दिल मिलते तो दूर नहीं होती दिल्ली, हसरतों पर फिर गया पानी :एग्जिट पोल्स 2019 - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

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मंगलवार, 21 मई 2019

दिल मिलते तो दूर नहीं होती दिल्ली, हसरतों पर फिर गया पानी :एग्जिट पोल्स 2019

 दिल मिलते तो दूर नहीं होती दिल्ली,  हसरतों पर फिर गया पानी :एग्जिट पोल्स 2019


ममता बनर्जी, शरद पवार, चंद्रबाबू नायडू और मायावती (फाइल)
ममता बनर्जी, शरद पवार, चंद्रबाबू नायडू और मायावती (फाइल) : bharat rajneeti
बीते दो-तीन दशकों से दिग्गज क्षत्रपों की प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा को इस बार भी मंजिल मिलती नहीं दिख रही। एग्जिट पोल्स में जो अनुमान सामने आए हैं, वे इसी ओर इशारा कर रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी, तेलुगू देशम पार्टी और बसपा के प्रमुख क्रमश: ममता बनर्जी, शरद पवार, चंद्रबाबू नायडू और मायावती की सारी उम्मीदें त्रिशंकु लोकसभा पर टिकी थीं, जिस पर एग्जिट पोल्स के अनुमानों ने पलीता लगा दिया है। दरअसल, इन क्षत्रपों को उम्मीद थी कि भाजपा और राजग बहुमत के जादुई आंकड़े से दूर रहेंगे। इसी उम्मीद में इन क्षत्रपों ने गैर-भाजपा-गैर कांग्रेस सरकार की संभावनाओं पर बढ़ना शुरू कर दिया था। इन्हें लगता था कि अगर राजग बहुमत के आंकड़े से दूर रहा तो भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस किसी न किसी क्षत्रप के नाम पर हामी भरेगी। यही कारण है कि मायावती और ममता ने जहां कांग्रेस से दूरी बनानी शुरू की, वहीं पवार और नायडू ने कांग्रेस से अपने संबंध सुधारने शुरू किए। 

दोनों को भरोसा था कि अपने-अपने राज्यों में दमदार प्रदर्शन कर वे इस पद के लिए मजबूत दावेदारी पेश करेंगे। नायडू और पवार की रणनीति यह थी कि कांग्रेस से मधुर संबंध रखने के कारण यही पार्टी पीएम पद के लिए उनका नाम प्रस्तावित कर सकती है। यही कारण है कि एक समय राजग से निकट संबंध बनाते दिख रहे पवार ने एकाएक कांग्रेस से मेलजोल बढ़ाकर महाराष्ट्र में फिर से गठबंधन किया, तो आंध्र प्रदेश में नायडू ने तेलंगाना विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में आंध्र प्रदेश में कांग्रेस को जगह दी।

अब सभी एग्जिट पोल्स में राजग को अपने दम पर बहुमत मिलने का अनुमान जताने के बाद इन क्षत्रपों की महत्वाकांक्षा फिर से पूरी होती नहीं दिख रही। इन क्षत्रपों में मायावती और ममता की रणनीति उन पर ही भारी पड़ गई। इन दोनों नेताओं ने कांग्रेस से हाथ मिलाया होता तो तस्वीर दूसरी होती। कांग्रेस ने अपनी भविष्य की राजनीति का ज्यादा ध्यान रखा और इस चुनाव में गठबंधन से परहेज किया। आत्मविश्वास से भरीं ममता-माया भी कांग्रेस के साथ जाने की अनिच्छुक दिखीं। इन राज्यों में वोट बंटवारे का फायदा भाजपा को मिला और इनकी हसरतों पर पानी फिर गया।

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