झारखंड: क्या है पत्थलगड़ी आंदोलन, जिसमें दर्ज केस हेमंत सोरेन सरकार ने लिए वापस - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

.

अन्य विधानसभा क्षेत्र

बेहट नकुड़ सहारनपुर नगर सहारनपुर देवबंद रामपुर मनिहारन गंगोह कैराना थानाभवन शामली बुढ़ाना चरथावल पुरकाजी मुजफ्फरनगर खतौली मीरापुर नजीबाबाद नगीना बढ़ापुर धामपुर नहटौर बिजनौर चांदपुर नूरपुर कांठ ठाकुरद्वारा मुरादाबाद ग्रामीण कुंदरकी मुरादाबाद नगर बिलारी चंदौसी असमोली संभल स्वार चमरौआ बिलासपुर रामपुर मिलक धनौरा नौगावां सादात

सोमवार, 30 दिसंबर 2019

झारखंड: क्या है पत्थलगड़ी आंदोलन, जिसमें दर्ज केस हेमंत सोरेन सरकार ने लिए वापस

जिसमें दर्ज केस हेमंत सोरेन सरकार ने लिए वापस

झारखंड में रविवार को हेमंत सोरेन ने राज्य के नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। जिसके बाद फैसला लिया गया कि राज्य में दो साल पहले पत्थलगड़ी आंदोलन के दौरान दर्ज सभी मामलों को वापस लिया जाएगा। इसे लेकर राज्य के मंत्रिमंडल सचिव का कहना है कि राज्य सरकार के फैसले के अनुसार छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी एक्ट) में संशोधन का विरोध करने और पत्थलगड़ी करने के जुर्म में दर्ज किए गए सभी मामलों को वापस लेने का काम शुरू होगा। इससे संबंधित अधिकारियों को कार्रवाई के निर्देश दे दिए गए हैं।

क्या है पत्थलगड़ी और इसकी परंपरा

आदिवासी समुदाय और गांवों में विधि-विधान/संस्कार के साथ पत्थलगड़ी (बड़ा शिलालेख गाड़ने) की परंपरा पुरानी है। इनमें मौजा, सीमाना, ग्रामसभा और अधिकार की जानकारी रहती है। वंशावली, पुरखे तथा मरनी (मृत व्यक्ति) की याद संजोए रखने के लिए भी पत्थलगड़ी की जाती है। कई जगहों पर अंग्रेजों या फिर दुश्मनों के खिलाफ लड़कर शहीद होने वाले वीर सपूतों के सम्मान में भी पत्थलगड़ी की जाती रही है।
दरअसल, पत्थलगड़ी उन पत्थर स्मारकों को कहा जाता है जिसकी शुरुआत इंसानी समाज ने हजारों साल पहले की थी। यह एक पाषाणकालीन परंपरा है जो आदिवासियों में आज भी प्रचलित है। माना जाता है कि मृतकों की याद संजोने, खगोल विज्ञान को समझने, कबीलों के अधिकार क्षेत्रों के सीमांकन को दर्शाने, बसाहटों की सूचना देने, सामूहिक मान्यताओं को सार्वजनिक करने आदि उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रागैतिहासिक मानव समाज ने पत्थर स्मारकों की रचना की।

पत्थलगड़ी की इस आदिवासी परंपरा को पुरातात्त्विक वैज्ञानिक शब्दावली में ‘महापाषाण’, ‘शिलावर्त’ और मेगालिथ कहा जाता है। दुनिया भर के विभिन्न आदिवासी समाजों में पत्थलगड़ी की यह परंपरा मौजूदा समय में भी बरकरार है। झारखंड के मुंडा आदिवासी समुदाय इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं, जिनमें कई अवसरों पर पत्थलगड़ी करने की प्रागैतिहासिक और पाषाणकालीन परंपरा आज भी प्रचलित है। पत्थलगड़ी कई तरह का होता है। जानकारों का मानना है कि पत्थलगड़ी के कम से कम 40 प्रकार हैं, लेकिन वर्तमान में सात प्रकार के पत्थलगड़ी ही प्रचलित हैं।

क्यो उठ रहे हैं इस परंपरा को लेकर सवाल

ग्रामसभा द्वारा पत्थलगड़ी में जिन दावों का उल्लेख किया जा रहा है, उसे लेकर सवाल उठने लगे हैं। दरअसल, पत्थलगड़ी के जरिए दावे किए जा रहे हैं कि आदिवासियों के स्वशासन व नियंत्रण वाले क्षेत्र में गैरआदिवासी प्रथा के व्यक्तियों के मौलिक अधिकार लागू नहीं है। लिहाजा इन इलाकों में उनका स्वंतत्र भ्रमण, रोजगार-कारोबार करना या बस जाना, पूर्णतः प्रतिबंध है।

पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में संसद या विधानमंडल का कोई भी सामान्य कानून लागू नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 15 (पारा 1-5) के तहत ऐसे लोग जिनके गांव में आने से यहां की सुशासन शक्ति भंग होने की संभावना है, तो उनका आना-जाना, घूमना-फिरना वर्जित है। वोटर कार्ड और आधार कार्ड आदिवासी विरोधी दस्तावेज हैं तथा आदिवासी लोग भारत देश के मालिक हैं, आम आदमी या नागरिक नहीं। संविधान के अनुच्छेद 13 (3) क के तहत रूढ़ी और प्रथा ही विधि का बल यानी संविधान की शक्ति है।

क्यों चल रहा है यह आंदोलन?

पत्थलगड़ी आंदोलन के पीछे जल, जंगल, जमीन और आदिवासियों की निजी जिंदगी में बाहरी लोगों का हस्तक्षेप है। लेकिन जमीन की सुरक्षा के लिए आदिवासी आवाज उठाते हैं तो उन्हें दबाया जाता है और उनका दमन किया जाता है।

दरअसल, आदिवासियों को यह आशंका सता रही है कि सरकार अंग्रेजों के जमाने में बनी छोटा नागपुर काश्तकारी कानून में संशोधन कर उनकी जमीन छीनने की कोशिश में जुटी है, इसी कारण बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू के लोग भी कई मौके पर सरकार के रुख पर नाराजगी जता चुके हैं।

साल 2016 में सरकार ने छोटा नागपुर काश्तकारी कानून में संशोधन करने की कोशिश की लेकिन पूरे राज्य में बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था और सरकार को अपने पैर पीछे करने पड़े। इन दिनों कई गांवों में ‘अबुआ धरती, अबुआ राज (अपनी धरती, अपना राज) अब चलेगा ग्राम सभा का राज’ जैसे नारे गूंजते हैं। हालांकि इन गांवों में किसी के आने-जाने पर सीधी रोक तो नहीं है पर अनजान व्यक्ति को टोका जरूर जाता है।

तीर-कमान से लैस युवक, हर गतिविधियों पर पैनी नजर रखते हैं। वैसे पत्थलगड़ी को लेकर कई ग्राम प्रधान मुंह नहीं खोलना चाहते जबकि दर्जनों ग्राम प्रधानों को पत्थलगड़ी का यह स्वरूप उचित नहीं लग रहा है। उनका पक्ष है कि सरकारी योजना-कार्यक्रम का लाभ नहीं लेंगे तो विकास की बात बेमानी होगी। पंचायतों को भी जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी।

कई प्रकार के होते हैं पत्थलगड़ी

पत्थर स्मारक- ये खड़े और प्रायः अकेले होते हैं।
मृतक स्मारक पत्थर- ये चौकोर और टेबलनुमा होते हैं। जैसे चोकाहातु (झारखंड) का ससनदिरि के पत्थर स्मारक।
कतारनुमा स्मारक- ये एक कतार में या फिर समान रूप से कई कतारों में होते हैं।
अर्द्धवृताकार स्मारक- ये अर्द्धवृताकार होते हैं।
वृताकार स्मारक- ये पूरी तरह से गोल होते हैं। जैसे महाराष्ट्र के नागपुर स्थित जूनापाणी के शिलावर्त।
ज्यामितिक स्मारक- ये ज्यामितिक आकार वाले होते हैं।
खगोलीय स्मारक- ये अर्द्धवृताकार, वृताकार, ज्यामितिक और टी-आकार के होते हैं। जैसे पंकरी बरवाडीह (झारखंड) के पत्थर स्मारक।

Loan calculator for Instant Online Loan, Home Loan, Personal Loan, Credit Card Loan, Education loan

Loan Calculator

Amount
Interest Rate
Tenure (in months)

Loan EMI

123

Total Interest Payable

1234

Total Amount

12345