भाजपा ने 11-12 जनवरी को दिल्ली के रामलीला मैदान के राष्ट्रीय अधिवेशन में पार्टी कार्यकर्ताओं को यही संदेश दिया था कि वे हर जगह 'नेतृत्व' के मुद्दे पर सवाल उठाएं। पार्टी का मानना है कि अगर अगला लोकसभा चुनाव 'नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी' के मुद्दे पर होता है तो कांग्रेस उसके सामने टिक नहीं पाएगी। उसका मानना है कि उसके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रुप में एक मजबूत, स्पष्ट और मुखर वक्ता है, जबकि कांग्रेस के पास राहुल गांधी हैं जो अब तक एक वक्ता के रुप में अपनी छवि नहीं बना पाए हैं। उसे लगता है कि जनता राहुल से उस तरह से नहीं जुड़ेगी जिस तरह नरेंद्र मोदी से जुड़ती है। लेकिन क्या आज की स्थिति भी यही है, और क्या राहुल गांधी नेतृत्व के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी को टक्कर दे पाएंगे? लोगों की राय इस मुद्दे पर बंटी हुई है।
विश्सवनीयता पर पिछड़ जाएंगे मोदी- कांग्रेस
कांग्रेस नेता राशिद अल्वी कहते हैं कि सिर्फ अच्छे और लच्छेदार भाषण किसी नेता की खासियत नहीं होते। नेता की सबसे बड़ी खूबसूरती जनता के बीच उसकी विश्वसनीयता होती है। आज देश कम बोलने वाले मनमोहन सिंह को याद कर रहा है, ज्यादा बोलने वाले नेता को आज कोई पसंद नहीं कर रहा है क्योंकि उन्होंने कुछ करके नहीं दिखाया है। अल्वी ने कहा कि नरेंद्र मोदी के ही एक मंत्री नितिन गडकरी ने यह बात कही है कि जनता सपने दिखाने वाले नेताओं को पसंद तो खूब करती है, लेकिन जब सपने पूरे नहीं होते तो जनता उनकी पिटाई भी खूब करती है।
राशिद अल्वी के मुताबिक यह बात बिल्कुल सही है। मोदी ने 2014 के चुनाव में लोगों को खूब सपने बेचे। लोगों को खूब अच्छा लगा और उन्होंने सरकार बना ली। लेकिन आज चुनाव 2019 का है। देश ने देखा है कि प्रधानमंत्री ने पिछले पांच साल सिर्फ बात करने में बिताया है। आज उनकी बातों की जनता में विश्वसनीयता नहीं है। राशिद अल्वी ने कहा कि अगर इसी तराजू पर राहुल गांधी को तौलें तो आप देखेंगे कि कांग्रेस ने किसानों से किया वादा दो दिन के अंदर पूरा किया है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में आज लोग केवल राहुल गांधी की बात कर रहे हैं। इसलिए अगर अगला चुनाव नेतृत्व के मुद्दे पर भी होता है तो बाजी कांग्रेस के ही हाथ लगेगी।
क्या कहते हैं कार्यकर्ता
इंडियन यूथ कांग्रेस के कार्यक्रम युवा क्रांति यात्रा में हिस्सा लेने आए राजस्थान के एक कार्यकर्ता रजनीश सिंह से जब इस मुद्दे पर बात की तो उनका कहना था कि उनके राज्य में राहुल गांधी की रैलियों में भारी संख्या में लोग जुट रहे हैं। हाल ही में उनकी रैली हुई थी जिसमें लाखों की संख्या में लोग जुटे। अगर लोग उनसे जुड़ाव महसूस न करते तो वे क्यों जुटते। तिरंगे के रंग में रंगकर युवाओं का उत्साह बढ़ा रहे तमिलनाडु के एक कार्यकर्ता ने कहा कि राहुल दक्षिण भारत में अंग्रेजी में बोलते हैं। ज्यादातर लोग उनकी बात नहीं समझते। इसके बाद भी लोग कांग्रेस से जुड़ते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि कांग्रेस उनके लिए सोचती है। अगर भाषा बाधा नहीं बन रही है तो इसका मतलब जनता भाषणों से नहीं, जमीन पर किए गए काम से प्रभावित होती है।
अच्छे वक्ता नहीं राहुल- भाजपा
एक पत्रकार रहे भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुदेश वर्मा ने इस मुद्दे पर अपनी राय जाहिर करते हुए कहा कि राहुल लंबे समय से राजनीति में रहे हैं। वे राजनीति के नौसिखुआ व्यक्ति नहीं हैं। लेकिन उनकी भाषण शैली आज भी विश्वविद्यालय स्तर के छात्र नेता की होती है। वे राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी कोई राय नहीं रखते और भाषण के समय बार-बार विषय से भटकते हैं। ऐसे में वे अपनी बात बेहतर ढंग से नहीं रख पाते। इसके अलावा कांग्रेस के भ्रष्टाचार का साया आज भी उनके सिर पर बना हुआ है। जबकि नरेंद्र मोदी की एक स्पष्ट छवि है। वे अपने भाषणों के जरिये लोगों से जुड़ते हैं। वे एक तरफा संवाद स्थापित नहीं करते, बल्कि उनके श्रोता उनके भाषण का एक हिस्सा बन जाते हैं। यही उनकी लोकप्रियता का राज है। वर्मा के मुताबिक उन्हें नहीं लगता कि राहुल गांधी नरेंद्र मोदी के आसपास भी कहीं खड़े हो पाएंगे।