550 से ज्यादा रियासतों को जोड़कर बनाया गया हमारा देश भारत
आजादी के बाद भारत का नक्शा - फोटो : bharat rajneeti
आजादी के बाद भारत 565 देशी रियासतों में बंटा था। ये देशी रियासतें स्वतंत्र शासन में यकीन रखती थीं जो सशक्त भारत के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा थी। हैदराबाद, जूनागढ़, भोपाल और कश्मीर को छोड़कर 562 रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दी थी। आजादी के बाद देश के पहले उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री बने सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सभी रियासतों से बात करके उन्हें भारतीय परिसंघ में शामिल होने के लिए मनाया।
हम सभी जानते हैं कि कुछ रियासतों के विलय में काफी दिक्कतें भी आई थीं। लेकिन यह समस्या क्यों आई और क्या केवल भारत में ही ऐसी स्थिति बनी थी? किन रियासतों ने भारत में विलय का विरोध किया था ? ऐसे ही कई सवालों के जवाब आपको यहां मिलेंगे।
1947 भारत के अंतर्गत तीन तरह के क्षेत्र थेः
- ब्रिटिश भारत के क्षेत्र
- देसी राज्य (Princely states)
- फ्रांस और पुर्तगाल के औपनिवेशिक क्षेत्र
बंटवारे से पहले हिंदुस्तान में 579 रियासतें थीं। जब अंग्रेजों के भारत छोड़ने का समय आया तो उन्होंने देश को तीन हिस्सों में बांट दिया। भारत का पश्चिमी हिस्सा मगरिबी पाकिस्तान बना तो पूर्वी हिस्सा मशरिकी पाकिस्तान कहलाया। यही पूर्वी हिस्सा अब बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है। इस बंटवारे के बाद 550 से ज्यादा छोटी-बड़ी रियासतों को भारत कहा गया। इसमें कई स्वतंत्र राज्य और रियासतें शामिल थीं। कुछ रियासतें तो चंद गांवों तक सिमटी हुई थीं। इन सभी को खत्म करने राज्यों का गठन करते हुए भारत संघ की कहानी लिखी गई थी।
भारत में अंग्रेजों के अंतिम वायसराय लुइस माउंटबेटन ने बंटवारे के दौरान सभी राज्यों और रियासतों को यह सलाह दी कि वे भौगोलिक स्थिति के अनुकूल भारत या पाकिस्तान साथ मिल जाएं। साथ ही उन्हें चेतावनी दी गई कि 15 अगस्त के बाद उन्हें ब्रिटेन से कोई मदद नहीं मिलेगी। अधिकांश राजाओं ने इस सलाह को मान लिया। लेकिन कुछ राजा इसके खिलाफ थे।
जाते-जाते भी फूट डालने में लगे रहे अंग्रेज
जब देश को आजादी मिलना तय हो गया तब कुछ रियासतों ने खुद को स्वतंत्र रखने का मन बनाया था। वे स्वतंत्र भारत में अपना अस्तित्व बनाये रखने की फिराक में थे। उनकी ये इच्छा उस समय और बढ़ गई जब अंग्रेजों ने भारतीय रियासतों को अपनी इच्छा से भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का अधिकार दे दिया। लेकिन यह भी स्पष्ट कर दिया कि ब्रिटेन स्वतंत्र रियासतों में किसी को भी अलग देश के रूप में मान्यता नहीं देगा।
ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश शासन
हैदराबाद का भारत में विलय - फोटो : bharat rajneeti
भारत की कई रियासतें भारतीय प्रायद्वीप के अल्प उर्वर व दुर्गम प्रदेशों में स्थित थीं। ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने विजय अभियान में महत्वपूर्ण तटीय क्षेत्रों, बड़ी-बड़ी नदी घाटियों, जो कि नौ-परिवहन की दृष्टि से महत्वपूर्ण थीं, उर्वर थीं और जहां धनाढ्य लोग निवास करते थे, उन्हें अपने अधीन कर लिया था।
1935-1947
1935 में अंग्रेजों ने भारत सरकार अधिनियम बनाया, जिसमें प्रस्तावित समस्त भारतीय संघ की संघीय विधानसभा में भारतीय रियासत प्रमुखों को 375 में से 125 स्थान दिए गए। साथ ही राज्य विधान परिषद के 260 स्थानों में से 104 स्थान उनके लिए सुरक्षित किए गए।
योजना के अनुसार, यह संघ तब अस्तित्व में आना था, जब परिषद में आधे स्थानों वाली रियासतें तथा कम से कम आधी जनसंख्या प्रस्तावित संघ में सम्मिलित होने की स्वीकृति दें। चूंकि पर्याप्त रियासतों ने इस संघ में सम्मिलित होना स्वीकार नहीं किया इसलिये संघ अस्तित्व में नहीं आ सका।
द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ होने के पश्चात भारत में तीव्र राजनैतिक गतिविधियां प्रारंभ होने तथा कांग्रेस द्वारा असहयोग की नीति अपनाए जाने के कारण ब्रिटिश सरकार ने क्रिप्स मिशन (1942), वैवेल योजना (1945), कैबिनेट मिशन (1946) तदुपरांत एटली की घोषणा (1947) द्वारा गतिरोध को हल करने का प्रयत्न किया।
क्रिप्स मिशन ने भारतीय रियासतों की सर्वश्रेष्ठता को भारत के किसी अन्य राजनीतिक दल को देने की संभावना से इंकार कर दिया। रियासतों ने पूर्ण संप्रभुता संपन्न एक अलग गुट बनाने या अन्य इकाई बनाने की विभिन्न संभावनाओं पर विचार-विमर्श किया, जो भारत के राजनीतिक परिदृश्य में एक तीसरी शक्ति के रूप में कार्य करे।
तीन जून की माउंटबेटन योजना तथा एटली की घोषणाओं में रियासतों को यह अधिकार दिया गया कि वे भारत या पाकिस्तान किसी भी डोमिनियन में सम्मिलित हो सकती हैं। हालांकि इसमें यह भी स्पष्ट था कि रियासतों को संप्रभुता का अधिकार या तीसरी शक्ति के रूप में मान्यता नहीं दी जाएगी।
राष्ट्रीय अस्थायी सरकार में रियासत विभाग के मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने वीपी मेनन को अपना सचिव बनाया। इसके बाद भारतीय रियासतों से देशभक्तिपूर्ण अपील की गई कि वे अपनी रक्षा, विदेशी मामले तथा संचार अवस्था को भारत के अधीनस्थ बनाकर भारत में सम्मिलित हो जाएं।
सरदार पटेल ने तर्क दिया कि चूंकि ये तीनों ही मामले पहले से ही ब्रिटिश क्राउन (मुकुट या ताज) की सर्वश्रेष्ठता के अधीन थे तथा रियासतों का इन पर कोई नियंत्रण भी नहीं था। अतः रियासतों के भारत में सम्मिलित होने से उनकी संप्रभुता पर कोई आंच नहीं आएगी। 15 अगस्त 1947 के अंत तक 136 क्षेत्राधिकार रियासतें भारत में सम्मिलित हो चुकी थीं।
भारत के विरोध में थीं ये रियासतें
जूनागढ़
यहां का मुस्लिम नवाब रियासत को पाकिस्तान में सम्मिलित करना चाहता था किंतु हिंदू जनसंख्या भारत में सम्मिलित होने के पक्ष में थी। जनता ने भारी बहुमत से भारत में सम्मिलित होने के पक्ष में निर्णय दिया।
हैदराबाद
हैदराबाद का निजाम अपनी संप्रभुता को बनाए रखने के पक्ष में था। यद्यपि यहां की बहुसंख्या जनता भारत में विलय के पक्ष में थी। उसने हैदराबाद को भारत में सम्मिलित करने के पक्ष में तीव्र आंदोलन प्रारंभ कर दिया। निजाम आंदोलनकारियों के प्रति दमन की नीति पर उतर आया। 29 नवंबर 1947 को निजाम ने भारत सरकार के साथ एक समझौते पर दस्तखत तो कर दिए किंतु इसके बावजूद उसकी दमनकारी नीतियां और तेज हो गईं।
सितंबर 1948 तक यह स्पष्ट हो गया कि निजाम को समझा-बुझा कर राजी नहीं किया जा सकता। 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेनाएं हैदराबाद में प्रवेश कर गईं और 18 सितंबर 1948 को निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया। अंततः नवंबर 1949 में हैदराबाद को भारत में सम्मिलित कर लिया गया।
कश्मीर
जम्मू एवं कश्मीर राज्य के शासक हिंदू थे और वहां की जनसंख्या मुस्लिम बहुसंख्यक थी। यहां के शासक भी कश्मीर की संप्रभुता को बनाए रखने के पक्ष में थे और भारत या पाकिस्तान किसी भी देश में नहीं सम्मिलित होना चाहते थे। किंतु कुछ समय पश्चात ही नवस्थापित पाकिस्तान ने कबाइलियों को भेजकर कश्मीर पर आक्रमण कर दिया और कबाइली तेजी से श्रीनगर की ओर बढ़ने लगे। शीघ्र ही पाकिस्तान ने अपनी सेनाएं भी कबाइली आक्रमणकारियों के समर्थन में कश्मीर भेज दीं।
अंत में विवश होकर कश्मीर के शासक ने 26 अक्टूबर 1947 को भारत के साथ विलय-पत्र (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर कर दिए। तब कबाइलियों को खदेड़ने के लिए भारतीय सेना जम्मू-कश्मीर भेजी गई। भारत ने पाकिस्तान समर्थित आक्रमण की शिकायत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में दर्ज कराई तथा उसने जनमत संग्रह द्वारा समस्या के समाधान की सिफारिश की।
भारत में सम्मिलित हो जाने के बाद भी दिक्कत दे रही थीं ये रियासतें
बहुत सी छोटी-छोटी रियासतें जिनकी संख्या 216 थी और जो अलग इकाई के रूप में नहीं रह सकती थीं उन्हें संलग्न प्रांतों में विलय कर दिया गया था। इन्हें श्रेणी-ए में सूचीबद्ध किया गया। जैसे- छत्तीसगढ़ और उड़ीसा की 39 रियासतें बंबई प्रांत में सम्मिलित कर दी गईं।
कुछ रियासतों का विलय एक इकाई में इस प्रकार किया गया कि वो केंद्र द्वारा प्रशासित की जाएं। इन्हें श्रेणी-सी में सूचीबद्ध किया गया। इसमें 61 रियासतें सम्मिलित थीं। इस श्रेणी में हिमाचल प्रदेश, विंध्य प्रदेश, भोपाल, बिलासपुर, मणिपुर, त्रिपुरा एवं कच्छ की रियासतें थीं।
एक अन्य प्रकार का विलय राज्य संघों का गठन करना था। इनकी संख्या पांच थी। ये रियासतें थींःकाठियावाड़ की संयुक्त रियासतें, मत्स्य प्रदेश की संयुक्त रियासतें, पटियाला और पूर्वी पंजाब रियासती संघ, विंध्य प्रदेश और मध्य भारत के संघ तथा राजस्थान, त्रावणकोर और कोचीन की रियासतें।
विलय और समन्वय
शुरूआत में रक्षा, संचार अवस्था तथा विदेशी मामलों के मुद्दे पर ही इन रियासतों का विलय किया गया था किंतु कुछ समय पश्चात यह महसूस किया जाने लगा कि आपस में सभी का निकट संबंध होना अनिवार्य है। पांचों राज्य संघ तथा मैसूर ने भारतीय न्याय क्षेत्र को स्वीकार कर लिया। इन्होंने समवर्ती सूची के विषयों (कर को छोड़कर), अनुच्छेद 238 के विषयों तथा केंद्र की नियंत्रण शक्ति को 10 वर्षों के लिए स्वीकार कर लिया। सातवें संशोधन (1956) से श्रेणी-बी को समाप्त कर दिया गया। अंत में सभी रियासतें पूर्णरूपेण भारत में सम्मिलित हो गईं तथा भारत की एकीकृत राजनीतिक व्यवस्था का अंग बन गईं।
राजाओं से क्यों चिढ़े थे नेहरू जी
रियासतों के विलय के मुद्दे पर नेहरू के अपने ठोस विचार थे। वह सामंती तानाशाही और आम जनता के आंदोलनों का पूरी तरह दमन किए जाने के खिलाफ थे। वह इन महाराजाओं के सम्राट बनने की मानसिकता से चिढ़े हुए थे।
सबसे पहला विलय किसका
बीकानेर के महाराजा उन राजाओं में एक थे जो सबसे पहले पटेल के पक्ष में आ गए। उनके दीवान का नाम के एम पणिक्कर था, जो बहुत प्रसिद्ध इतिहासकार थे। पणिक्कर ने दूसरों की तुलना में पहले ही भांप लिया था कि राष्ट्रवादी ताकतों को रोकना अब असंभव है और जिसने इनके साथ समझौता नहीं किया वो इतिहास के बियावान में खो जाएगा। अप्रैल 1947 में बीकानेर ने अन्य दूसरे रजवाड़ों से अपील की कि वो संविधान सभा में शामिल हो जाएं।
संविधान सभा में शामिल होने वाला पहला राज्य बड़ौदा था। वह फरवरी में ही संविधान सभा में आ चुका था। पणिक्कर की अपील के बाद दर्जनों रियासतों ने संविधान सभा में शामिल होने का फैसला किया।
पाकिस्तान के हिस्से की रियासतें
बंटवारे और आजादी के बाद पाकिस्तान के हिस्से में 13 रियासतें आई थीं। इन रियासतों के नाम इस प्रकार थेः
- स्वात: 1969 में यहां के शासक मियांगुल अब्दुल वदूद ने अपनी रियासत को पाकिस्तान का अभिन्न अंग घोषित कर दिया था।
- खैरपुर: तीन अक्तूबर 1947 को खैरपुर के नवाब जॉर्ज अली मुराद खान ने अपनी रियासत पाकिस्तान में शामिल हो गई थी।
- बहावलपुर: खैरपुर के साथ ही उसी दिन बहावलपुर के नवाब सादेक मोहम्मद खान ने भी पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर दी थी।
- चितरल: 1969 में चितरल (मुजफ्फर उल मुल्क) भी पाकिस्तान में शामिल हो गया था। वहां के शासक सैफ-उर-रहमान ने पाकिस्तान में शामिल होने से इनकार कर दिया था। ऐसे में पाकिस्तान सरकार ने उन्हें देश निकाला दे दिया था। 1969 में तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति याह्या खान ने चितरल को पाकिस्तान का अभिन्न अंग घोषित कर दिया था।
- हुंजा: तीन नंवबर 1947 को हुंजा के नवाब ने मोहम्मद अली जिन्ना को टेलीग्राम भेजकर अपनी रियासत को पाकिस्तान में शामिल करने की घोषणा कर दी थी।
- नागर: यहां के शासक शौकत अली खान ने पाकिस्तान में इसका विलय कर दिया था।
- अंब: अंब के नवाब मुहम्मद फरीद खान ने अपनी रियासत को स्वायत्त रखने की शर्त पर पाकिस्तान में शामिल होना स्वीकार किया था। 1971 में यह स्वायत्ता समाप्त कर दी गई थी।
- फुलरा: फुलरा के नवाब अता मुहम्मद खान ने 1949 में उत्तर-पश्चिम फ्रंटियर प्रांत का हिस्सा होना स्वीकार किया था।
- दिर: दिर के नवाब जहां खान ने कश्मीर में हमले के दौरान पाकिस्तानी फौज का साथ देने के लिए अपनी फौज भी भेजी थी। लेकिन वो खुद पाकिस्तान में शामिल नहीं हुए थे। 1961 में याह्या खान ने उन्हें देश निकाला दे दिया और उनके स्थान पर उन्हीं के बेटे मोहम्मद शाह खुसरो खान को गद्दी पर बैठा दिया। मोहम्मद शाह पाकिस्तानी सेना में मेजर जनरल था। 28 जुलाई 1969 को याह्या खान ने दिर के पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर दी।
- खारन: 1948 में खारन के अंतिम नवाब हबीबुल्ला खान बलोच ने अपनी रियासत को पाकिस्तान में शामिल कर दिया।
- लास बेला: लास बेला रियासत 1955 तक लास बेला बलोचिस्तान स्टेट यूनियन का हिस्सा थी। 1970 में इसे बलोचिस्तान का एक जिला बना दिया गया।
- मकरन: 1948 में मकरन रियासत का विलय पाकिस्तान में हुआ। इसके बाद 1970 में यह बलोचिस्तान राज्य का एक जिला बना दिया गया।
- खनात: 1952 में खनात के शासक अहमद यार खान ने अपनी रियासत को बलोचिस्तान का हिस्सा घोषित किया था। 20 जून 1958 को बलोचिस्तान ने खुद को स्वतंत्र घोषित किया। इसके अगले ही दिन तत्कालीन राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने देश में मार्शल लॉ लागू करके बलोचिस्तान पर कब्जा करते हुए उसे पाकिस्तान का राज्य घोषित कर दिया था।