- प्रधानमंत्री कार्यालय से मांगी तोप खरीदने की अनुमति
- तोपखाना और सैन्य संतुलन पर असर पड़ने का दे रहे हैं तर्क
- डीआरडीओ की 7वें जोन में फायर करने वाली तोप का इंतजार करने के मूड में नहीं
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गुरुवार, 1 जुलाई 2021
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प्रधानमंत्री रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का सपना देख रहे हैं और सैन्य अधिकारियों को विदेशी तोप लेने की जल्दी है
प्रधानमंत्री रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का सपना देख रहे हैं और सैन्य अधिकारियों को विदेशी तोप लेने की जल्दी है
सेना को अपना तोपखाना मजबूत बनाने के लिए तोपों की जरूरत है। इसको लेकर सेना ने विदेशी तोप खरीदने का लगातार दबाव बना रखा है। इसके समानांतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह देश को रक्षा क्षेत्र में आत्म निर्भर बनाने का संकल्प ले चुके हैं। इसी प्रतिबद्धता के तहत केन्द्र सरकार ने तोप के निर्यात को प्रतिबंधित सूची (दिसंबर 2021 तक के लिए) में डाल रखा है।
सेना चाहती है कि उसे इस्राइल की तोपे मिल जाए और इसके लिए 400 तोपों के सौदे को हरी झंडी दे दी जाए। हालांकि अभी रक्षा मंत्रालय ने सेना मुख्यालय के प्रस्ताव पर कोई निर्णय नहीं लिया है और गेंद प्रधानमंत्री कार्यालय के पाले में डाल दी है।
क्या है भारतीय सेना का तर्क?
सेना का कहना है कि उसका तोपखाना और देश का शक्ति संतुलन प्रभावित हो रहा है। इसके पीछे सैन्य अधिकारी चीन और पाकिस्तान से मिल रही दोहरी चुनौती का तर्क दे रहो हैं। उनका कहना है कि तोपों की कमी पूरी करने के लिए सेना के पास दो विकल्प हैं। पहला विकल्प है कि सेना देश में ही निर्मित, विकसित 155 एमएम और 52 कैलिबर की तोप प्राप्त करे। इसके लिए सरकारी क्षेत्र की गन कैरिज फैक्ट्री (सीजीएफ) धुनष तोप को समय पर तैयार करके नहीं दे पा रही है।
इसके अलावा डीआरडीओ की तकनीक पर आधारित टाटा डिफेंस और भारत फोर्ज द्वारा विकसित एडवांस टोड आर्टिलरी गन (एटीएजी) अभी परीक्षण और पीएसक्यूआर प्रक्रिया से गुजर रही है। इसलिए सेना चाहती है कि रक्षा मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय इस्राइल के एल्बिट सिस्टम द्वारा विकसित 400 आटोनॉमस टोड हावित्जर सिस्टम (एटीएचओएस) सौदे को अंतिम रूप देने की अनुमति दे दे।
क्या है डीआरडीओ के एटीएजी की क्षमता?
एटीएजी डीआरडीओ द्वारा विकसित टोड हावित्जर तोप है। इसे डीआरडीओ की आर्ममेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट ने 2013 में इस परियोजना को शुरू करके विकसित किया है। 2019 में इस तोप का प्रोटोटाइप टाटा पॉवर स्ट्रेटजिक इंजीनियरिंग डिवीजन और भारत फोर्ज लिमिटेड ने तैयार किया है। यह तोप -3 से +75 डिग्री के इलेवेशन के साथ 15 सेकेंड में तीन राऊंड फायर करने में सक्षम है। डीआरडीओ का दावा है कि उसकी तोप 48.07 किलोमीटर तक मार करने तथा सातवें जोन में फायर करने में सक्षम दुनिया की पहली तोप है। अभी तक की सभी तोपें केवल छठवें जोन तक फायर करने में सक्षम हैं।
डीआरडीओ का वीटो, रक्षा मंत्रालय और सीडीएस भी पक्ष में
रक्षा मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि सेना की यह मांग जनवरी 2021 से लगातार बनी हुई है, लेकिन रक्षा मंत्रालय इस पर कोई निर्णय लेने के मूड में नहीं है। मंत्रालय ने इस सौदे की गेंद प्रधानमंत्री कार्यालय के पास डाल दी है। सूत्र बताते हैं कि मामला आत्मनिर्भर भारत अभियान से जुड़ा है। इस सौदे को लेकर डीआरडीओ ने भी वीटो लगा रखा है। करीब 13 साल पहले डीआरडीओ के वैज्ञानिक एम नटराजन ने सेना की जरूरत के आधार पर टोड गन विकसित करने की पहल शुरू कराई थी।
डीआरडीओ के वैज्ञानिक कहते हैं कि उनके द्वारा विकसित की गई एटीएजी दुनिया की बेहतरीन तोप है। यह सातवें जोन तक फायर करने में सक्षम है और इस्राइल की एटीएचओएस से तुलना में काफी अच्छी है। इसे देश की रक्षा क्षेत्र के दो दिग्गज कंपनी टाटा डिफेंस और भारत फोर्ज ने विकसित किया है। डीआरडीओ के वैज्ञानिक बताते हैं कि अभी तक सेना के परीक्षणों में तोप अपने मानक पर पूरी तरह से खरी उतरी है।
डीआरडीओ के वैज्ञानिकों की माने तो दिन और रात दोनों समय युद्ध में सक्षम इस तोप ने शानदार नतीजा दिया है। इसलिए सेना को एक परीक्षण और होने तक (छह महीना) इंतजार करना चाहिए। इससे आत् निर्भर भारत अभियान को काफी ताकत मिलेगी। रक्षा मंत्रालय सूत्रों की माने तो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, सीडीएस जनरल विपिन रावत भी एटीएजी और आत्मनिर्भर अभियान को बढ़ावा देने के पक्ष में हैं। इसलिए रक्षा मंत्रालय सेना मुख्यालय की मांग पर किसी निर्णायक स्थिति में नहीं पहुंच पा रहा है।
गेंद प्रधानमंत्री कार्यालय के पाले में
सेना मुख्यालय के आर्टिलरी डिवीजन की मांग को देखते हुए रक्षा मंत्रालय ने फिलहाल अभी इस्राइल की एटीएचओएस या डीआरडीओ की एटीएजी पर कोई निर्णय नहीं लिया है। बताते हैं रक्षा सचिव डॉ. अजय कुमार से अनुमति लेकर रक्षा खरीद महानिदेशक वीएल कांताराव ने जून के पहले सप्ताह में इस प्रस्ताव (इस्राइल की एटीएचओएस) को प्रधानमंत्री कार्यालय के संयुक्त सचिव रुद्र गौरव श्रेष्ठ के पास भेज दिया है। प्रधानमंत्री कार्यालय से इस सौदे को अंतिम रुप देने के संदर्भ में मार्ग दर्शन मांगा गया है। सूत्र बताते हैं कि वहां से अनुमति मिलने के बाद इस्राइली तोप सौदे का रास्ता साफ हो सकता है, लेकिन इससे मेक इन इंडिया और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत अभियान को भी बड़ा झटका लगना तय है।
सेना की पसंद रहे हैं विदेशी हथियार, बिना सरकार के दखल के नहीं मिल पाती डीआरडीओ को सफलता
पृथ्वी, अग्नि, आकाश मिसाइल कार्यक्रमों को छोड़ दें तो देश का रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन और इसकी तकनीक कभी भारतीय सैन्य बलों को बहुत रास नहीं आई। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मुख्य युद्धक टैंक अर्जुन है। अर्जुन को सेना के बेड़े में शामिल करने को लेकर सैन्य अधिकारियों ने काफी भेदभाव किया था और इसे सेना के बेड़े में शामिल कराने के लिए तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी।
तत्कालीन रक्षा राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने तो परीक्षण के दौरान अर्जुन टैंक के गियर बॉक्स से छेड़छाड़ के आरोप तक का बयान दे दिया था। दूसरा बड़ा उदाहरण हल्का एवं उन्नत लड़ाकू विमान तेजस है। तेजस को आज भी वायुसेना के कुछ अधिकारी दोयम दर्जे का मानते हैं। डीआरडीओ के वैज्ञानिकों का कहना है कि सैन्य बलों का नजरिया रक्षा क्षेत्र में कभी मेक इन इंडिया या आत्मनिर्भर भारत को प्रोत्साहन देने का नहीं रहा है।
डीआरडीओ के वैज्ञानिकों का कहना है कि सेना को देशी तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए और उन्हें उसमें कमियां बतानी चाहिए। उन कमियों को दूर करके उसे उन्नत बनाना वैज्ञानिकों का काम है। एम नटराजन अक्सर कहा करते थे कि इसी तरह से विदेशों में भी इंड यूजर्स (सशत्र बल) अपने रक्षा तकनीक को उन्नत बनाने में सहायता देते हैं।
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