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बुधवार, 8 मई 2019

1998 का वो लोकसभा चुनाव जब किसी भी पार्टी को नहीं मिला बहुमत

1998 का वो लोकसभा चुनाव जब किसी भी पार्टी को नहीं मिला बहुमत, 13 महीने में ही गिर गई वाजपेयी सरकार


1998 का लोकसभा चुनाव
1998 का लोकसभा चुनाव
साल 1998 देश में 12वें लोकसभा चुनाव का गवाह बना। इससे पहले,  1996 के आम चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। अटल बिहारी वाजपेयी 13 दिन तक प्रधानमंत्री रहे और बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद, संयुक्त मोर्चा गठबंधन सरकार का गठन हुआ लेकिन, यह सरकार भी 18 महीने से ज्यादा नहीं चली। बाद में कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनी और इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे। 1998 में देश मध्यावधि चुनाव के मुहाने पर आ खड़ा हुआ। 16 फरवरी से 28 फरवरी 1998 के बीच तीन चरणों में चुनाव संपन्न हुए और किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। 13 महीने ही चली अटल सरकार, एआईएडीएमके ने वापस लिया समर्थन
इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 182 सीटें मिली। जबकि कांग्रेस के खाते में 141 सीटें आईं। सीपीएम ने 32 सीटें जीती और सीपाआई के खाते में सिर्फ 9 सीटें आई। समता पार्टी को 12, जनता दल को 6 और बसपा को 5 लोकसभा सीटें मिली। क्षेत्रीय पार्टियों ने 150 लोकसभा सीटें जीतीं। भारतीय जनता पार्टी ने शिवसेना, अकाली दल, समता पार्टी, एआईएडीएमके और बिजू जनता दल के सहयोग से सरकार बनाई और अटल बिहार वाजपेयी फिर से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे। लेकिन इस बार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 13 महीने में ही गिर गई। एआईएडीएमके ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और देश फिर से एक बार मध्यावधि चुनाव के मुहाने पर आ खड़ा हुआ।

1998 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने 17 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में सीटें जीतीं। जबकि भाजपा ने 17 राज्यों और 4 केंद्र शासित क्षेत्रों से सीटें जीतीं। 1996 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 26 राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों से घटकर 20 पर रह गई। कांग्रेस के मत फीसदी में भी गिरावट आया। अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने छोटे से कार्यकाल में परमाणु परीक्षण का एलान किया। देश में पहली बार राजस्थान के पोखरन से परमाणु परीक्षण हुआ।
 

1998 लोकसभा चुनाव
1998 लोकसभा चुनाव
1998 लोकसभा चुनाव के नतीजे
इस चुनाव में कांग्रेस ने 477 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे जिनमें से 141 जीते। भाजपा ने 388 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे थे लेकिन जीत 182 की ही हुई। हालांकि, इस चुनाव में भाजपा को 1996 के लोकसभा चुनाव से ज्यादा सीटें मिली। चुनाव में समता पार्टी ने 12 सीटें और भाकपा 9 सीटें जीतीं। जबकि माकपा के खाते में 32 सीटें आई। इस चुनाव में माकपा ने  71 प्रत्याशी उतारे थे। चुनाव में 61.97 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। चुनाव में भाजपा को यूपी में 57 सीटें मिली। बसपा के खाते में 4 सीटें आई।

इला पंत से हारे एनडी तिवारी
अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ से चुनाव जीते। उन्होंने सपा के मुजफ्फर अली को 2 लाख से ज्यादा वोटो से हराया। अमेठी में गांधी परिवार के नजदीकी सतीश शर्मा को भाजपा के संजय सिंह ने पराजित किया। नैनीताल क्षेत्र में कांग्रेस के एनडी तिवारी को हार का सामना करना पड़ा। वह भाजपा की प्रत्याशी इला पंत से चुनाव हार गए। चुनाव में पीलीभीत से मेनका गांधी निर्दलीय चुनाव जीतीं। रामपुर में भाजपा से मुख्तार अब्बास नकवी चुनाव जीते। ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में कलकत्ता दक्षिण सीट पर माकपा के प्रशांत सूर को हराया।

कुल सीटें- 543
भाजपा- 182
कांग्रेस- 141
सीपीआई- 32
सपा- 20
एआईएडीएमके- 18
राष्ट्रीय जनता दल- 17
तेलगु देशम पार्टी- 12
सीपीआई- 9
बीजू जनता दल- 9
अकाली दल- 8


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