जनता का विश्वास जीतने की खातिर Kolkata में Drama बना छवि बनाने की लड़ाई

राबर्ट वाड्रा के खिलाफ जमीन घोटाले का मामला है। पी चिदंबरम एयरटेल मेट्रिक्स मामले में जांच का सामना कर रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस से कई मंत्री, पूर्व मंत्री, सांसद और विधायक चिट फंड मामलों में फंसे हैं - कुछ शारदा में तो कुछ रोज वैली में। इनमें से अधिकतर मामलों में अभी भी जांच चल रही है। ये सभी मामले 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार बनने से पहले दर्ज हुए थे।
कांग्रेस अधर में
कांग्रेस की हालत सांप-छछूंदर की है। जिनके खिलाफ उसने भ्रष्टाचार के मुकदमें क़ायम किए अब उन्हीं के बचाव में खड़े होना पड़ रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 203-14 में चिटफंड मामलों में लोगों के करोड़ों रुपये डूबने को लेकर ममता सरकार पर निशाना साधा था। वहीं मल्लिकार्जुन ख़रगे ने कभी आलोक वर्मा की बतौर सीबीआई निदेशक नियुक्ति का विरोध किया था। लेकिन बाद में वे वर्मा को हटाए जाने के खिलाफ खड़े दिखाई दिए।
छवि बनाने की लड़ाई
भाजपा का आरोप है - सभी भ्रष्ट एक साथ मिल गए हैं। विपक्ष का दावे है - राजनीतिक कारणों से उन्हें फँसाया जा रहा है। लाख टके का सवाल है कि लोग किस पर भरोसा करेंगे? इतिहास में उदाहरण हैं। 1989 में पूरा चुनाव बोफ़ोर्स तोपों की खरीद में राजीव गांधी द्वारा घूस लेने के आरोपों पर लड़ा गया। लोगों ने आरोपों पर विश्वास किया और वे हार गए। लेकिन 30 साल बाद भी आरोपों की पुष्टि नहीं हो पाई है। 2014 में चुनाव 2जी, कामनवेल्थ और कोल-गेट घोटालों को लेकर लड़ा गया। कांग्रेस बुरी तरह हारी। लेकिन अभी तक इनमें से किसी भी मामले में किसी नेता को सज़ा नहीं हुई है।