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मंगलवार, 11 जून 2019

नोटबंदी को 'झटका' बता चुके पूर्व CEA Subramaniam ने जीडीपी पर उठाए सवाल, कहा- सरकारी आंकड़े झूठे

नोटबंदी को 'झटका' बता चुके पूर्व CEA Subramaniam ने जीडीपी पर उठाए सवाल, कहा- सरकारी आंकड़े झूठे


पूर्व मुख्य वित्तीय सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम
पूर्व मुख्य वित्तीय सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम - फोटो : PTI
भारत में नोटबंदी के समय देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमण्यम ने पिछले साल नोटबंदी के फैसले को देश की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका बताया था। अब उन्होंने देश की आर्थिक विकास दर यानी जीडीपी को लेकर सवाल उठाया है। हावर्ड यूनिवर्सिटी ने उनका एक शोध पत्र(रिसर्च पेपर) प्रकाशित किया है, जिसमें देश की आर्थिक विकास दर को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किए जाने का दावा किया गया है। सुब्रमण्यम के अनुसार जो आंकड़े पेश किए गए, वह झूठे थे। पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार सुब्रमण्यम ने अपने ट्विटर एकाउंट पर शोध पत्र में प्रस्तुत किए गए सबूत भी दिए हैं।


Evidence 1. Growth correlations between 17 simple, macro-ish, & "independently produced" indicators and GDP break down post-2011. Pre-2011, 16 positively correlated with GDP; post-2011, 11 negatively correlated. 4/n



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Evidence 2. Growth of most of these "macro-ish" indicators declines sharply post-2011 compared to pre-2011, but measured GDP growth remained broadly similar. 5/n
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द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस रिसर्च पेपर में अरविंद सुब्रमण्यम का कहना है कि वित्तीय वर्ष 2011-12 और 2016-17 के दौरान देश की आर्थिक विकास दर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया। वित्तीय वर्ष 2011-12 और 2016-17 के दौरान विकास दर का आधिकारिक आंकड़ा सात फीसदी के करीब था, जबकि सुब्रमण्यम के अनुसार, असल जीडीपी करीब 4.5 फीसदी ही थी। इन वित्तीय वर्षों में विकास दर करीब 2.5% बढ़ाकर दिखाई गई। 

'मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर' गलत आंकड़ों का बड़ा कारण

सुब्रमण्यम के अनुसार, जीडीपी के गलत मापन का सबसे बड़ा कारण मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर(निर्माण क्षेत्र) रहा। सुब्रमण्यम ने कहा कि साल 2011 से पहले मैन्यूफैक्चरिंग उत्पादन, मैन्यूफैक्चरिंग उत्पाद और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक और मैन्यूफैक्चरिंग निर्यात से संबंधित होता था, लेकिन बाद के सालों में इस संबंध में काफी गिरावट आई है।

सुब्रमण्यम की रिसर्च पेपर के अनुसार, जीडीपी ग्रोथ के लिए 17 अहम आर्थिक बिंदु होते हैं, लेकिन एमसीए-21 डाटाबेस में इन बिंदुओं को शामिल ही नहीं किया गया। मालूम हो कि देश की जीडीपी की गणना में एमसीए-21 डाटाबेस का अहम रोल होता है।

'आर्थिक विकास की नीतियों पर भी सवाल'

राष्ट्रीय सैंपल सर्वे(सांकेतिक तस्वीर)
राष्ट्रीय सैंपल सर्वे(सांकेतिक तस्वीर)
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस(एनएसएसओ) ने वित्तीय वर्ष 2016-17 का एक आंकड़ा पेश किया था। एक मीडिया रिपोर्ट में इस बात का जिक्र था कि एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान एमसीए-21 डाटाबेस में शामिल 38% कंपनियां या तो अस्तित्व में ही नहीं थी या फिर उन्हें गलत कैटेगरी में डाला गया था। सुुब्रमण्यम के अनुसार, जीडीपी के आंकड़ों में गड़बड़ी के पीछे यह बड़ा कारण रहा।  

अरविंद सुब्रमण्यम ने देश के आर्थिक विकास के लिए बनाई जाने वाली नीतियों पर भी सवाल उठाए हैं। सुब्रमण्यम के अनुसार, भारतीय पॉलिसी ऑटोमोबाइल एक गलत, संभवत टूटे हुए स्पीडोमीटर से आगे बढ़ रहा है। 

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