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गुरुवार, 18 अगस्त 2022

आजादी दिलाने में कलमकारों ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई-कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी



वाराणसी। स्वतंत्रता आंदोलन भारतीय इतिहास का वह युग है, जो पीड़ा, कड़वाहट, दंभ, आत्मसम्मान, गर्व, गौरव और सबसे अधिक शहीदों के लहू को समेटे है। स्वतंत्रता के इस महायज्ञ में समाज के प्रत्येक वर्ग ने अपने-अपने तरीके से बलिदान दिए। इस स्वतंत्रता के युग में साहित्यकार और लेखकों ने भी अपना भरपूर योगदान दिया। अंग्रेजों को भगाने में कलमकारों ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई। उनकी भूमिका अतुलनीय है। क्रांतिकारियों से लेकर देश के आम लोगों के अंदर लेखकों ने अपने शब्दों से जोश भरा।

यह विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने बुधवार को योगसाधना केन्द्र में ‘स्वतंत्रता संग्राम में साहित्यकारों का योगदान‘ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में व्यक्त किये। कुलपति ने कहा कि साहित्यकारों के हर शब्दों ने राष्ट्र के लोगों को जागृत कर मूल भाव राष्ट्रीयता, भारतीयता को अन्तर्मन से जोड़ दिया। तमाम परेशानियां सहकर उन्होंने आजादी की अलख जगाई। बंकिमचन्द्र चटर्जी, रवींद्रनाथ टैगोर, बालगंगाधर तिलक और अन्य राष्ट्रभक्तों ने अपने कलम से अमरत्व का मार्ग प्रशस्त किया।

मुख्य वक्ता काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के साहित्य विभागाध्यक्ष प्रो. शिवराम शर्मा ने कहा कि संस्कृत वांग्मय में सम्पूर्ण ब्रहमांड के ज्ञान तत्व निहित हैं। इसी से हम वैश्वीक स्तर पर प्रतिष्ठित हुए हैं। हमारे विद्वान साहित्यकारों ने अपने रचना, छन्द, गीत आदि के माध्यम से जन-जन को जागृत कियो और उनकी इच्छा-शक्ति को बढ़ाया। प्रो. शर्मा ने कहा कि भारतीय ज्ञान राशि सम्पूर्ण प्रकृति व जगत कल्याण के लिए है और यही हमारा धर्म है। जब भी धर्म का स्वरुप बदलकर अधर्म बनेगा तो विनाश की स्थिति उत्पन्न होगी। हम परतंत्र होंगे। स्वाधीनता संग्राम में साहित्यकारों में महावीर प्रसाद द्विवेदी, मैथलीशरण गुप्त, श्रीधर पाठक, माखनलाल चतुर्वेदी, सुभद्रा कुमारी चौहान, जयशंकर प्रसाद आदि ने अपने तलवाररुपी कलम को पैना किया। उन्होंने आम जनता के अंदर राष्ट्रप्रेम जगाकर उन्हें प्रेरित किया। मुख्य अतिथि प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृत, हिन्दी एवं आल्हा के छंदों से स्वाभिमान जागृत हुआ। ऐसे ही वीर सपूतों के कारण हम आजाद हुए।

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