
सरकार के अंतर्विरोध और सीबीआई की अंदरूनी खींचतान की वजह से आईसीआईसीआई मामले में पूर्व सीईओ चंदा कोचर और अन्य के खिलाफ एफआईआर करीब छह महीने तक दर्ज नहीं हो पाई। इस मामले में 7 दिसंबर 2017 को प्रिलिमनरी इनक्वायरी (पीई) दर्ज हो चुकी थी। लेकिन रोगुलर केस (आरसी) यानि एफआईआर कायम करने में एजेंसी को एक साल से ज्यादा का वक्त लग गया। इसकी वजह सरकार के ही दो धड़ों की विपरीत राय बताई जा रही है।
सूत्रों के मुताबिक एक महीने पहले बीते दिसंबर में केस के आईओ डीजे वाजपेयी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि इस मामले में ऐसे तथ्य नहीं मिल रहे हैं जिसके आधार पर एफआईआर दर्ज की जा सके। सीबीआई में इस मामले से जुड़े अधिकारी ने बताया कि मामले केडीआईजी जसबीर सिंह और एसपी सुधांशु धर मिश्रा ने भी आईओ वाजपेयी की रिपोर्ट पर हामी भर दी थी। लेकिन अंत में कार्यकारी निदेशक एम नागेश्वर राव ने 22 जनवरी को जांच अधिकारियों की रिपोर्ट को दरकिनार करते हुए एफआईआर दर्ज करने का आदेश दे दिया।
सूत्रों के मुताबिक इस एफआईआर में 64 करोड़ के घूस और गड़बड़ियों का अन्य ब्यौरा जिस विस्तार और विश्वास के साथ दर्ज किया गया है उससे नहीं लगता कि पीई की जांच में जांच अधिकारियों के पास ठोस तथ्य नहीं थे। यह एफआईआर एसपी सुधांशु धर मिश्रा ने ही तैयार किया जिनका अगले ही दिन तबादला कर दिया गया। इतना ही नहीं डीआईजी सिंह को भी जांच टीम से हटा दिया गया।
दो राजनीतिक खेमों के बीच थी खींचतान
सूत्रों ने बताया कि यह महज संयोग की बात हो सकती है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली के अमेरिका जाने के बाद ही नागेश्वर राव ने एफआईआर का फैसला लिया। लेकिन सीबीआई अधिकारियों और अफसरशाही हलकों में यह चर्चा है कि आईसीआईसीआई मामले में ठोस कदम उठाने को लेकर दो बड़े राजनीतिक शख्सियत और खेमों की बीच खासी खींचतान थी।
सूत्रों के मुताबिक किसी पीई को एफआईआर में बदलने का पूरा अधिकार अंतत: निदेशक के पास होता है। लेकिन मामले से जुड़े अधिकारी सवाल उठा रहे हैं कि निदेशक ने केस की मेरिट पर एफआईआर दर्ज करने का फैसला लिया या इसके लिए कोई राजनीतिक इशारा था। सूत्रों के मुताबिक यह संयोग की बात नहीं हो सकती कि निदेशक राव के इस फैसले के बाद जेटली जैसे कद्दावर मंत्री ट्वीट पर सीबीआई को संयम बरतने की सलाह देते हैं और अगले दिन एसपी का तबादला कर दिया जाता है।
सूत्रों के अनुसार एफआईआर में केवी कामत समेत बैंकों के छह बड़े अधिकारियों का नाम शामिल करने की वजह से भी राजनीतिक हलकों में खासी नाराजगी है। सूत्रों के मुताबिक पीई दर्ज करने के छह महीने बाद से सीबीआई में पूर्व निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना का बीच घमासान सिरे चढ रहा था। इस वजह से भी इस मामले में कोई फैसला नहीं लिया जा पा रहा था।