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रविवार, 9 जनवरी 2022

Assembly elections 2022 :- विधानसभा चुनाव में BJP की प्रतिष्ठा दांव पर, जनादेश हासिल करना एक बड़ी चुनौती

Assembly elections 2022 :-  राजनीतिक दलों की बात करें तो इस विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इन पांच में से चार राज्यों - उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा की सरकार है। इन चारों राज्यों में अपनी सरकारों को बचाकर फिर से जनादेश हासिल करना भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती है।


Assembly elections 2022 HIGHLIGHTS
  • यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा के विधानसभा चुनाव की तारीखों का हुआ ऐलान
  • उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा की सरकार है
  • चारों राज्यों में अपनी सरकारों को बचाकर फिर से जनादेश हासिल करना भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती
Assembly elections 2022 :- चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा के विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। उत्तर प्रदेश में कुल 7 चरणों में- 10 फरवरी, 14 फरवरी, 20 फरवरी, 23 फरवरी, 27 फरवरी, 3 मार्च और 7 मार्च को मतदान होगा। मणिपुर में 2 चरणों में 27 फरवरी और 3 मार्च को मतदान होगा। जबकि अन्य 3 राज्यों- पंजाब, गोवा और उत्तराखंड में एक ही चरण में 14 फरवरी को मतदान होगा। 10 मार्च को इन पांचों राज्यों में मतगणना होगी।

राजनीतिक दलों की बात करें तो इस विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इन पांच में से चार राज्यों - उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा की सरकार है। इन चारों राज्यों में अपनी सरकारों को बचाकर फिर से जनादेश हासिल करना भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती है। पांचवे चुनावी राज्य, पंजाब में पार्टी के लिए अपना विस्तार करना और अपने जनाधार को बढ़ाना एक बड़ी चुनौती है।

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का केंद्र बना हुआ है पंजाब (Punjab remains the center of political accusations and counter-allegations)

सबसे पहले बात करते हैं उस पंजाब की जो आजकल प्रधानमंत्री मोदी की सूरक्षा में चूक के मामले को लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का केंद्र बना हुआ है। 2017 में भाजपा अकाली दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी, जिसमें अकाली दल को 15 और भाजपा को 3 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। पिछले चुनाव में राज्य की कुल 117 सीटों में से 77 सीटों पर जीत हासिल कर कांग्रेस ने प्रदेश में सरकार बनाई थी और अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री बने थे। इस बार अकाली दल ने भाजपा का साथ छोड़ दिया है और 2017 में कांग्रेस को जीत दिलाने वाले अमरिंदर सिंह नई पार्टी बनाकर भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रहे हैं। अकाली दल के साथ अब तक छोटे भाई की भूमिका में चुनाव लड़ने वाली भाजपा पहली बार राज्य में बड़े भाई की भूमिका में अमरिंदर सिंह और अकाली दल के पूर्व नेता सुखदेव सिंह ढ़ींढसा के साथ मिलकर विधान सभा चुनाव लड़ने जा रही है।

2017 में राज्य की केवल 23 सीटों पर चुनाव लड़कर 5.39 प्रतिशत मतों के साथ केवल 3 सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा इस बार 75 सीटों के आसपास लड़ने की तैयारी कर रही है। भाजपा का लक्ष्य राज्य में पार्टी की जड़ों को मजबूत कर पार्टी का विस्तार करना है। भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस सीमावर्ती राज्य में पार्टी की और खासतौर से प्रधानमंत्री की लोकप्रियता को साबित करने की है। पीएम की सुरक्षा में चूक के मामले में पंजाब के मुख्यमंत्री और अन्य कांग्रेसी नेताओं द्वारा लगातार दिए जा रहे बयानों को देखते हुए राज्य में जीत हासिल करना अब पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया है।

UP में दांव पर लगी हुई है मोदी और योगी की प्रतिष्ठा (Modi and Yogi's reputation is at stake in UP)

पीएम मोदी और सीएम योगी की प्रतिष्ठा उत्तर प्रदेश में दांव पर लगी हुई है। 2017 के पिछले विधानसभा चुनाव में सीएम पद के उम्मीदवार की घोषणा किए बिना भाजपा ने नरेंद्र मोदी के चेहरे और अमित शाह की रणनीति के आधार पर चुनाव लड़ा था। अखिलेश सरकार को लेकर मतदाताओं की नाराजगी को भुनाने के साथ ही प्रदेश के जातीय समीकरणों को साधते हुए 2017 में भाजपा को अपने सहयोगी दलों के साथ 325 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। भाजपा को अकेले 40 प्रतिशत के लगभग वोट के साथ 312 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि उसके सहयोगी अपना दल ( एस ) को 9 और ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा को 4 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। 2017 में 21.82 प्रतिशत मत के साथ समाजवादी पार्टी को 47 और 22.23 प्रतिशत मत के साथ बहुजन समाज पार्टी को 19 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इस बार ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा भाजपा की बजाय सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है।

भाजपा इस बार केंद्र और राज्य दोनों के सबसे बड़े चेहरों को आगे कर चुनाव लड़ने जा रही है। पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ के चेहरे और डबल इंजन की सरकार के कामकाज को आगे रखकर भाजपा फिर से जनादेश हासिल करने के लिए प्रदेश के मतदाताओं के पास जा रही है इसलिए यूपी में भाजपा के साथ-साथ इन दोनों नेताओं की प्रतिष्ठा सबसे ज्यादा दांव पर लगी हुई है।

उत्तराखंड में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता से उम्मीद (Hope from Narendra Modi's popularity in Uttarakhand)
2017 में उत्तराखंड में 46.5 प्रतिशत मतों के साथ भाजपा को राज्य की 70 सदस्यीय विधानसभा में 56 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। लेकिन राज्य की जनता के मूड और लगातार बदल रहे समीकरणों को देखते हुए भाजपा को राज्य में 3 बार अपना मुख्यमंत्री बदलना पड़ा। वैसे तो भाजपा वर्तमान विधानसभा के अपने तीसरे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने जा रही है लेकिन पार्टी के दिग्गज नेताओं की नाराजगी और प्रदेश के माहौल को देखते हुए बार-बार सामूहिक नेतृत्व में ही चुनाव लड़ने की बात भी कर रही है। भाजपा को राज्य में प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता से भी काफी उम्मीद है।

मणिपुर और गोवा में बहुमत हासिल कर सरकार बनाना चाहती है भाजपा (BJP wants to form government by securing majority in Manipur and Goa)

अन्य दोनो राज्यों मणिपुर और गोवा में पिछले विधान सभाचुनाव में भाजपा को उल्लेखनीय जीत हासिल नहीं हो पाई थी लेकिन दोनों ही राज्यों में तेजी से सक्रियता दिखाते हुए भाजपा ने कांग्रेस को मात देकर अन्य दलों का समर्थन हासिल कर सरकार का गठन कर लिया। इस बार भाजपा इन दोनों ही राज्यों में अपने बल पर बहुमत हासिल कर सरकार बनाना चाहती है।

2017 के विधान सभा चुनाव में मणिपुर में भाजपा को राज्य की कुल 60 विधान सभा सीटों में से केवल 21 सीट पर ही जीत हासिल हुई थी जबकि कांग्रेस के खाते में भाजपा से ज्यादा 28 सीट आई थी। हालांकि दोनों के बीच मतों का अंतर एक प्रतिशत से भी कम था। लेकिन अन्य दलों के सहयोग से मणिपुर में भाजपा ने पहली बार सरकार बनाई। इस बार भाजपा राज्य में अपनी सरकार के कामकाज और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के बल पर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाना चाहती है।

मणिपुर की तरह ही 2017 में गोवा में भी भाजपा को कांग्रेस से कम सीटों पर जीत हासिल हुई थी लेकिन अन्य दलों के सहयोग से भाजपा ने उस समय प्रदेश में अपनी सरकार बना ली थी। 2017 के चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा 32.48 प्रतिशत वोट तो हासिल हुए थे लेकिन सीटों के मामले में वह कांग्रेस से पिछड़ गई थी।

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