आठ मंजिला ऊंची होगी दुनिया की सबसे शक्तिशाली दूरबीन, खुलेंगे ब्लैकहोल और अंतरिक्ष के रहस्य
खास बातें
- विश्व की सबसे बड़ी और 30 मीटर लंबी दूरबीन होगी टीएमटी
- इस दूरबीन की ऊंचाई आठ मंजिली इमारत के बराबर होगी
- 2022 तक इस खास दूरबीन के तैयार होने की है संभावना
- इस परियोजना पर कुल खर्च हो रहा है 1.47 अरब डॉलर
- 25 फीसदी खर्च जापान का, भारत की हिस्सेदारी 10 फीसदी
क्या धरती के बाहर भी कहीं जीवन है? आकाशगंगा कहां से आई? किसी और ग्रह पर क्या हलचल हो रही? ब्लैक होल का निर्माण कैसे होता है? अंतरिक्ष के ऐसे ही कई रहस्यों के बारे में पता चल सकेगा एक ऐसे दूरबीन से, जिसके निर्माण में भारत की अहम भूमिका है। इस दूरबीन से 500 किलोमीटर दूर एक सिक्के के आकार की वस्तु भी देखी जा सकेगी।
अंतरिक्ष की कई अबूझ पहेलियों को सुलझाने के लिए विश्व के पांच देश मिल कर एक विशेष दूरबीन बना रहे हैं। इसके निर्माण के लिए भारत, चीन, कनाडा, अमेरिका और जापान ने हाथ मिलाया है। ये पांचों देश विश्व का सबसे बड़ा टेलीस्कोप तैयार कर रहे हैं, जिसे थर्टी मीटर टेलीस्कोप (टीएमटी) का निर्माण दिया गया है। माना जा रहा है कि साल 2022 तक इसका निर्माण पूरा हो जाएगा।
लद्दाख भी हो सकता है विकल्प
इस दूरबीन को अमेरिका के हवाई में तैयार किया जा रहा है, लेकिन हवाई में इसके निर्माण के खिलाफ प्रदर्शन भी हुए हैं। इस वजह से वैकल्पिक स्थलों पर भी विचार कर रहे हैं। इसमें लद्दाख का हानले भी शामिल है। यदि यह दूरबीन लद्दाख में स्थापित होती है तो खगोलीय जगत में यह भारत की बड़ी उपलब्धि होगी। वैसे भी दुनिया के सबसे बड़े दूरबीन के निर्माण में भारत की भूमिका बेहद अहम है।
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के एस्ट्रोनॉमी विभाग के मुताबिक इस टेलीस्कोप से आकाशगंगा कैसे बनी, क्या पृथ्वी के बाहर भी जीवन है, ब्लैक होल के निर्माण के अलावा अंतरिक्ष में होने वाली हर हलचल की जानकारी प्राप्त हो सकेगी।
भारत की तीन कंपनियों को सौंपा गया काम, बनाएंगे
ब्लैक होल(सांकेतिक तस्वीर)
थर्टी मीटर टेलीस्कोप (टीएमटी) प्रोजेक्ट में तीन भारतीय कंपनियों, गोल, अवसराला और गोदरेज एंड बॉयस को भी काम सौंपा गया है। ये कंपनियां टेलीस्कोप के लिए 700 करोड़ के कंपोनेंट बनाएगी। इस टेलीस्कोप के लिए ऐसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होगा, जो अभी हैं ही नहीं।
गोल कपंनी के एक अधिकारी की मानें तो इससे ऐसी टेक्नोलॉजी विकसित करने में मदद मिलेगी, जो दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों के पास ही होगी। इस टेलीस्कोप के लिए 30 मीटर के डायमीटर वाले सिंगल मिरर की जरूरत पड़ेगी। इन्हें 492 पार्ट्स में बांटा जाएगा और बाद में असेंबल किया जाएगा। इनमें से 100 पार्ट्स भारत बनाएगा।
टीएमटी दूरबीन में भारतीय वैज्ञानिकों को मिलेंगी 30 रातें
इस टेलीस्कोप के निर्माण के बाद भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को वर्ष में 25-30 रातों तक इस पर काम करने का मौका मिलेगा। यह भारत के लिए बड़ी बात है। वर्तमान में 10 मीटर के टेलीस्कोप पर साल में सिर्फ एक रात का समय मांगना भी भारत के लिए बहुत मुश्किल होता है।
इसके लिए कई बार आवेदन करने पड़ते हैं। टीएमटी में भारतीय वैज्ञानिकों को 30 रातें बिताने पर कई अहम जानकारियां प्राप्त होंगी, जो देश के लिए बहुत काम की हो सकती हैं।
जानिए दुनिया के कुछ बड़े टेलीस्कोप के बारे में
विश्व में कई बड़ी दूरबीन पहले से भी मौजूद हैं - फोटो : Social Media
टीएमटी को विश्व की सबसे बड़ी दूरबीन बनाए जाने का दावा किया जा रहा है। जिस तरह का टेलीस्कोप लद्दाख में लगाने की चर्चा चल रही है, दुनिया भर में ऐसे कई बड़े टेलीस्कोप मौजूद हैं।
जीएमटी
जीएमटी लगभग 2024 तक अपना काम करना शुरू कर देगा। इस टेलीस्कोप लैब को एंडीज पर्वतमाला में बनाया गया है। इस टेलीस्कोपिक लैब ने हबल स्पेस टेलीस्कोप से 10 गुना बेहतर और साफ तस्वीर देने का दावा किया है।
एटाकामा लॉर्ज मिमी
यह टेलीस्कोप छजंतोर पठार पर 5000 मीटर की ऊंचाई पर नार्थ चिली में स्थित है। एएलएमए एक अंतराष्ट्रीय सहयोग से बनी वैधशाला है, जिसमें यूरोप, यूएस, कनाडा जैसे कई देश सहायक हैं।
एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन
एशिया की सबसे बड़ी 3.6 मीटर व्यास की ऑप्टिकल दूरबीन नैनीताल (उत्तराखंड) में है। दूरबीन भवन में एक 17 मीटर व्यास और 35 मीटर ऊंचा शीर्ष से घूमने वाला बेलनाकार गुबंद है, जिसे पूरी तरह से पहली बार भारत में बनाया गया है। इसका कुल वजन लगभग 150 टन है।
ऑरकिबो आब्जर्वेटरी
यह देखने में एक रोलर कोस्टर की तरह दिखती है। यह टेलीस्कोप वैधशाला साल के 365 दिन और चौबीसों घंटे काम करती है। यह वैधशाला चंद्रमा, बुध, शुक्र और कई खगोलीय पिंडो की खोज और डेटा एकत्रित करती है।
यूरोपीयन एक्सट्रीमैली
इस टेलीस्कोप को अंतरिक्ष पर नजर रखने वाली सबसे बड़ी आंख कहा जाता है। इस प्रोजेक्ट की लागत एक बिलियन डॉलर थी। इसका निर्माण 2014 से शुरू हुआ था।