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शुक्रवार, 14 जून 2019

द्वितीय विश्व युद्ध से एएन-32 तक, 'वैलीज ऑफ नो रिटर्न' में दफन हो चुके हैं सैकड़ों विमान

द्वितीय विश्व युद्ध से एएन-32 तक, 'वैलीज ऑफ नो रिटर्न' में दफन हो चुके हैं सैकड़ों विमान


वह स्थान जहां मिला एएन-32 विमान का मलबा
वह स्थान जहां मिला एएन-32 विमान का मलबा - फोटो : bharat rajneeti
भारतीय वायुसेना के लापता हुए विमान का मलबा अरुणाचल प्रदेश के लीपा में मिला। तीन जून का लापता हुए इस विमान ने असम के जोरहाट बेस से 13 जवानों के साथ उड़ान भरी थी। हालांकि, इससे पहले भी दो एएन-32 विमान लापता हो चुके हैं और उनके बारे में आज तक कुछ पता नहीं चल सका है। लेकिन, इसके साथ ही एक रहस्य और है जो उस जगह से जुड़ा है जहां इस विमान का मलबा मिला। 
दरअसल, अरुणाचल प्रदेश में जिस स्थान पर इस विमान का मलबा मिला उन घाटियों के आस-पास पहले भी विमानों के मलबे मिलते रहे हैं। इनमें से कई विमान ऐसे हैं जो द्वितीय विश्व युद्ध के समय लापता हो गए थे। दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के समय 540 विमान लापता या दुर्घटना के शिकार हो गए थे। शायद यही कारण है कि अरुणाचल प्रदेश की इन घाटियों को 'वैलीज ऑफ ने रिटर्न' कहा जाता है। 

बचाव टीम को दुर्घटनास्थल तक पहुंचने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। बता दें कि ईस्ट अरुणाचल प्रदेश की पहाड़ियां बेहद रहस्यमयी मानी जाती हैं और यहां पहले भी कई बार ऐसे विमानों का मलबा मिला है, जो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान लापता हो गए थे। जिस जगह पर विमान का मलबा मिला है, वह करीब 12 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। 

साल 2018 के जनवरी महीने में अरुणाचल प्रदेश के पापुम पारे जिले के जंगलों में द्वितीय विश्व युद्ध के समय के विमाना के अवशेष मिले थे। स्थानीय युवाओं के एक दल ने विश्व युद्ध के दौरान वहां विमान गिरने की कहानियां सुनते-सुनते उसे ढूंढ निकालने का फैसला किया। इन्होंने 10 जनवरी को विमान के अवशेष ढूंढ निकाले। 

वहीं, इसी साल पूर्वी अरुणाचल प्रदेश के रोइंग जिले के तीन स्थानीय पर्वतारोही सुरिंधी पहाड़ी पर जड़ी-बूटियां खोजने गए थे। हालांकि, उन्हें जड़ी-बूटी को नहीं मिली, लेकिन मिल गया 75 साल पुराना एक हवाई जहाज। यह अमेरिकी वायुसेना का विमान था जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के खिलाफ लड़ाई में चीन की मदद के लिए असम के दिनजान एयरफील्ड से उड़ान भरी थी। विमान के मलबे में बड़ी संख्या में गोलियां, एक चम्मच, कैमरे के लेंस और और ऊनी दस्ताना मिला था। 

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 42 महीने तक यह साहसिक और एक तरीके से आत्मघाती अभियान चला था। इस अभियान को नाम दिया गया था फ्लाइंग दि हंप ( Flying The Hump )। इस अभियान के दौरान बड़ी संख्या में विमान और जवान लापता हुए थे। अमेरिका सरकार आज भी लापता लोगों की तलाश करने के लिए अपने दल यहां भेजती है। 

ये अमेरिकी विमान चीन के कुनमिंग में लड़ रहे तत्कालीन चीन प्रमुख चियांग काई शेक के सैनिकों और अमेरिकी सैनिकों के लिए जरूरी सप्लाई पहुंचाते थे। तब असम के दिनजान एयरबेस से चीन के कुनमिंग तक एक तरह का हवाई पुल बन गया था। जापान ने जब बर्मा पर कब्जा कर लिया तो मित्र देशों की सेनाएं पूर्वी चीन में फंस गई थीं। इन्हें जरूरी सप्लाई भेजने के लिए एयर ट्रांसपोर्ट कमांड का गठन किया गया। अप्रैल 1942 से लेकर नवंबर 1945 तक इस कमांड ने करीब 650 टन सामग्री चीन पहुंचाई थी।

इस काम में 31 हजार से ज्यादा सैनिक औक करीब 650 एयरक्राफ्ट शामिल थे। लेकिन, इस काम के लिए उन्हें अरुणाचल प्रदेश की घाटियों से होते हुए हिमालय को पार करना पड़ता था और इस मार्ग पर पर विमान बड़ी तादाद में दुर्घटनाग्रस्त होते थे। 42 महीने के इस अभियान में 540 विमान दुर्घटना का शिकार हो गए या लापता हो गए। इस अभियान में 1700 पायलटों और अन्य विमान सवारों की जान गई थी।

हालांकि, यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि फ्लाइंग दि हंप मिशन के दौरान इतनी बड़ी संख्या में विमान हादसे क्यों हुए। लेकिन, अलग-अलग शोधों में एक बात सामने आई कि इस इलाके के आसमान में बहुत ज्यादा टर्बुलेंस और 100 मील/घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवा यहां की घाटियों के संपर्क में आने पर ऐसी स्थितियां बनाती हैं कि यहां उड़ान बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाता है। वहीं, यहां की घाटियां और घने जंगलों में घिरे हुए किसी विमान के मलबे को तलाश करना ऐसा मिशन बन जाता है जिसके पूरा होने में कई बार सालों लग जाते हैं।

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