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सोमवार, 1 जुलाई 2019

आज का साक्षात्कार: सीईएल के अध्यक्ष नलिन सिंघल बोले- सौर ऊर्जा से घर-घर बन सकती है बिजली

आज का साक्षात्कार: सीईएल के अध्यक्ष नलिन सिंघल बोले- सौर ऊर्जा से घर-घर बन सकती है बिजली

नलिन सिंघल
नलिन सिंघल - फोटो : bharat rajneeti
सौर ऊर्जा परियोजना के तहत देश के घर-घर में बिजली निर्माण किया जा सकता है। घर चाहे कच्चा हो या पक्का, उसकी छतों, दीवारों, खिड़कियों, बरामदे या लॉन में सोलर सेल लगाकर बिजली उत्पादन किया जा सकता है। इतना ही नहीं गांवों और खेत-खलिहानों में भी बिजली निर्माण संभव है। इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए केंद्र सरकार की कंपनी सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (सीईएल) ने देश का पहला सोलर टेक्नोलॉजी पार्क (एसटीपी) बनाया है।
इस पार्क की परिकल्पना और इससे होने वाले लाभ पर अमर उजाला के शिशिर चौरसिया ने सीईएल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक नलिन सिंघल से बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश :

प्रश्न- आपको लगता है कि सोलर पार्क में प्रशिक्षण पाकर लोग इसे घरों में लगा सकेंगे?

उत्तर- बिल्कुल लगा सकेंगे। सौर ऊर्जा का प्लांट लगाना कोई बड़ा काम नहीं है। जैसे, कुछ लोग घरों में ट्यूबलाइट बदल लेते हैं, पंखे में कंडेंसर या कैपेसिटर बदल देते हैं, जबकि कुछ लोग इसके लिए भी बिजली मिस्त्री बुलाते हैं। जो लोग ऐसा कर लेते हैं, वह अपने घर में सौर ऊर्जा प्लांट भी लगा और चला सकते हैं। एसटीपी में आकर यही तो प्रशिक्षण मिलेगा। ग्रामीणों के लिए हमने सौर बुग्गी भी बनाई है जिससे दो किलोवाट बिजली पैदा की जा सकती है। इससे बनी बिजली का इस्तेमाल ट्यूबवेल, थ्रेसर या अन्य मशीन चलाने में हो सकेगा।

प्रश्न- आपने देश का पहला सोलर टेक्नोलॉजी पार्क विकसित किया है। इसकी परिकल्पना क्या है और इससे देश को किस तरह का फायदा होगा?

उत्तर- देश में सौर ऊर्जा की बात तो बहुत पहले से हो रही है लेकिन यह अभी भी सरकारी और औद्योगिक स्तर पर ही सीमित है। आम जनता की भागीदारी इसमें नहीं के बराबर है। सौर ऊर्जा की योजना तभी सफल होगी, जब आम लोगों में इसकी जानकारी और भागीदारी बढ़ेगी। अभी तक लोग समझते हैं कि इसके लिए विशेष तरह के भवन या खुली जगह चाहिए। हमने एसटीपी केजरिये यह समझाने की कोशिश की है कि आपका मकान चाहे कच्चा ही क्यों न हो, उसकी छत, दीवार, खिड़की, द्वार, शेड सभी में सौर ऊर्जा बनाने की क्षमता है। वहां आप सोलर सेल लगाकर बिजली बना सकते हैं। इसे चाहें तो बैटरी में एकत्र करें या फिर ग्रिड में सीधे बिजली डालकर पैसा कमायें। हम इसका प्रशिक्षण भी देंगे कि इसकी शुरुआत कैसे की जा सकती है।

प्रश्न- इस पार्क का मकसद सिर्फ जागरूकता फैलाना ही है?

उत्तर- ऐसी बात नहीं है। यहां स्कूली बच्चे आएं या इंजीनियरिंग छात्र, उन्हें पूरी जानकारी और प्रशिक्षण मिलेगा। हमने यहां वर्ष 1977 में बने देश के पहले दो इंच के सोलर सेल से लेकर आज के छह इंच वाले बाई फेसियल सोलर सेल और सोलर मॉड्यूल का उपयोग किया है। इसमें सेना के लिए बनाए फोल्डेबल सोलर मॉड्यूल भी लगाए हैं और लचीले सोलर मॉड्यूल से बनी एक किलोवाट बिजली बनाने वाली सौर छतरी भी। यहां छत की रेलिंग में भी सोलर मॉड्यूल का उपयोग हुआ है, जिससे 13 किलोवाट बिजली पैदा होती है। इसके अलावा सौर ऊर्जा से चलने वाले दमकल भी यहां लगाए हैं। इसका मकसद लोगों को तकनीक व उपयोगिता से रूबरू कराना है।

प्रश्न- सीईएल लेजर फेंसिंग की तकनीक पर भी काम कर रही है। यह कैसे काम करता है?

उत्तर- लेजर फेंसिंग की तकनीक हमें डीआरडीओ से कुछ महीने पहले ही ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी (टीओटी) के जरिये मिली है। इसके तहत सीमा पर लोहे के कंटीले बाड़ केजरिये लेजर फेंसिंग की जाएगी। यह नंगी आंखों से नहीं दिखेगा लेकिन जैसे ही कोई व्यक्ति या जानवर सीमा पार करने की कोशिश करेगा, तुरंत कंट्रोल रूम में अलार्म बजेगा और उसका फोटो आ जाएगा। साथ यही लोकेशन भी पता चल जाएगी और सुरक्षा बल के जवान सक्रिय हो जाएंगे। यह जंगल, नदी, पहाड़ कहीं भी आसानी से लगाया जा सकेगा।

प्रश्न- आपने सेना के लिए मिसाइल का सिरामिक रेडोम भी विकसित किया है। यह क्या है?

उत्तर- यह तकनीक भी हमने डीआरडीओ से टीओटी के जरिये ली है। मिसाइल में लगने वाले रेडोम या नोज कोन को किसी धातु से नहीं बनाया जा सकता है, क्योंकि उस जगह काफी गर्मी होती है। इसलिए उसे सिरामिक का बनाया जाता है। पहले ये रेडोम विदेश से आयात होते थे और एक रेडोम की कीमत 60 से 70 लाख रुपये पड़ती थी। हमने जो रेडोम बनाया है, इसकी कीमत 35 से 40 लाख रुपये आएगी। शीघ्र ही इसका ट्रायल होने वाला है।

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