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बुधवार, 31 अगस्त 2022
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गणेश उत्सव की काशी में धूम, श्री काशी गणेशोत्सव कमेटी ने स्थापित की गणेश प्रतिमा, बाल गंगाधर तिलक ने की थी शुरुआत
गणेश उत्सव की काशी में धूम, श्री काशी गणेशोत्सव कमेटी ने स्थापित की गणेश प्रतिमा, बाल गंगाधर तिलक ने की थी शुरुआत
वाराणसी। महादेव की नगरी काशी में सभी धर्म-एवं समुदाय के लोग रहते हैं। यहाँ सभी अपना उत्सव भी खुलकर मनाते हैं। ऐसे में भगवान भोलेनाथ की काशी में बुधवार को उनके पुत्र विघ्नहर्ता गणपति भगवान् गणेश का 7 दिवसीय गणेश उत्सव शुरू हो गया। महाराष्ट्र के रहने वाले वाले मराठी परिवारों ने घरों में विघ्नहर्ता की प्राण प्रतिष्ठा की है तो काशी में एक ऐसी भी जगह हैं जहां विगत 125 वर्षों से विघ्नहर्ता की विधि-विधान से मूर्ती स्थापित कर पूजा-अर्चना की जा रही है। ये है ब्रह्माघाट स्थित श्री काशी गणेशोत्सव कमेटी जिसकी स्थापना 1898 में बाल गंगाधर तिलक ने की थी।
बुधवार को इस समिति ने भी अपने प्रांगण में विघ्नहर्ता की मूर्ती स्थापित की गयी और विधि विधान से उनकी पूजा की गयी। यह उत्सव स्वतंत्रता संग्राम को भी सहायता प्रदान करता था।
कमेटी के उपाध्यक्ष विलास विजय डींगरे ने बताया कि इस वर्ष हम लोग उत्सव का 125वां वर्ष मना रहे हैं। हर वर्ष की तरह हम लोग दूधविनायक से गणेश जी की प्रतिमा को पालकी में बैठाकर वंदना के साथ भवन में लाते हैं और 125 सालों से एक ही डिज़ाइन की मूर्ती को इस प्रांगण में एक निश्चित स्थान पर बैठाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हम लोग विसर्जन के दिन भी भगवान् की पालकी यात्रा निकालते हैं और पालकी निकाल के विधि विधान से वापस इसी भवन में आकर उनका विसर्जन करते हैं।
इस सम्बन्ध में बात करते हुए वेद प्रकाश रामचद्र वेदांती ने बताया कि हम लोगों का इस बार 125वां उत्सव है। हमारे यहां यह उत्सव पुणे से आकर बाल गंगाधर तिलक ने 1898 में आकर यहां यह उत्सव शुरू करवाया था। इसके पीछे वजह थी की उस समय अंग्रेजों ने भीड़ इकट्ठा करने पर पाबंदी लगा रखी थी। ऐसे में बाल गंगाधर तिलक ने जगह-जगह गणेश उत्सव की शुरुआत करवाई थी। इसी क्रम में वाराणसी में भी गणेश उत्सव 1898 में शुरू हुआ हो आज तक अनवरत जारी है।
वहीं भक्तवत्साल जनार्दन शास्त्री ने बताया कि यहाँ विधि विधान से गणेश जी की स्थापना की जाती है। उसके बाद सात दिनों तक षोडशोपचार विधि से पूजन होता है। पुराने लोगों का पद्यगान बच्चे डांडिया बजाते हुए सात दिन तक रोज करते हैं, जिसकी प्रैक्टिस नागपंचमी से शुरू हो जाती है। इसके अलावा चित्रकला, प्रश्न आधारित कार्यक्रम किये जाते हैं।
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