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सोमवार, 5 सितंबर 2022
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने दरगाह हजरत निजामुद्दीन पर हाजिरी लगाई
-दरगाह में चाक-चौबंद रही सुरक्षा, खादिमों ने कराई जियारत
नई दिल्ली, 05 सितंबर (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दावत पर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना अपने पांच दिवसीय सरकारी दौरे पर आज नई दिल्ली पहुंची हैं। यहां पहुंचने के बाद उन्होंने विश्व प्रसिद्ध सूफी संत हजरत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर हाजिरी दी। इस मौके पर दरगाह में सुरक्षा के चाक-चौबंद व्यवस्था की गई थी उन्हें दरगाह के खादिमों ने विधिवत तौर से दरगाह की जियारत कराई। इस दौरान शेख हसीना ने वहां पर दुआ भी की।
शेख हसीना का दरगाह हजरत निजामुद्दीन औलिया से पुराना रिश्ता रहा है। उनके पिता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान और परिवार के सदस्यों की 15 अगस्त 1975 के दिन हत्या कर दी गई थी। तब वह और उनकी बहन ने भारत में शरण ली थी। 1975 से 1981 तक वह दिल्ली में रहीं। वह गाहे-बगाहे हजरत निजामुद्दीन की दरगाह पर आकर हाजिरी दिया करती थीं। जिस समय वह भारत में रह रही थीं, उस दौरान उनकी पहचान छिपाई गई थी। उनका नाम वगैरह भी बदल दिया गया था लेकिन दरगाह के खादिम उन्हें पहचानते थे और उन्हें इज्जत और सम्मान देते थे। उसी दौरान दरगाह के एक खादिम ने उन्हें बताया कि उनके पिता ने भी 9 अगस्त 1946 को दरगाह हजरत निजामुद्दीन में हाजिरी दी थी। इस पर वह काफी विचलित हुईं। उन्होंने सब कुछ भूलकर बांग्लादेश वापस जाने और वहां पर संघर्ष करने का फैसला किया। अपने पिता के हत्यारों को सजा दिलाने का पुख्ता इरादा किया। ऐसा माना जाता है हजरत निजामुद्दीन की दरगाह से ही उन्होंने प्रेरणा लेकर बांग्लादेश का रुख किया था और उन्होंने वहां जाकर संघर्ष किया और प्रधानमंत्री के पद पर पदासीन हुईं।
दरगाह के चीफ इंचार्ज काशिफ निजामी ने बताया कि उन्हें भारत सरकार की तरफ से इसकी जानकारी दी गई कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना अपनी भारत यात्रा के दौरान दरगाह हजरत निजामुद्दीन पर हाजिरी देने के लिए आएंगी। प्रधानमंत्री शेख हसीना की दरगाह पर हाजिरी को लेकर काफी तैयारियां की गईं और दरगाह को अच्छी तरह से सजाया संवारा गया। उन्होंने बताया कि दरगाह पर हाजिरी के दौरान उन्होंने दरगाह पर गुलपोशी की और चादर चढ़ाई। साथ ही फातेहा भी पढा। आसिफ निजामी ने बताया कि वह काफी गंभीर मुद्रा में दिखाई पड़ीं। शायद उन्हें उस समय के हालात याद आ गए जब वह अपने दिल्ली प्रवास के दौरान दरगाह पर आती रहती थीं।
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