Lok Sabha Election 1977: जब जेपी और साथियों के सामने Indira Gandhi के पांव उखड़ने लगे - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

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बुधवार, 10 अप्रैल 2019

Lok Sabha Election 1977: जब जेपी और साथियों के सामने Indira Gandhi के पांव उखड़ने लगे

Lok Sabha Election 1977: जब जेपी और साथियों के सामने Indira Gandhi के पांव उखड़ने लगे


इंदिरा गांधी
इंदिरा गांधी 
42 साल पहले देश में छठा लोकसभा चुनाव संपन्न हुआ था। पहली बार देश में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। इंदिरा गांधी बुरी तरह से चुनाव हार गईं। मोरारजी देसाई देश के छठे प्रधानमंत्री बनें। यह लोकसभा चुनाव कई मायनों में अनोखा था। इंदिरा गांधी की तानाशाही चरम पर थी और देश में आपातकाल लगा हुआ था। इंदिरा गांधी ने अपने तमाम राजनीतिक विरोधियों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था। प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी थी। 23 जनवरी 1977 ही वो दिन था जब अचानक इंदिरा गांधी ने आकाशवाणी के जरिए देश में आम चुनाव की घोषणा की। देश में तीन दिन में ही चुनाव संपन्न हो गए। चुनाव 16 मार्च 1977 से लेकर 19 मार्च 1977 के बीच हुए। 22 मार्च 1977 को आए चुनाव नतीजे ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया। चुनाव में कांग्रेस गठबंधन को मात्र 153 सीटें ही मिली थीं। इस चुनाव में पूरा विपक्ष समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में गोलबंद हुआ था। जनता पार्टी को चुनाव चिन्ह नहीं मिल पाया था, जिसकी वजह से पार्टी ने 'भारतीय लोक दल' के चिन्ह "हलधर किसान" पर चुनाव लड़ा और 298 सीटें जीतीं।

रायबरेली से चुनाव हार गई थीं इंदिरा गांधी
इंदिरा गांधी रायबरेली से जनता पार्टी के नेता राजनारायण से करीब 55 हजार वोटों से चुनाव हार गई थीं। राजनारायण की ही याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1971 में इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया था। उनपर सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया था। इस घटना को ही देश में आपातकाल की जड़ माना जाता है।

इंदिरा गांधी के खिलाफ इन पार्टियों ने मिलकर लड़ा था चुनाव
जनता पार्टी के गठबंधन में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया एम, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, पेजैंट्स एंड वर्कस पार्टी ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया और डीएमके पार्टियां शामिल थीं। सभी ने भारतीय लोकदल के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस के गठबंधन में एआईएडीएमके, सीपीआई, जम्मू एंड कश्मीर नेशनल कांफ्रेस, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस और रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी शामिल थीं। इसके अलावा दोनों गठबंधन के दलों में दो-दो निर्दलिय नेता भी शामिल थे।

जय प्रकाश नारायण-इंदिरा गांधी
जय प्रकाश नारायण-इंदिरा गांधी 
इस चुनाव में इंदिरा ही नहीं बल्कि अमेठी से उनके बेटे संजय गांधी को भी हार का सामना करना पड़ा था। चुनाव में कई दिग्गज कांग्रेसी नेताओं को शिकस्त खानी पड़ी। इलाहाबाद से जनेश्वर मिश्र ने कांग्रेस के नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह को हराया, बंसीलाल भिवानी से हार गए, अटल बिहारी वाजपेई दिल्ली से जीते, राम जेठमलानी नॉर्थ वेस्ट बॉम्बे से जीते थे और सुब्रमण्यम स्वामी नॉर्थ ईस्ट बॉम्बे जीते थे।

चुनाव में युवा नेताओं की किस्मत भी खूब चमकी। जेपी आंदोलन के साथ जुड़े रहने वाले लालू यादव बिहार के छपरा से तीन लाख वोट के बडे़ अंतर जीते तो रामविलास पासवान चार लाख वोट के अंतर से हाजीपुर से जीतकर संसद पहुंचे थे। बिहार और उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी के उम्मीदवारों के बड़े अंतर जीते थे। जिसकी  एक वजह ये भी थी कि यूपी और बिहार में आपातकाल के दौरान संजय गांधी के आदेश पर जबरन नसबंदी कराई गई थी। जिसका विरोध जनता ने चुनावों में दिखा दिया था।

morarji desai
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जनता पार्टी ने दिल्ली के रामलीला मैदान से फूंका चुनावी बिगुल
जनता पार्टी ने दिल्ली के रामलीला मैदान से चुनावी बिगुल फूंका। कांग्रेस इस रैली को विफल करना चाहती थी इसी वजह से तात्कालिक सूचना प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने दूरदर्शन पर 1975 की ब्लॉकबस्टर फिल्म 'बॉबी' दिखाने का फैसला किया, ताकि भीड़ घर से निकलकर जनता पार्टी की रैली में नहीं पहुंच पाए। लेकिन विद्याचरण शुक्ल की ये चाल फेल हो गई और बड़ी तादाद में लोग जेपी की रैली में पहुंचे।

अटल बिहारी के भाषण के लिए बारिश में भी डटे रहे लोग
तवलीन सिंह आपातकाल पर लिखी अपनी किताब 'दरबार में लिखती हैं' कि उस दिन ठंड थी, बारिश भी हल्की-हल्की होने लगी थी। लेकिन लोग अपनी जगह पर जमे हुए थे। इतने में किसी ने अपने बगल वाले पूछा, इतना बोरिंग भाषण हो रहा है, ठंड भी बढ़ रही है, पर लोग जा क्यों नहीं रहे हैं? तो उत्तर मिला,अभी अटल का भाषण बाकी है। अटल बिहारी वाजपेयी ने मंच पर आते ही समां बांध दिया। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत शायरी से की और बोले- 'बाद मुद्दत के मिले हैं दीवाने, कहने- सुनने को बहुत हैं अफसाने, खुली हवा में जरा सांस तो लेलें, कब तक रहेगी आजादी कौन जाने।' अटल के भाषण शुरू होने के साथ ही माहौल में जान आ गई। जमकर नारे लगने लगे और तालियां बजने लगीं।

मोरारजी देसाई बने देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री
आजादी के बाद पहली बार केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। मोराराजी देसाई ने देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। हालांकि, प्रधानमंत्री की दावेदारी के लिए सबसे भारी पलड़ा बिहार के अनुसूचित जाति के नेता और कांग्रेस से जनता पार्टी में शामिल हुए बाबू जगजीवन राम का था।

जगजीवन राम पिछड़ों के बड़े नेता थे। लेकिन चौधरी चरण सिंह ने भी अपनी दावेदारी पेश कर दी थी। इसकी वजह से मोरारजी देसाई के नाम पर सहमति बनी। चरण सिंह गृह मंत्री बने, बाबू जगजीवन राम को रक्षा मंत्रालय मिला, अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने और मुजफ्फरपुर में बिना पैर रखे तीन लाख वोटों से जीतने वाले जॉर्ज फर्नांडिस को उद्योग मंत्रालय की कमान मिली।

(संदर्भ- कूमी कपूर की किताब 'द इमरजेंसी ए पर्सनल हिस्ट्री' और कुलदीप नैयर की किताब 'इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी' से साभार)

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