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सोमवार, 1 जुलाई 2019

सीईओ संवाद: आरएस सुब्रमणियम बोले- जल मार्ग से ज्यादा सामान की ढुलाई में ही फायदा

सीईओ संवाद: आरएस सुब्रमणियम बोले- जल मार्ग से ज्यादा सामान की ढुलाई में ही फायदा

आरएस सुब्रमणियम
आरएस सुब्रमणियम - फोटो : bharat rajneeti
सरकार चाहती है कि माल परिवहन में जल मार्ग की हिस्सेदारी बढ़े। यह साधन न सिर्फ अन्य विकल्पों से कम प्रदूषणकारी है, बल्कि सस्ता भी पड़ेगा। वहीं, इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि जल मार्ग से माल ढुलाई तभी सस्ती पड़ेगी, जब जहाज बड़ा हो और उसमें ज्यादा सामान लदा हो। करीब 200 देशों में लॉजिस्टिक सेवा उपलब्ध कराने वाली कंपनी डीएचएल एक्सप्रेस के कंट्री मैनेजर (इंडिया) आरएस सुब्रमणियम से अमर उजाला ने विस्तृत बात की।

प्रश्न- सरकार चाहती है कि भारत में माल ढुलाई के लिए जल मार्ग का अधिक उपयोग हो। क्या ऐसा संभव है?

उत्तर- बिलकुल, लेकिन जल मार्ग से माल ढुलाई में एक चीज का ध्यान रखना पड़ता है कि आपको बड़े जहाज का इस्तेमाल करना होगा। बड़े जहाज से ढुलाई से मतलब है कि आप एक बार में 20 हजार टन माल की ढुलाई कर रहे हों। यदि आप जल मार्ग से भी कम मात्रा में माल ढोएंगे तो आपका भाड़ा उतना कम नहीं होगा और इसका पूरा लाभ भी नहीं उठा सकेंगे।

प्रश्न- एक्सप्रेस सर्विस तो कूरियर का पर्याय माना जाता है। डीएचएल एक्सप्रेस इससे अलग कैसे है?

उत्तर- आप सही कहते हैं। एक्सप्रेस सर्विस एक तरह से कूरियर ही है। हालांकि, आज एक्सप्रेस सर्विस की परिभाषा बदल गई है। पहले कूरियर का मतलब बैंक चेक या किसी कागजात की डिलीवरी तक सीमित था। आज इसके जरिये घर-गृहस्थी केसामान के साथ उद्योग जगत का सामान भी इधर से उधर भेजा जाने लगा है। आज की तारीख में हम अपने लघु उद्यमी ग्राहकों की आवश्यकता को समझते हैं और इसके जरिये भेजा सामान अगले दिन या उससे अगले दिन तक दुनिया के किसी भी हिस्से में पहुंचा देते हैं।

प्रश्न- सामान पहुंचाने मेें यह तेजी कैसे संभव होती है?

उत्तर- हमारे पास फ्रेटर (माल ढोने वाले हवाई जहाज) का पूरा बेड़ा है। यदि भारत में ही देखें तो यहां घरेलू मार्ग पर यह काम हम ब्लू डार्ट के नाम से करते हैं और इसके पास बोइंग 757 किस्म के छह फ्रेटर विमान हैं। यदि छोटे शहरों से कोई उद्यमी अपना माल अमेरिका या जर्मनी भेजना चाहता है तो उसे पहले स्थल या हवाई मार्ग से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, मुंबई जैसे महानगरों में मंगाते हैें। फिर उसे अंतरराष्ट्रीय मार्ग पर चलने वाले फ्रेटर के जरिये गंतव्य तक भेज देते हैं।

प्रश्न- इससे लघु उद्यमियों को कैसे फायदा हो रहा है?

उत्तर- दो दशक पहले तक यहां से निर्यात वही कर पाते थे, जिनका कारोबार काफी बड़ा होता था। उनकी न सिर्फ देश में बड़ी उपस्थिति होती थी, बल्कि विदेश में भी कई शाखाएं होती थीं। लेकिन अब ई-कॉमर्स वेबसाइटों के जरिये आगरा, बरेली, मुरादाबाद, भदोही में बैठे लघु उद्यमी भी अमेरिका, जर्मनी या फ्रांस में सामान बेच रहा है। उनके सामान की डिलीवरी करने की जिम्मेदारी एक्सप्रेस कंपनियों की होती है। तभी तो इस समय भारत में हमारे करीब 65,000 लघु उद्यमी ग्राहक हैं।

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