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बुधवार, 14 सितंबर 2022
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Varanasi news : कथालोचना के पुराने फ्रेम से बाहर लाती है हिंदी कहानी वाया आलोचना, प्रोफेसर नीरज खरे की संपादित पुस्तक का लोकार्पण
Varanasi news : कथालोचना के पुराने फ्रेम से बाहर लाती है हिंदी कहानी वाया आलोचना, प्रोफेसर नीरज खरे की संपादित पुस्तक का लोकार्पण
वाराणसी। प्रेमचंद ने हिंदी कहानी के लिए जो उपजाऊ जमीन तैयार की उस पर हिंदी कहानी की फसल आज तक लहलहा रही है। प्रेमचंद और उनके समकालीन जयशंकर प्रसाद ने हिंदी कहानी का जो पौधा लगाया था, वह आज किस कदर छायादार और फल-फूल देने वाला है, वह नीरज खरे द्वारा संपादित किताब को पढ़ते हुए बार बार देखा जा सकता है। उक्त बातें राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से बीएचयू के कला संकाय के राधाकृष्णन सभागार में आयोजित पुस्तक प्रदर्शनी के दौरान प्रोफेसर बलिराज पांडेय ने कही। उन्होंने पुस्तक कथा आलोचना को लेकर चर्चा की। इसमें बीसवीं सदी की हिंदी की बहुचर्चित 70 कहानियों पर 45 आलोचकों द्वारा मीमांसा की गई है।
प्रो. सुरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि किताब की भूमिका में कथा आलोचना का साफ विजन दिखता है। संपादक हिंदी कहानी की विषयगत विविधता को भी रेखांकित करने में सफल रहे हैं। प्रो. खरे ने नया आलोचकीय मॉडल पेश किया है। उन्होंने कहानी आलोचना के चले आ रहे हैं पैटर्न को तोड़ते हुए नया पैटर्न बनाया है, साथ ही हिंदी कहानी को आलोचना के पुराने फ्रेम से निकाल कर मुक्त किया है, जो 70 साल की काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की आलोचना की कड़ी का एक आयाम है। प्रो. विजय बहादुर सिंह ने हिंदी कहानी की परंपरा का जिक्र करते हुए इस किताब को महत्वपूर्ण और इसकी उपयोगिता को निर्विवाद बताया। वर्तमान साहित्य के संपादक डॉ. संजय श्रीवास्तव ने कहा कि किताब की भूमिका और उसके उपशीर्षकों के बहाने अपनी बात रखते हुए कहा कि नीरज खरे ने हिंदी कहानी के सौ साल से अधिक के समूचे परिदृश्य को, उसके सभी आंदोलनों, विभिन्न कथा प्रविधियों पर विस्तार से विचार किया है।
प्रो. नीरज खरे ने कहा कि किताब के लिए कहानियां चुनते हुए यह बात लगातार ध्यान में रही कि हिंदी कहानी की समूची यात्रा का सघन परिचय तो मिले ही, इसके साथ साथ इसमें वे सभी सवाल भी उपस्थित हो सकें जिनसे बीसवीं सदी का भारतीय समाज और हिंदी कहानी भी जूझती रही है। आरंभ में अतिथियों का स्वागत मनोज पांडेय ने किया। राजकमल प्रकाशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आमोद माहेश्वरी ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन डा. महेंद्र प्रताप कुशवाहा ने किया। इस अवसर पर प्रो. आशीष त्रिपाठी, प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल, डा. विंध्याचल यादव, डा. रविशंकर सोनकर, राजीव वर्मा व अन्य रहे।
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