तीन तलाक से पीड़ित केंद्रीय मंत्री की बहन ने कहा- अब हलाला से होगी जंग, कानून के लिए लड़ेंगे लड़ाई

तीन तलाक विरोधी कानून के लिए अपने संघर्ष की याद करते हुए फरहत नकवी के अमर उजाला को बताया कि 2005 में उनका निकाह हुआ था। वर्ष 2007 में जब उनके बेटी एक-डेढ़ महीने की ही थी, उनके पति ने बिना वजह उन्हें तलाक दे दिया। जबकि शिया मुस्लिमों के बीच तीन तलाक कभी स्वीकार्य नहीं था। अपनी परेशानी से लड़ने के बीच उन्होंने पाया कि उनके जैसी लाखों मुस्लिम महिलाएं हैं जो तीन तलाक से पीड़ित हैं।
उन्होंने इसके विरोध में लड़ाई लड़ने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि उन्हें अखबारों या किसी अन्य माध्यम से जहां भी तीन तलाक का मामला सुनाई पड़ता था, वे अपनी स्कूटी से वहां पहुंच जाती थीं। परिवारों के बीच सुलह हो जाए, ये उनकी पहली कोशिश होती थी, लेकिन सुलह न होने पर वे महिला को उसके अधिकारों के लिए लड़ने के लिए सलाह देती थीं।
कुछ समय के बाद उन्होंने ‘मेरा हक फाउंडेशन’ की स्थापना कर इसके माध्यम से तीन तलाक पीड़ित मुस्लिम महिलाओं को क़ानूनी और आर्थिक मदद पहुंचाई। इनमें हिन्दू और सिख महिलाएं भी शामिल थीं। उनकी इस सामाजिक कोशिश को मुस्लिम समाज के कुछ लोगों ने धर्म के खिलाफ समझा और उनकी चोटी काटने का फतवा जारी किया, उन्हें इस्लाम से खारिज कर दिया गया और उनका हुक्का पानी बंद करने का आदेश दिया गया।
उनके ऊपर हमले भी हुए और उनके चेरे को तेज़ाब से जलाने की धमकी भी दी गई। लेकिन इन सब खतरों से निबटते हुए वे आगे बढीं और आज तीन तलाक कानून बन चुका है जिसे वे अपनी जैसी लाखों तीन तलाक पीड़ित महिलाओं की जीत मानती हैं।