Chandrababu और Jagan Mohan दोनों के लिए जीवन-मरण है ये Lok Sabha चुनाव 2019
जगन मोहन रेड्डी, चंद्रबाबू नायडू (फाइल)
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू प्रभावशाली कम्मा जाति से हैं, जो राज्य की आबादी के महज तीन प्रतिशत हैं। उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी जगन मोहन रेड्डी के सजातीय 9 प्रतिशत हैं। अधिकतर जमीन और व्यापार इन्हीं दोनों जातियों के पास है। मंदिरों के प्रबंधन, शिक्षण संस्थाएं व ज्यादातर मीडिया संस्थान भी इन्हीं के हैं। इसीलिए बारी-बारी से यही सत्ता में आते हैं। 16% दलित, 23% पिछड़े, 9% मुस्लिम और 27% कापू वोटरों को जो अपने पाले में कर लेता है, वही विजेता। यही वजह है कि यहां कापू फाइनेंस कॉरपोरेशन है, ब्राह्मण फाइनेंस कॉरपोरेशन है, अल्पसंख्यकों व पिछड़ा वर्गों के लिए भी अलग वित्त निगम हैं। राजनीति में शुरू से रेड्डी नेताओं का वर्चस्व था, लेकिन 1982 में एनटी रामाराव के राजनीति में प्रवेश के बाद कम्मा नेताओं का अभ्युदय हुआ और उन्होंने सत्ता पर कब्जा जमा लिया। उनके बाद उनके दामाद एन चंद्रबाबू नायडू मुख्यमंत्री बने और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनवाने में उनकी अहम भूमिका थी।
बाहुबलियों का बोलबाला
दक्षिण आंध्र प्रदेश के कडप्पा कुरनूल, रायलसीमा में सत्ता बंदूक के जोर पर चलती रही है। रायलसीमा में परिताला रेड्डी और जेसी दिवाकर रेड्डी के परिवारों के खूनी संघर्ष पर फिल्में भी बनी हैं। कुरनूल में पूर्व सीएम के. विजय भास्कर रेड्डी और उपमुख्यमंत्री केई कृष्णमूर्ति में पुराना संघर्ष है। वाईएसआर कांग्रेस के जगन मोहन रेड्डी का गढ़ कडप्पा व अनंतपुर है वहीं चित्तूर चंद्रबाबू नायडू का।
पदयात्रा से निकलती जीत की राह आंध्र में जो पदयात्रा करता है, चुनाव वही जीतता है।
2003 में राजशेखर रेड्डी ने पैदल प्रदेश नापा, अगले साल सरकार बनाई।
2012 में चंद्रबाबू नायडू ने 117 दिन तक 2000 किमी पदयात्रा की और दो साल बाद सीएम बने।
इस बार जगन मोहन ने 9 महीनों में 3800 किलोमीटर की पद यात्रा की। क्या इस बार भी है संयोग कारगर होगा?
करो या मरो
चंद्रबाबू नायडू के लिए 11 अप्रैल को होने वाला विधानसभा चुनाव करो या मरो का सवाल है। वह पूरी तरह अकेले पड़ चुके हैं। उनके खिलाफ भाजपा है, वाईएसआर कांग्रेस है, पवन कल्याण की जनसेना है और कांग्रेस भी। 72 साल के नायडू संभवत: अगला चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं होंगे। लोगों को उनके बेटे नारा लोकेश में विरासत संभालने की काबिलियत नहीं दिखती। हर जनसभा में नायडू आरोप लगाते हैं कि जगन मोहन को पर्दे के पीछे से भाजपा व पवन कल्याण का समर्थन तो है ही, उन्हें तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भी सपोर्ट कर रहे हैं। आंध्र में कांग्रेस की उपस्थिति ना के बराबर है, इसलिए उसका समर्थन या विरोध बेमानी है।
पवन कल्याण की पार्टी अधिकतर उत्तरी आंध्र में मजबूत है, जबकि जगनमोहन की पार्टी दक्षिण में। इसलिए यह दोनों एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं। वहीं तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने हाल ही में एक बयान में कहा कि चुनाव के बाद उनकी और जगन मोहन की भूमिका राष्ट्रीय राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण होने वाली है। राजनीतिक विश्लेषक इस बयान का निहितार्थ निकाल रहे हैं कि वे दोनों भाजपा का दामन थाम सकते हैं।
जगन मोहन के लिए भी यह चुनाव जीवन-मरण का सवाल ही है। 2010 में पिता राजशेखर रेड्डी की मृत्यु के बाद वे कांग्रेस से बाहर हो गए। संघर्ष करते नौ वर्ष हो चुके हैं। यदि उन्हें 5 और वर्षों की प्रतीक्षा करनी पड़ी तो उन्हें स्वयं नहीं पता उनका कितना काडर पार्टी के साथ रहेगा। राजनीतिक विश्लेषक कारी श्रीराम कहते हैं, यही हालत नायडू की टीडीपी की भी हो सकती है। यदि वह यह चुनाव हार गए तो उनकी पार्टी में भगदड़ मच सकती है।