बहुचर्चित विधायक महेंद्र सिंह भाटी हत्याकांड में यूपी के बाहुबली नेता डीपी यादव पर शिकंजा कस गया है। मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने डीपी यादव को 16 नवंबर को देहरादून जेल में समर्पण करने को कहा है। डीपी यादव इस हत्याकांड में देहरादून जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। उसने इलाज के लिए जमानत ली थी।
विधायक महेंद्र सिंह भाटी हत्याकांड में डीपी यादव समेत पाल सिंह, करन यादव और प्रनीत भाटी को भी सजा हुई थी। मालूम हो कि महेंद्र सिंह भाटी उस वक्त गाजियाबाद के दादरी क्षेत्र से विधायक थे। अब दादरी का ये इलाका गौतमबुद्धनगर जिले में आता है और ग्रेटर नोएडा से सटा हुआ है। दादरी रेलवे क्रासिंग पर ही 13 सितंबर 1992 को उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में डीपी यादव का काफी दबदबा है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में वह आसानी से जांच प्रभावित कर सकता था। वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही राजनीति भी करता था। लिहाजा वर्ष 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने इस हत्याकांड की जांच देहरादून सीबीआइ को सौंप दी थी।
इस सनसनीखेज हत्याकांड में कुल सात लोगों को आरोपी बनाया गया था। इनमें से तीन लोगों की केस की सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी है। वर्ष 1992 में हुए इस हत्याकांड में उत्तर प्रदेश में राजनीतिक बवंडर खड़ा कर दिया था।
एके-47 से की गई थी हत्या
गाजियाबाद के राजनगर में रहने वाला डीपी यादव चार बार विधायक और दो बार सांसद रह चुका है। 1989 के बाद से वह कई बार उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहा है। 13 सितंबर 1992 को दादरी क्षेत्र के विधायक महेंद्र भाटी और उनके दोस्त उदय प्रकाश आर्या को दादरी रेलवे क्रॉसिंग पर एके-47 से भूनकर हत्या कर दी थी। मामले में चारों आरोपितों में डीपी यादव के अलावा करन यादव, परनीत भट्टी और पाल सिंह ऊर्फ लक्कड़ को सीबीआइ कोर्ट ने उम्र कैद की सजा सुनाई थी। इन्हें आइपीसी की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या की कोशिश), 326 (खतरनाक हथियार से गंभीर चोट) और 120-बी (आपराधिक षणयंत्र) के तहत दोषी पाया गया था।
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डीपी यादव 2004 में भाजपा में शामिल हुआ और राज्यसभा से सांसद बन गया। हालांकि, कुछ दिन बाद ही उसे पार्टी से निकाल दिया गया। वर्ष 2007 में उसने राष्ट्रीय परिवर्तन दल बनाया। 2009 में वह मायावती की बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गया और लोकसभा का चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ा। उसने 2012 में यूपी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बसपा छोड़ दी। उसे उम्मदी थी कि सपा से उसे टिकट मिल जाएगा। सपा में जगह नहीं मिलने के कारण डीपी यादव अपनी पार्टी से चुनाव लड़ा, लेकिन फिर हार गया।
डीपी के खिलाफ 1979 में दर्ज हुई थी पहली एफआइआर
डीपी यादव के खिलाफ पहला आपराधिक मामला 1979 में गाजियाबाद के कविनगर थाने में दर्ज किया गया था। उसके खिलाफ हत्या के नौ, हत्या के प्रयास के तीन, डकैती के दो, अपहरण और फिरौती के कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, मोदीनगर, बुलंदशहर, मुरादाबाद, बदायूं समेत पश्चिमी यूपी के कई जिलों में डीपी यादव के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं।