ना-ना करते Mayawati भी ‘परिवारवाद’ में उलझीं - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

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सोमवार, 15 अप्रैल 2019

ना-ना करते Mayawati भी ‘परिवारवाद’ में उलझीं

ना-ना करते Mayawati भी ‘परिवारवाद’ में उलझीं


मायावती (File)
मायावती (File)
 ना-ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे...। बसपा सुप्रीमो मायावती ने कुछ इसी अंदाज में अपने भाई और भतीजों को सियासत के मंच पर उतार दिया। बुलंदशहर में शनिवार की रैली में उन्होंने एलान किया कि अब वह अपने परिवार (भाई-भतीजों) को साथ लेकर चलेंगी। ऐसे में आगे चलकर उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी भी परिवार से ही हो, तो कोई अचरज नहीं होना चाहिए। हालांकि वह पार्टी संविधान में ऐसी गुंजाइश न होने का हवाला देकर ऐसी संभावना को खारिज करती आईं हैं। दरअसल, परिवारवाद पर विरोधियों की तगड़ी खबर लेने वाली मायावती खुद परिवार को पार्टी में सक्रिय करने को लेकर काफी दुविधा में नजर आ रही थीं। भाई आनंद को पार्टी उपाध्यक्ष बनाने और फिर हटाने में उनका यह द्वंद्व खुलकर सामने आया। इधर, मायावती कुछ दिनों से भतीजे आकाश को सार्वजनिक रूप से साथ में ले जा रही हैं, उन्हें स्टार प्रचारकों में शामिल किया। चुनावी रैलियों के मंचों पर जगह दिलाई। शनिवार को बुलंदशहर रैली में मायावती ने परिवार को साथ लेकर चलने का एलान कर परिवारवाद के संबंध में दुविधा से मुक्त होने का संदेश दे दिया है।

अब भाई व दोनों भतीजों को साथ लेकर चलने का किया एलान
जब मीडिया को दिखाने के लिए मेरे खिलाफ कोई समाचार नहीं मिलता तो वह हमारे जूते-चप्पल के पीछे पड़ जाता है। मेरे जन्मदिन पर भतीजे आकाश की चप्पल को एक चैनल में लाइव दिखाते हुए उसे विदेश से लाई हुई बताया। इस वाकये ने यह फैसला करने पर मजबूर कर दिया कि अब मैं परिवार को साथ लेकर चलूंगी। -मायावती 
(13 अप्रैल को बुलंदशहर की चुनावी रैली में भाई आनंद व भतीजे आकाश व ईशान का परिचय कराते हुए)

कभी परिवारवाद पर ऐसा प्रहार
मुलायम के यहां बच्चे, बच्चे पर बच्चे, भाइयों और भाइयों के बच्चों का पहला कोटा है। सपा परिवारवाद का मोह रखने वाले लोगों की एक मात्र शरणस्थली है। वहां सीएम की कुर्सी भी विरासत में मिल गई। स्वामी प्रसाद मौर्य के लिए सपा सबसे फिट पार्टी रहेगी। वहां पूरे परिवार को मौका मिल सकता है। यदि वह कांग्रेस में जाते हैं तो वहां भी ठीक रहेंगे क्योंकि परिवारवाद के लिहाज से कांग्रेस भी फिट है। लेकिन भाजपा में जाएंगे तो उन्हें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य को अपना नेता मानकर काम करना होगा। -मायावती 
(स्वार्मी प्रसाद मौर्य के बसपा छोड़ने के बाद 22 जून 2016 को प्रेस कांफ्रेंस में बोलीं)
 

परिवारवाद के आरोपों से बचने के लिए संविधान में संशोधन

मैंने पिछले विस चुनाव के बाद पेपर वर्क देखने के लिए छोटे भाई आनंद कुमार को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था। इसके बाद से ही कांग्रेस व अन्य पार्टियों की तरह बसपा में परिवारवाद को बढ़ावा देने की खबरें मीडिया में आने लगीं। मेरे अन्य भाई-बहन व नजदीकी रिश्ते-नाते के लोग भी आनंद की तरह पार्टी में पद के लिए दबाव बनाने लगे। तब आनंद ने बिना पद किसी पद के पूर्व की तरह पार्टी की सेवा की बात कही है। भविष्य में पार्टी में किसी तरह के परिवारवाद का कोई आरोप न लगे, इसके लिए पार्टी संविधान में कई अहम संशोधन किए गए हैं। अब बसपा अध्यक्ष के जीते जी व ना रहने के बाद भी उसके परिवार के किसी भी नजदीकी सदस्य को पार्टी संगठन में किसी भी स्तर के पद पर नहीं रखा जाएगा। राष्ट्रीय अध्यक्ष के परिवार के किसी भी नजदीकी सदस्य को न कोई चुनाव लड़ाया जाएगा और न ही उसे कोई राज्यसभा सांसद, एमएलसी या मंत्री आदि बनाया जाएगा।
  (मायावती, 26 मई 2018 को पार्टी के  राष्ट्रीय अधिवेशन में एलान)

सब कुछ योजना के तहत कर रहीं मायावती
'मायावती एवं भारतीय राजनीति’ किताब के लेखक प्रो. गोपाल प्रसाद कहते हैं कि मायावती का यह एलान बसपा के मूवमेंट के लिए बहुत दु:खद है। पिछले कुछ दिनों में भाई से भतीजे तक की यात्रा बताती है कि वह सब कुछ अपनी योजना के तहत कर रही हैं और परिवारवाद में शामिल हो गई हैं। अब समझ में आ रहा है कि वह पार्टी में सेकंड लाइन क्यों तैयार नहीं होने देती। जैसे कोई आगे बढ़ता नजर आता है, बाहर का रास्ता दिखा देती हैं। यह मूवमेंट के लिए ठीक नहीं है।

दलित आंदोलन को परिवारवाद से मुक्त होना चाहिए
मायावती के एलान से जुड़े सवाल पर, जीबी पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट इलाहाबाद के प्रोफेसर और दलित वैचारिकी की दिशाएं के लेखक डॉ. बद्री नारायण कहते हैं कि मायावती ने क्या कहा और क्या किया, इस बारे में तो कुछ नहीं कहना चाहते। लेकिन दलित आंदोलन को परिवारवाद से मुक्त होना चाहिए, यह स्पष्ट मत है।

मायावती का भी परिवारवाद सही या गलत, फैसला जनता पर छोड़ दें : प्रो. कालीचरण
दलित चिंतक प्रो. कालीचरण सनेही कहते हैं कि मायावती ने परिस्थितियों को देखकर परिवार को साथ लाने का फैसला किया होगा। इसे गलत नजरिए से नहीं देखना चाहिए। निर्णय जनता को लेना है कि वह फैसले को किस तरह लेती है? जनता ने कई पार्टियों में परिवारवाद को स्वीकार किया है। केवल मंच पर परिवार के लोगों को बैठाने भर से परिवारवाद नहीं हो जाता। परिवारवाद तब होता, जब अपने परिवार के कई लोगों को टिकट देतीं या चुनाव मैदान में उतार देतीं।

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