हरियाणा विस चुनावः 42 साल से नहीं जीती कांग्रेस, आज तक कायम भजनलाल परिवार का इतिहास
हरियाणा के लोग इतिहास रचने में माहिर हैं, फिर चाहे वह खेल का क्षेत्र हो या राजनीति का। वहीं कांग्रेस को 42 साल जीत हासिल नहीं हुई। खेल के मामले में राष्ट्रीय फलक पर पहुंचा हरियाणा आज कल राजनीति को लेकर चर्चा में है। अभी तक इनेलो और कांग्रेस के बीच जूझ रही हरियाणा की जनता ने ऐसा इतिहास रचा कि 2014 में सत्ता की बागडोर भाजपा के हाथ में दे दी। हरियाणा गठन के बाद ऐसा पहली बार हुआ कि आम तौर पर दो से चार सीटों तक कायम रहने वाली भाजपा 47 सीटों तक पहुंच गई। यह इतिहास सिर्फ विधानसभा चुनाव तक सीमित नहीं रहा। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जनता ने इतिहास रचा और दस की दस सीटें भाजपा की झोली में डाल दीं। हवा ऐसी चली कि बडे-बड़े दिग्गज अपनी सीटें नहीं बचा सके। जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान हुड्डा पिता पुत्र को हुआ।
पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुडडा जहां सोनीपत से लोकसभा चुनाव हारे, वहीं दीपेंद्र हुड्डा को रोहतक से मुंह की खानी पड़ी। अब बारी विधानसभा चुनाव की है। इस चुनाव में आलाकमान ने कांग्रेस की कमान तो हुड्डा के हाथ में दे दी, लेकिन हुड्डा कांग्रेस को हरियाणा में कमान दिलवाने में कितने सफल होंगे, यह भविष्य बताएगा। फिलहाल भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भाजपा की घेराबंदी के लिए मजबूत प्रत्याशियों का चयन शुरू कर दिया है।
पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुडडा जहां सोनीपत से लोकसभा चुनाव हारे, वहीं दीपेंद्र हुड्डा को रोहतक से मुंह की खानी पड़ी। अब बारी विधानसभा चुनाव की है। इस चुनाव में आलाकमान ने कांग्रेस की कमान तो हुड्डा के हाथ में दे दी, लेकिन हुड्डा कांग्रेस को हरियाणा में कमान दिलवाने में कितने सफल होंगे, यह भविष्य बताएगा। फिलहाल भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भाजपा की घेराबंदी के लिए मजबूत प्रत्याशियों का चयन शुरू कर दिया है।
42 साल से जीत का इंतजार कर रही कांग्रेस
1977 में कांग्रेस की जीत के बाद से हरियाणा की नारनौंद सीट कांग्रेस के खाते में नहीं जा सकी। नौ विधानसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस को अभी भी आस है कि यह सीट झोली में आएगी। वर्तमान में भाजपा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु यहां से विधायक हैं। हुड्डा परिवार को समय समय पर कोसने वाले अभिमन्यु के लिए कांग्रेस कितनी मुश्किलें खड़ी करती है, इस चुनाव में यह रोचक होगा।
दिग्गजों की लहर यहां होती है बेअसर
कैथल जिले की पुंडरी सीट ऐसी है, जहां पर दिग्गजों की लहर बेअसर साबित होती है। मोदी की लहर के बावजूद 2014 में यहां से निर्दलीय प्रत्याशी जनता ने जितवाया। पिछले करीब 25 साल से यहां से आजाद उम्मीदवार ही विधानसभा की चौखट तक पहुंचता है। 1996 से शुरू हुआ यह सिलसिला आज तक जारी है। भूले भटके कोई जीता हुआ आजाद उम्मीदवार किसी पार्टी का दामन थाम ले तो जनता उसे घर का रास्ता दिखा देती है। इस चुनाव में यहां की हार जीत पर भी नजर रहेगी।
यहां भजनलाल के गीत अभी तक गाते हैं लोग
राजनीतिक आस्था का नमूना देखना हो तो हिसार के आदमपुर में आइये। पूर्व सीएम भजनलाल भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन क्षेत्र की जनता अभी तक उनके परिवार को तवज्जो देती है। आदमपुर से पिछले 52 साल से भजनलाल परिवार का ही कब्जा है। मोदी लहर में भी कुलदीप बिशभनोई यह सीट बचाने में कामयाब रहे। 1968 में पहली बार यहां से भजनलाल को चुन कर जनता ने सेवा के लिए भेजा था।
दिग्गजों की लहर यहां होती है बेअसर
कैथल जिले की पुंडरी सीट ऐसी है, जहां पर दिग्गजों की लहर बेअसर साबित होती है। मोदी की लहर के बावजूद 2014 में यहां से निर्दलीय प्रत्याशी जनता ने जितवाया। पिछले करीब 25 साल से यहां से आजाद उम्मीदवार ही विधानसभा की चौखट तक पहुंचता है। 1996 से शुरू हुआ यह सिलसिला आज तक जारी है। भूले भटके कोई जीता हुआ आजाद उम्मीदवार किसी पार्टी का दामन थाम ले तो जनता उसे घर का रास्ता दिखा देती है। इस चुनाव में यहां की हार जीत पर भी नजर रहेगी।
यहां भजनलाल के गीत अभी तक गाते हैं लोग
राजनीतिक आस्था का नमूना देखना हो तो हिसार के आदमपुर में आइये। पूर्व सीएम भजनलाल भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन क्षेत्र की जनता अभी तक उनके परिवार को तवज्जो देती है। आदमपुर से पिछले 52 साल से भजनलाल परिवार का ही कब्जा है। मोदी लहर में भी कुलदीप बिशभनोई यह सीट बचाने में कामयाब रहे। 1968 में पहली बार यहां से भजनलाल को चुन कर जनता ने सेवा के लिए भेजा था।