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सोमवार, 3 जून 2019

रक्षामंत्री बनने के बाद पहले आधिकारिक दौरे पर आज सियाचिन जाएंगे राजनाथ, सेना प्रमुख भी रहेंगे साथ

रक्षामंत्री बनने के बाद पहले आधिकारिक दौरे पर आज सियाचिन जाएंगे राजनाथ, सेना प्रमुख भी रहेंगे साथ


Rajnath Singh will visit Siachen on his first official trip, Army chief will accompany him
रक्षा मंत्री के रूप में पद संभालने के बाद राजनाथ सिंह सोमवार को अपना पहला आधिकारिक दौरा सियाचिन और श्रीनगर का करेंगे। इस दौरान वे पाकिस्तान से लगते एलओसी पर सुरक्षा हालात का जायजा लेंगे।

साथ ही घाटी में आतंकवाद निरोधक अभियानों के बारे में भी जानकारी हासिल करेंगे। इस दौरे में थल सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत भी साथ रहेंगे। ज्ञात हो कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में सिंह को रक्षा मंत्री का जिम्मा दिया गया है। पिछली सरकार में उन्होंने गृहमंत्री की जिम्मेदारी संभाली थी।

रक्षा मंत्री लेह में 14 कोर तथा श्रीनगर में 15 कोर का दौरा करेंगे। वे सबसे पहले लद्दाख में थोसे एयरफील्ड पहुंचेंगे। यहां से वे किसी आपरेशनल बेस में जाएंगे। फिर सियाचिन पहुंचकर सेना के जवानों से रूबरू होंगे। इस दौरान वे जवानों तथा सेना कमांडरों का हौसला बढ़ाएंगे।

राष्ट्रीय राजधानी से बाहर रक्षा बेस पर यह उनकी पहली यात्रा है। रक्षा मंत्री यहां के वॉर मेमोरियल पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के बाद जवानों से मुलाकात करेंगे। साथ ही वरिष्ठ अधिकारियों से सियाचिन की परिस्थिति और रक्षा चुनौतियों के बारे में भी जानकारी लेंगे।

माना जा रहा है कि 14 कोर एवं 15 कोर में रक्षा मंत्री को पाकिस्तान के नापाक इरादों से निपटने के लिए की गई तैयारियों की विस्तृत जानकारी दी जाएगी। 14 कोर चीन के साथ लगते एलएसी (लाइन आफ एक्चुअल कंट्रोल) के साथ-साथ पाकिस्तान के साथ लगते एलओसी की जिम्मेदारी संभालता है, जबकि 15 कोर मुख्य रूप से घाटी में आतंकवाद निरोधक अभियानों को। 

1984 में सियाचिन पर तैनाती हुई थी शुरू

सियाचिन का दौरा पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर परिकर और निर्मला सीतारमण ने भी किया था। युद्ध परिस्थितियों के लिहाज से सियाचिन रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण है और उतना ही दुर्गम भी। काराकोरम रेंज में मौजूद सियाचिन ग्लेशियर भारत-पाक नियंत्रण रेखा के पास स्थित एक बर्फीला क्षेत्र है।

यह विश्व का सबसे बड़ा और ऊंचा युद्ध क्षेत्र है और सर्दी के दिनों में वहां पारा गिरकर माइनस 70 डिग्री तक पहुंच जाता है। पिछले 10 साल में यहां करीब 163 जवान शहीद हो चुके हैं। इनमें से ज्यादातर की शहादत एवलांच और खराब मौसम के कारण हुई। 1984 में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस ग्लेशियर पर भारत और पाकिस्तान की ओर से सुरक्षाकर्मियों की तैनाती शुरू की गई है।

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