नई दिल्ली। छह दशक पुराने नागरिकता अधिनियम में संशोधन के लिए लाए गए विवादास्पद विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट दिसंबर में शीतकालीन सत्र में पेश की जाएगी। संयुक्त संसदीय समिति इस विवादित विधेयक की जांच कर रही है।
इस विधेयक का असम एवं पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में जोरदार विरोध हो रहा है। असम में 46 संगठनों ने मंगलवार को 12 घंटे के बंद का आह्वान किया। यह बंद संसद के आगामी सत्र में केंद्र के विधेयक पारित कराने के प्रयास के खिलाफ आयोजित किया गया है।
मेरठ से भाजपा सांसद और बहुदलीय समिति के अध्यक्ष राजेंद्र अग्रवाल ने कहा, 'शीतकालीन सत्र सदन (16वीं लोकसभा) का अंतिम सत्र होगा। यदि हमने अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी तो उसका अर्थ यही होगा कि हमने अपना काम सही तरीके से नहीं किया।
इसके अलवा समिति खत्म भी हो जाएगी।' अग्रवाल ने यह भी कहा कि संसद में रिपोर्ट पेश करने के बारे में फैसला समिति के सदस्य लेंगे। समिति इस बात पर फैसला लेगी कि रिपोर्ट कब सौंपी जाए।
क्या है संशोधन विधेयक मेंलोकसभा में नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन के लिए नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 पेश किया गया था। अन्य बातों के अलावा संशोधन विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को भारत की नागरिकता प्रदान करना शामिल है।
ऐसे लोगों को 12 साल की जगह छह वर्ष भारत में रहने के आधार पर नागरिकता दी जाएगी। भले ही ऐसे लोगों के पास कोई उचित दस्तावेज हो या नहीं।
क्यों हो रहा है पूर्वोत्तर में विरोधपूर्वोत्तर में बड़े पैमाने पर लोग और संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। उनक कहना है कि इससे 1985 के असम समझौते के प्रावधान निष्प्रभावी हो जाएंगे। इस समझौते में सभी गैरकानूनी आव्रजकों को वापस भेजने के लिए 24 मार्च 1971 की तारीख निर्धारित की गई है। ऐसे लोगों का धर्म भले जो भी हो।