नहीं चली दबाव की राजनीति, टिकट बंटवारे में भाजपा सख्त
अमित शाह - फोटो : bharat rajneeti
हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण के साथ ही सीट बंटवारे के मामले में भाजपा ने दबाव की राजनीति को खारिज करते हुए तल्ख तेवर दिखाए। महाराष्ट्र में शिवसेना को छोटा भाई बनने पर मजबूर किया तो हरियाणा में अकाली दल को रत्ती भर भी भाव नहीं दिया। पार्टी के अंदर दबाव बनाने वाले नेताओं के साथ-साथ दलबदलुओं की एक नहीं चली। सिर्फ पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के खांचे में खरे उतरने वाले नेताओं को ही टिकट मिला। टिकट वितरण और सीट बंटवारे में सबसे अधिक खींचतान महाराष्ट्र में हुई। शिवसेना भाजपा पर लगातार बराबर सीट देने का दबाव बना रही थी। पार्टी सूत्रों के मुताबिक इसी दौरान शाह ने केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के जरिये शिवसेना प्रमुख को दो टूक संदेश भिजवाया।
सहयोगी के सामने 124 सीटों का प्रस्ताव रखते हुए साफ संदेश दिया कि दूसरी स्थिति में भाजपा अकेले चुनाव लडने के लिए तैयार है। जाहिर तौर पर विधानसभा चुनाव में चुनाव पूर्व गठबंधन में शिवसेना को कम सीटें दे कर भाजपा ने यह धारणा बना दी है कि राज्य में भविष्य में वही बड़े भाई की भूमिका में रहेगी।
हरियाणा में भी पार्टी नेतृत्व के सामने किसी नेता की दबाव की राजनीति नहीं चली। सीएम मनोहर लाल को अपने करीबी राव नरबीर सहित कुछ समर्थकों की बलि देनी पड़ी तो तमाम दबाव के बावजूद राव इंद्रजीत न तो अपनी बेटी को टिकट दिला पाए और न ही अपने समर्थक विधायकों का टिकट ही बचा पाए। नेतृत्व ने टिकट की चाह में पाला बदलने वाले दूसरे दलों के विधायकों को भी जीत के पैमाने पर कसा। इस कारण 15 में से 8 विधायक टिकट पाने से वंचित रहे।
क्या था पैमाना
दरअसल शाह ने राज्य की हर सीट का वर्ष 2014, 2019 के लोकसभा चुनाव, पिछला विधानसभा चुनाव और स्थानीय निकाय के चुनाव के परिणामों के आधार पर विश्लेषण कराया था। इसके अलावा कई दौर में आंतरिक सर्वे कराए गए। इसके आधार पर तैयार पैनल में शामिल उम्मीदवारों को ही टिकट दिये गए।