Doctors Day today : ये नौजवान चिकित्सक, जो जगाते हैं भरोसा, पढ़िए इन योद्धाओं की कहानी - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

.

अन्य विधानसभा क्षेत्र

बेहट नकुड़ सहारनपुर नगर सहारनपुर देवबंद रामपुर मनिहारन गंगोह कैराना थानाभवन शामली बुढ़ाना चरथावल पुरकाजी मुजफ्फरनगर खतौली मीरापुर नजीबाबाद नगीना बढ़ापुर धामपुर नहटौर बिजनौर चांदपुर नूरपुर कांठ ठाकुरद्वारा मुरादाबाद ग्रामीण कुंदरकी मुरादाबाद नगर बिलारी चंदौसी असमोली संभल स्वार चमरौआ बिलासपुर रामपुर मिलक धनौरा नौगावां सादात

गुरुवार, 1 जुलाई 2021

Doctors Day today : ये नौजवान चिकित्सक, जो जगाते हैं भरोसा, पढ़िए इन योद्धाओं की कहानी

आज डॉक्टर्स डे पर परीक्षित निर्भय और मनीष कुमार सिंह ने जब देश के अलग-अलग कोने में समाज के इन रक्षकों से बात की तो उन्होंने बस यही कहा- हम न डरे हैं, न थके हैं। कोरोना से यह युद्ध अभी लड़ते रहेंगे और लोगों को बचाएंगे।
कोरोना की दूसरी लहर में व्यवस्था बस देखने भर की थी। हर सांस पर जूझते संक्रमितों के लिए न ऑक्सीजन थी और नजीवन का आखिरी संघर्ष कर रहे मरीजों के लिए अस्पतालों में बिस्तर दवाओं का ऐसा संकट कि लोग शहर-शहर धक्के खा रहे थे। शवों के बोझ तले श्मशान और कब्रिस्तान भी दब चुके थे लेकिन इस महाप्रलय के बीच भी मरीजों का जीवन बचाने के लिए डॉक्टर डटे रहे।

मरीजों के साथ-साथ कई सहकर्मियों व परिजनों को दम तोड़ते देख कर भी पीछे नहीं हटे। लोगों की पीड़ा के वे प्रथम चश्मदीद थे। सब कुछ ठीक होने की उम्मीद में वे परिस्थिति से मुकाबला करते रहे।

48 घंटे लगातार आईसीयू में ड्यूटी दी नहीं देना चाहता था मौत की खबर

डॉ. पवन दत्ता रेजीडेंट डॉक्टर, सफदरजंग, नई दिल्ली

उन विपदा के दिनों के बारे में सोचकर आज भी नींद नहीं आती। हर तरफ बुरा था। मैं 48-48 घंटे की आईसीयू में लगातार ड्यूटी दे रहा था। कई लोगों को हम आईसीयू में नहीं बचा सके, कई को बचाया भी। मुझे उस वक्त सबसे अनुभव यही होता था कि परिवार को मौत की खबर देने की जिम्मेदारी मेरी थी।

मुझे आज भी उन दो मरीजों के चेहरे याद हैं जिनमें एक उम्र 35 और दूसरे की 37 साल श्री। मैंने खुशी-खुशी उनके परिवार को बताया कि मरीज को अगले दिन डिस्चार्ज कर देंगे , अब वह ठीक हैं, लेकिन उसके दो घंटे बाद अचानक मरीज की तबीयत बिगड़ने लगी और दोनों की मौत हो गई।

इसके बाद मेरी हिम्मत टूट गई। समझ नहीं आ रहा था कि उन लोगों को फिर से फोन करके कैसे यह खबर? खैर, मेरी आंखों में आंसू थे और आवाज भी दबी थी। मैंने परिवार को बताया और उन्होंने उस स्थिति को समझा भी।

मरीजों पर हावी नहीं होने दिया डर

डॉ. राहुल भारत रेजिडेंट, केजीएमयू , लखनऊ

कोविड यार्ड में पीपीई किट पहनकर इलाज करना आग की लपटों के बीच काम करने जैसा था। मरीज भी रोजाना हजारों मील होती देख घबराहट में थे। मगर, हमने मरीजों पर डर को कभी हावी नहीं होने दिया। मरीज जब ठीक होकर जाते थे, तो बहुत खुशी होती थी। लेकिन जिन्हें नहीं बचा पाते थे उनके लिए मन को कुत ठेस लगती। कोरोना से बहन आकांधा ने भी चित्रकूट में दम तोड़ दिया।

पिता बना, बेटे से मिला नहीं

मेरी पली भी चिकित्सक हैं। हाल में मैं पिता बना, लेकिन बेटे को ऑनलाइन ही देखा। मैं इस वक्त ब्लैक फंगस के मरीजों की जान बचाने में लगा हूँ।

अनजान बुजुर्ग महिला का किया अंतिम संस्कार, बाद में बेटे को सौंपी अस्थियां

डॉ. वरुण गर्ग, सहायक प्रोफेसर हिंदूराव मेडिकल कॉलेज, नई दिल्ली

उस वक्त अस्पतालों में भीड़ और मरीजों की व्यथा हमारे चारों ओर थी। यह देखना भर ही किसी मानसिक अघात से कम न था। मुझे फोन पर एक व्यक्ति ने बताया कि उसकी मां का कोरोना से निधन हो गया था। यह खुद संक्रमित था और अस्पताल में भर्ती था। उसकी मां का अंतिम संस्कार करने वाला कोई न था।

किसी डॉक्टर से फोन नंबर लेकर उसने मुझे कॉल किया था। मैंने उससे डिटेल ली और 77 वर्षीय निर्मला चन्दोला का शव लेकर निगम बोध घाट पहुंचा। अंतिम संस्कार करने के बाद अस्थियां सुरक्षित रखवा दी। बाद में जब वह ठीक होकर आया तो मैंने उसे अस्थियां सौंपी।

यह पहली बार नहीं था

मेरे जैसे कई डॉक्टरों ने इस प्रकार भी काम किया। मेरे साधी पूरे समय कैसे भी मरीजों की सांसें तो बचाना ही चाहते थे, आड़े वक्त में मदद भी कर रहे थे और उसमें कामयाब हुए ।

चार दोस्तों के साथ संभाला 150 बेड का अस्पताल

डॉ विनोद सीनियर रेजिडेंट, एम्स, ऋषिकेश

पहली लहर के दौरान क्वारंटीन केंद्र खोला गया था। जो दूसरी लहर आते-आते बंद भी हो गया। कोरोना का पहाड़ी क्षेत्रों में कम असर नहीं था। जब एम्स भर गया, तो उस केंद्र को शुरू करने के लिए पूछा गया कि वहां कौन-कौन जाएगा।

3 दिन तक जब कोई सामने नहीं आया, तो मैं अपने दोस्त डॉक्टर राहुल, स्मिता, अजयपाल और डॉक्टर रवि राज के साथ वहां पहुंचा। वहां बहुत गंदगी और अव्यवस्था थी। खुद जगह साफ की। एम्स की मदद से बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराएं 150 बिस्तर वाला केंद्र अभी भी चल रहा है। ऑक्सीजन कंसंट्रेटर भी खुद लाए।

जब सैकड़ों को बचाने में संक्रमित हुए डॉक्टर पूछते 'क्या हम बच पाएंगे?'

डॉ प्रियंका पांडे, रेजिडेंट, लोहिया संस्थान, लखनऊ

मेरी ड्यूटी कोरोना संक्रमण की चपेट में आए डॉक्टरों के इलाज की थी। उस समय दुख होता जब सैकड़ों लोगों की जान बचा चुके कुछ वरिष्ठ चिकित्सक संक्रमित होने पर भर्ती किए जाते और गंभीर स्थिति को समझकर मुझसे पूछते कि क्या वे बच पाएंगे? क्या हम उन्हें बचा सकते हैं? वह पल शायद मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी। हमने अपनी जान की परवाह किए बिना अधिक वायरल लोड वाले मरीजों को सीपैप वेंटिलेटर और एक्मो सपोर्ट देकर जान बचाने की हर संभव कोशिश की, जो अब भी जारी है।

अस्पताल ही बन गया घर

मैं कोरोना की पहली लहर से ही मरीजों के के इलाज में जुटी थी अस्पताल ही घर बन गया था। जब मरीज स्वस्थ होकर घर जाते, तो सबसे ज्यादा खुशी होती थी। जिन्हें नहीं बचा सके उनका चेहरा आज भी कभी कभी आंखो के सामने घूम जाता है। हमने अहाय होकर अपने सामने कई लोगों को मरते देखा है।

गांव में जाकर किया इलाज

डॉक्टर तौसीफ हैदर खान, केजीएमयू, लखनऊ

मेडिकल की पढ़ाई पूरी होने के साथ ही भयावह कोरोना से सामना हुआ। हमारे पास संसाधन कम थे। मरीज बहुत ज्यादा मैं केजीएमयू से कार्यकाल पूरा होने के बाद मई के आखिर में सिद्धार्थनगर के अकरहरा अपने गांव चला गया। वहां एक हजार से ज्यादा मरीजों का इलाज किया।

छुट्टी का ख्याल आया ही नहीं दूसरी लहर इतनी भयावह थी कि छुट्टी है आराम करने का ख्याल तो आया ही नहीं। आराम करने की सोचते थे तो वार्ड में भर्ती कोरोना मरीजों की कराह झकझोर देती थी। यही इच्छा होती थी सब को बचा लें।

शब्दों में बयां नहीं कर सकते

डॉक्टर प्रेरणा तायल, स्त्री एवं प्रसूति, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज

दूसरी लहर में हमें अजीब अनुभव मिले। 100 साल से ही पुराने अस्पताल में पहली बार इतनी गर्भवती महिलाओं की मौत होते देखी। दूसरी और हमने मां-नवजात को दूर भी नहीं होने दिया। आज जब वह मां अपने बच्चों के वीडियो में हमें भेजती हैं, तो खुशी शब्दों में बयां नहीं कर सकते।

सतर्कता नहीं छोड़िए

मेरी समाज से यही अपील है कि मैं, मेरे साथी और अन्य सभी डॉक्टर आपके लिए लड़ रहे हैं। आप बेखौफ रहिए, लेकिन सतर्कता को छोड़िए नहीं।

कम उम्र में मिले बहुत अनुभव

डॉक्टर पल्लवी त्रिपाठी, जूनियर रेजिडेंट, पटना, एम्स

मुझे बहुत ज्यादा चिकित्सकीय अनुभव नहीं था, लेकिन फिर भी हिम्मत नहीं हारी। मुझे एक गर्भवती महिला याद है। आपातकाल में आने के बाद उसने बस यही चाहा था कि बच्चा बच जाए। उससे पहले एक बार उसका गर्भपात हो चुका था।

उसने पूछा मेरे बच्चे को तो कुछ नहीं होगा उसकी आंखों में बहुत से सवाल थे और उस नन्ही परी को लेकर मैं उनके पास पहुंची थी। मैं बता नहीं सकती कि वह पल कितना उत्साह और खुशी वाला था। 25 साल की उम्र में यह अनुभव बहुत कुछ सिखाने वाला था।

Loan calculator for Instant Online Loan, Home Loan, Personal Loan, Credit Card Loan, Education loan

Loan Calculator

Amount
Interest Rate
Tenure (in months)

Loan EMI

123

Total Interest Payable

1234

Total Amount

12345