युद्ध में मार गिराते हैं। राक्षसों के मारे जाने पर विश्वामित्र की चिंता दूर हो जाती है। देवता उनकी जय-जयकार करते हैं। रास्ते में एक आश्रम को देखकर दोनों भाई आश्रम और रास्ते में पड़ी शिला के बारे में विश्वामित्र से पूछते हैं। जब उन्हें पता चलता है कि श्राप के कारण गौतम मुनि की पत्नी शिला बन गई तो विश्वामित्र मुनि के कहने पर वह अपने पैर से छू कर उन्हें श्राप से मुक्त कर देते हैं। वह उनके चरणों में गिरकर स्वर्ग लोक चली जाती है। दोनों भाई गंगा दर्शन करने के बाद जनकपुर के समीप पहुंचे तो मुनि विश्वामित्र वहीं रुकने की इच्छा व्यक्त करते हैं। उनके आने की सूचना पाकर राजा जनक भी वहां पहुंच जाते हैं। राम और लक्ष्मण को देखकर मुनि से उनका परिचय पूछते हैं। जब उन्होंने बताया कि वे राजा दशरथ के पुत्र हैं। तो राजा जनक मुनि के साथ राम और लक्ष्मण को अपने साथ जनकपुर ले जाते हैं। वहां उनका हर प्रकार से सेवा सत्कार किया जाता है। मुनि के साथ भोजन कर सभी विश्राम करते हैं। यहीं पर आरती के बाद तीसरे दिन की लीला को विश्राम दिया जाता है।