SP-BSP के दबाव में विपक्षी दलों ने किया General Category के आरक्षण विधेयक का समर्थन

सपा और बसपा के गठबंधन का असर न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि दूसरे राज्यों में भी पड़ रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर इस गठबंधन के असर की बानगी हाल ही में सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा क्षेत्र में दस फीसदी आरक्षण देने वाले विधेयक के संसद में पारित होते समय दिखी। राज्यसभा में सत्तापक्ष का बहुमत नहीं है और कुछ विपक्षी सांसदों के समर्थन के बिना यह विधेयक पारित नहीं हो सकता था। अधिकतर विपक्षी दल इस विधेयक के गहन परीक्षण के लिए प्रवर समिति के हवाले करने की मांग कर रहे थे। इनमें सबसे मुखर द्रमुक और माकपा थी। द्रमुक सांसद कनिमोझी और माकपा सांसद रंगराजन ने इस आशय का प्रस्ताव भी पेश किया।
तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस सांसदों का एक धड़ा भी बिल को प्रवर समिति को भेजने के पक्ष में था। कपिल सिब्बल ने विधेयक में कई खामियां भी गिनाईं लेकिन सपा नेता रामगोपाल यादव और बसपा सांसद सतीश मिश्र ने समूचे विपक्ष को इस विधेयक का समर्थन करने के लिए मनाया। एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता का कहना था कि सपा-बसपा के नेताओं का तर्क था कि उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा राज्य है और लोकसभा की सबसे अधिक सीटें यहीं हैं। यदि विधेयक प्रवर समिति के भेजा जाता है तो भाजपा विपक्ष पर इसे रोकने का आरोप लगाकर अगड़ी जातियों लुभाती।
वे इस तरह की कोई भी बाधा नहीं चाहते थे। उनका यह भी कहना था कि प्रवर समिति का अध्यक्ष भाजपा का ही होता और वह 31 जनवरी से शुरू हो रहे संसद सत्र से पहले ही अपनी रिपोर्ट दे देता। तब विपक्ष को हर हाल में विधेयक पारित ही कराना पड़ता। इससे बेहतर था कि अभी ही समर्थन कर दिया जाए।
पिछड़े दलित हो सकते हैं नाराज
सपा-बसपा नेताओं का यह भी तर्क था कि इस विधेयक को पारित करने का श्रेय लेने से जितना लाभ भाजपा को मिलेगा, उससे कहीं ज्यादा नुकसान उसे पिछड़े और दलित वर्गों की नाराजगी से होगा। ये वर्ग अब अपने लिए ज्यादा आरक्षण की मांग करने लगे हैं और उसके पूरा न होने की स्थिति में वे भाजपा से नाराज हो सकते हैं। इसी के बाद अधिकतर दलों ने एक राय होकर विधेयक का समर्थन कर दिया।