Rajneeti News: अनुच्छेद 370 से कश्मीरियों को मिलते हैं भारतीय नागरिकों से ज्यादा अधिकार
जम्मू कश्मीर और अनुच्छेद 370 - फोटो : bharat rajneeti
जब भी जम्मू-कश्मीर का जिक्र आता है तो उसके साथ ही अनुच्छेद 370 की चर्चा भी शुरू हो जाती है। इसकी वजह से हमेशा देश की राजनीति में उबाल आता रहा है। दरअसल यह भारतीय संविधान का एक ऐसा नियम है, जो जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देता है। आजादी के समय जम्मू-कश्मीर रियासत के भारतीय गणराज्य में विलय के समय महाराजा हरि सिंह ने इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन नाम के दस्तावेज पर दस्तखत किया था। अनुच्छेद 370 इसी के अंतर्गत आता है।
इसके प्रावधानों को शेख अब्दुल्ला ने तैयार किया था। हरि सिंह और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री भी नियुक्त किया था। इस अनुच्छे की वजह से जम्मू-कश्मीर राज्य को कुछ विशेष अधिकार मिले हैं। धारा 370 एक देश को दो हिस्सों में बांटती है। यह अनुच्छेद कश्मीर के लोगों को ऐसी रियायतें और विशेष अधिकार देता है जो कि भारत के किसी अन्य नागरिक को प्राप्त नहीं हैं।
आइए जानते हैं कि यदि अनुच्छेद 370 को हटा दिया जाता है तो कश्मीर में क्या क्या बदल जाएगा।
संक्षिप्त इतिहास
भारत को आजादी मिलने के बाद 20 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तान समर्थित ‘आजाद कश्मीर सेना’ ने पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर कश्मीर पर आक्रमण करके काफी बड़ा क्षेत्र हथिया लिया था। इस हिस्से को आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) कहा जाता है।
क्या 370 को संविधान से हटा पाना संभव है?
दिसंबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 हटाने से जुड़ी एक याचिका की सुनवाई में कहा था कि इसे संविधान से हटाने का फ़ैसला सिर्फ संसद कर सकती है। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एचएल दत्तू की बेंच ने उस वक्त कहा था, ''क्या ये कोर्ट का काम है? क्या संसद से कह सकते हैं कि ये आर्टिकल हटाने या रखने पर वो फैसला करें, ये करना इस कोर्ट का काम नहीं है।''
साल 2015 में ही जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा था कि संविधान के भाग 21 में ''अस्थायी प्रावधान'' शीर्षक होने के बावजूद अनुच्छेद 370 एक स्थायी प्रावधान है। अदालत ने कहा था कि अनुच्छेद 370 के खंड तीन के तहत ना तो इसे निरस्त किया जा सकता है और ना ही इसे संशोधित किया जा सकता है।
राज्य का कानून 35ए को संरक्षण देता है। हाईकोर्ट ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर बाकी राज्यों की तरह भारत में शामिल नहीं हुआ, इसने भारत के साथ संधिपत्र पर हस्ताक्षर करते वक्त अपनी संप्रभुता कुछ हद तक बकरार रखी थी।
भारत के संविधान के इतर जम्मू कश्मीर में अपना अलग संविधान है जिसकी धारा 35ए को लेकर कई बार बहस छिड़ चुकी है। इस कानून के मुताबिक इस राज्य में कोई राज्य से बाहर का शख्स जमीन-जायदाद नहीं खरीद सकता।
कैसे हुआ कश्मीर का भारत में विलय
1947 में विभाजन के समय जब जम्मू-कश्मीर को भारतीय संघ में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू हुई तब जम्मू-कश्मीर के राजा हरिसिंह स्वतंत्र रहना चाहते थे। इसी दौरान तभी पाकिस्तान समर्थित कबिलाइयों ने वहां आक्रमण कर दिया जिसके बाद बाद उन्होंने भारत में विलय के लिए सहमति दी।
कैसे बना अनुच्छेद 370
जम्मू कश्मीर के राजा हरि सिंह, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू और शेख अबदुल्ला - फोटो : bharat rajneeti
आपातकालीन स्थिति के मद्देनजर कश्मीर का भारत में विलय करने की संवैधानिक प्रक्रिया पूरी करने का समय नहीं था। इसलिए संघीय संविधान सभा में गोपालस्वामी आयंगर ने धारा 306-ए का प्रारूप पेश किया। यही बाद में धारा 370 बनी। जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों से अलग अधिकार मिले हैं।
- 1951 में राज्य को संविधान सभा को अलग से बुलाने की अनुमति दी गई।
- नवंबर 1956 में राज्य के संविधान का कार्य पूरा हुआ। 26 जनवरी 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया।
जम्मू कश्मीर के विशेष अधिकार
- धारा 370 के प्रावधानों के मुताबिक संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है।
- किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की सहमति लेनी पड़ती है।
- इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती। राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है।
- 1976 का शहरी भूमि कानून भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता।
- भारत के अन्य राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते हैं।
- धारा 370 के तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि खरीदने का अधिकार है।
- भारतीय संविधान की धारा 360 यानी देश में वित्तीय आपातकाल लगाने वाला प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता।
धारा 370 की बड़ी बातें
- जम्मू-कश्मीर का झंडा अलग होता है।
- जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है।
- जम्मू-कश्मीर में भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं है। यहां भारत की सर्वोच्च अदालत के आदेश मान्य नहीं होते।
- जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उस महिला की जम्मू-कश्मीर की नागरिकता खत्म हो जाएगी।
- यदि कोई कश्मीरी महिला पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी करती है, तो उसके पति को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती है।
- धारा 370 के कारण कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है।
- जम्मू-कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते हैं।
- जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 साल होता है। जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 साल होता है।
- भारत की संसद जम्मू-कश्मीर के संबंध में बहुत ही सीमित दायरे में कानून बना सकती है।
- जम्मू-कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू है।
- जम्मू-कश्मीर में पंचायत के पास कोई अधिकार नहीं है।
- धारा 370 के कारण जम्मू-कश्मीर में सूचना का अधिकार (आरटीआई) लागू नहीं होता।
- जम्मू-कश्मीर में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) लागू नहीं होता है। यहां सीएजी (CAG) भी लागू नहीं है।
- जम्मू-कश्मीर में काम करने वाले चपरासी को आज भी ढाई हजार रूपये ही बतौर वेतन मिलते हैं।
- कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदुओं और सिखों को 16 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता है।
क्या 370 को हटाना संभव है?
बगैर राज्य सरकार की सहमति के अनुच्छेद 370 का खत्म करना केंद्र सरकार के लिए संभव नहीं है। अनुच्छेद 370 के उपबंध 3 के तहत राष्ट्रपति चाहें तो अधिसूचना जारी कर इस अनुच्छेद को खत्म कर सकते हैं या उसमें बदलाव कर सकते हैं। लेकिन, ऐसा करने से पहले उन्हें राज्य सरकार से मंजूरी लेने की दरकार होगी। अप्रैल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को लेकर कहा था कि सालों से बने रहने के चलते अब यह धारा एक स्थायी प्रावधान बन चुकी है, जिससे इसको खत्म करना असंभव हो गया है।
हो चुके हैं बदलाव
अनुच्छेद 370 की वजह से ही जम्मू-कश्मीर का अपना अलग झंडा और प्रतीक चिह्न भी है। हालांकि इसमें अनुच्छेद में कई बदलाव भी किए गए हैं। 1965 तक वहां राज्यपाल और मुख्यमंत्री नहीं होता था। उनकी जगह सदर-ए-रियासत और प्रधानमंत्री हुआ करता था। जिसे बाद में बदला गया। इसके अलावा पहले जम्मू-कश्मीर में भारतीय नागरिक जाता तो उसे अपना साथ पहचान-पत्र रखना जरूरी थी, जिसका बाद में काफी विरोध हुआ। विरोध होने के बाद इस प्रावधान को हटा दिया गया।