भारत की एक और कूटनीतिक जीत, मालदीव चीन के साथ रद्द कर सकता है यह समझौता

यदि चीन और मालदीव के बीच यह समझौता होता तो चीनियों को हिंद महासागर के महत्वपूर्ण रास्ते पर अहम अड्डा मिल मिल जाता जिसके जरिए कई व्यापारिक और दूसरे जहाजों की आवाजाही होती है। यह भारत की समुद्री सीमा से बहुत करीब है। इसके अलावा मालदीव के साथ संबंधों के मद्देनजर यह बहुत चुनौतीपूर्ण साबित होता। तत्कालीन विदेश सचिव एस जसशंकर ने इस मुद्दे पर मालदीव के तत्कालीन राजनयिक अहमद मोहम्मद से चर्चा की थी। राजनयिक ने स्पष्ट किया था कि चीन केवल मौसम संबंधी महासागर अवलोकन केंद्र बनाना चाहता है।
यामीन सरकार ने इस समझौते को कभी सार्वजनिक नहीं किया। विवाद होने पर चीन ने इसपर सफाई देते हुए कहा था कि वेधशाला का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्य के लिए नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में मालदीव के दौरे पर गए थे। जहां उन्होंने चीन पर निशाना साधते हुए कहा कि भारत की विकासात्मक साझेदारी दूसरों को सशक्त बनाने के लिए थी न कि उनकी भारत पर निर्भरता बढ़ाने और उन्हें कमजोर करने के लिए। माना जाता है कि मालदीव पर जो कर्ज है उसका आधे से ज्यादा चीन का है।