Bharat Rajneeti: अमेठी में राहुल को आंखें तरेरने वाली भाजपा, यहां सोनिया के सामने ठिठक क्यों जाती है? - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

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सोमवार, 6 मई 2019

Bharat Rajneeti: अमेठी में राहुल को आंखें तरेरने वाली भाजपा, यहां सोनिया के सामने ठिठक क्यों जाती है?

रायबरेली: अमेठी में राहुल को आंखें तरेरने वाली भाजपा, यहां सोनिया के सामने ठिठक क्यों जाती है?


Raybareli
Raybareli - फोटो : Bharat Rajneeti
उत्तर प्रदेश में अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीट आजादी के बाद से कांग्रेस का गढ़ रही है। अमेठी से राहुल मैदान में हैं तो रायबरेली से एक बार फिर सोनिया ताल ठोक रही हैं। कांग्रेस सुप्रीमो रहीं और वर्तमान में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी यहां से पांचवीं बार चुनाव लड़ रही हैं। कांग्रेस 'इस बार पांच लाख पार' नारे के साथ चुनावी मैदान में उतरी है, हालांकि पिछले चुनाव में सोनिया को 5.26 लाख वोट मिले थे। सपा-बसपा गठबंधन ने तो यहां गांधी परिवार का सम्मान करते हुए उम्मीदवार ही नहीं उतारा है, लेकिन इस बार कांग्रेस का 'हाथ' छोड़ भाजपा का साथ देने वाले उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह सोनिया के लिए थोड़ी दिक्कत पैदा कर सकते हैं।  पांच विधानसभा क्षेत्रों वाले रायबरेली में महज दो सीटें कांग्रेस के पास हैं और भाजपा के पास भी दो। रायबरेली में जहां कांग्रेस वर्चस्व में रही है, वहीं पिछली बार हरचंदपुर में भाजपा बहुत कम अंतर से हारी थी। बछरावां और सारेनी सीटें भाजपा के पास हैं, जबकि ऊंचाहार से सपा के विधायक हैं। पिछले विधानसभा चुनावों से उत्साहित भाजपा इन्हीं आंकड़ों के बलबूते कांग्रेस को उसके गढ़ में घेरने की तैयारी में है। हालांकि, अमेठी में स्मृति ईरानी को राहुल गांधी के सामने कर भाजपा जिस तरह आक्रामक रही है, वह आक्रामकता यहां रायबरेली में सोनिया गांधी के सामने नहीं दिखा पाई है। 

फिरोज गांधी ने खोला था कांग्रेस का खाता, बस तीन बार मिली हार

रायबेरली कांग्रेस का मजबूत किला कहा जाता है। यहां से पहली बार 1957 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी ने जीत हासिल की थी। यहां से महज तीन बार कांग्रेस को हार मिली है। 1977 में जनता पार्टी के राज नारायण और फिर 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में आरपी सिंह ने कांग्रेस को हराया था। इसके अलावे कांग्रेस हमेशा यहां से जीतती आई है। 

देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी के 1967 में चुनावी मैदान में उतरने के बाद यह सीट देशभर में सुर्खियों में आई। 1967 से लगातार वह दो बार सांसद बनीं और यहीं से वह देश की पहली प्रधानमंत्री बनीं। 

जब हारीं देश की पहली महिला प्रधानमंत्री

इंदिरा गांघी
इंदिरा गांघी :Bharat Rajneeti
1977 में भारतीय लोक दल के उम्मीदवार राज नारायण के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा। यह अबतक के इतिहास में पहला मौका था, जब कोई प्रधानमंत्री रहते चुनाव हारा हो। हालांकि 1980 में इंदिरा गांधी रिकॉर्ड मतों से विजयी हुईं। 1984 और 1989 में जवाहर लाल नेहरू के भतीजे अरुण कुमार नेहरू यहां से सांसद चुने गए। 1989 और 1991 में कांग्रेस से शीला कौल ने जीत दर्ज की। 1996 और 1998 में अशोक सिंह ने यहां भाजपा का कमल खिलाया, लेकिन उसके बाद से कोई कांग्रेस से दो-दो हाथ नहीं कर पाया है। 

2004 में रायबरेली के रण में उतरीं सोनिया
साल 2004 में सोनिया गांधी यहां से चुनावी मैदान में उतरीं। इससे पहले वह अपने पति राजीव गांधी की सीट अमेठी से जीतती रहीं थी। बेटे राहुल के लिए उन्होंने 2004 में अमेठी छोड़ दी और रायबरेली को अपनी कर्मभूमि बनाया। मोदी लहर में भी सोनिया गांधी को भाजपा चुनौती नहीं दे पाई और भाजपा उम्मीदवार अजय अग्रवाल को करीब 3.5 लाख वोटों से हरा दिया। 

भाजपा यहां न जमीनी तौर पर सक्रिय है और न ही आक्रामक

सोनिया गांधी, राहुल गांधी
सोनिया गांधी, राहुल गांधी:Bharat Rajneeti
सोनिया गांधी के साथ एक ठीक बात यह रही है कि वह विवादों से थोड़ी दूर रही हैं। भाजपा चाहकर भी उनपर व्यक्तिगत तौर पर हमला नहीं कर पाती है। भाजपा यहां जमीनी तौर पर सक्रिय नहीं दिखती है और न ही अमित शाह की टीम यहां आक्रामकता दिखा पाई है। 

हालांकि चुनाव से कुछ महीने पहले तक अस्वस्थ चल रहीं सोनिया गांधी के बारे में चर्चा थी कि वह इस बार मैदान में नहीं उतरेंगी। यह भाजपा के लिए राहत देने वाली खबर थी, लेकिन कांग्रेस की सूची जारी होते ही सोनिया का नाम देख भाजपा की उम्मीदें ढीली पड़ गईं। सोनिया की जगह नया चेहरा होने की स्थिति में भाजपा खुद को मजबूत आंक सकती थी।

कारण कि कांग्रेस के सगे रहे एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह को भाजपा ने अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था। दिनेश इस बार चुनावी मैदान में हैं, लेकिन सोनिया गांधी के सामने वह कितनी देर तक खड़े रह पाएंगे, इसका जवाब 23 मई को मिल पाएगा।

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