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शनिवार, 27 जुलाई 2019

केजरीवाल ने की वित्त आयोग के अध्यक्ष से मुलाकात, केंद्रीय करों में की हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग

केजरीवाल ने की वित्त आयोग के अध्यक्ष से मुलाकात, केंद्रीय करों में की हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग

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फाइल फोटो : bharat rajneeti
दिल्ली सरकार ने 15वें वित्त आयोग से गुजारिश की है कि देश के दूसरे राज्यों की तरह दिल्ली को भी केंद्र सरकार से केंद्रीय करों में से हिस्सेदारी मिलनी चाहिए। दिल्ली सरकार की दलील है कि आयकर के तौर पर दिल्ली से केंद्र को हर साल 1.75 लाख करोड़ रुपये मिलता है, जबकि केंद्र दिल्ली को सिर्फ 325 करोड़ रुपये की ही वापसी करता है। 
इस बारे में शुक्रवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह से मुलाकात की। इस मौके पर उन्होंने आयोग चेयरमैन को ज्ञापन सौंपकर केंद्रीय करों में दिल्ली की वाजिब हिस्सेदारी की मांग की।

मुलाकात के बाद मीडिया के साथ बात करते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली, देश के लिए केंद्र सरकार को लगभग पौने दो लाख करोड़ रुपये आयकर इकट्ठा करके देता है। इसमें से सिर्फ 325 करोड़ रुपये दिल्ली को मिलता है। केजरीवाल ने मांग की कि केंद्र सरकार को दिल्ली में ज्यादा निवेश बढ़ाना चाहिए, जिससे यहां की आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल सके।

अरविंद केजरीवाल ने बताया कि 2000 तक संविधान में प्रावधान था कि बाकी राज्यों की तरह दिल्ली को भी पैसा मिलेगा। लेकिन 2000 में संशोधन करके दिल्ली को इस प्रावधान से बाहर कर दिया गया। उन्होंने कहा कि उस वक्त की हालात के बारे में वह कुछ नहीं कह सकते, लेकिन आज यह प्रावधान दिल्ली के साथ ज्यादती व नाइंसाफी है।

अरविंद केजरीवाल ने बताया कि उन्होंने वित्त आयोग से गुजारिश की है कि केंद्र सरकार जिस फार्मूले पर दूसरे राज्यों की हिस्सेदारी केंद्रीय करों मे से तय करती है, वही फार्मूला दिल्ली पर भी लागू किया। इस फार्मूले को तय करने का अधिकार वित्त आयोग के पास ही है। केजजरीवाल के मुताबिक, अगर 2000 तक के फार्मूले पर ही दिल्ली को हिस्सेदारी मिलती तो केंद्र को 6000 करोड़ रुपये देने होते।

दिल्ली को केंद्र से मिले 6500 करोड़ रुपये
वित्त आयोग को दिए गए ज्ञापन में अरविंद केजरीवाल ने लिखा है कि 1993 तक दिल्ली के लिए अलग से एक समेकित फंड था। 1994-95 में दिल्ली को फंड देने की प्रक्रिया में बदल करते हुए उसे दूसरे राज्यों के बराबर लाया गया। 

2000 तक वित्त आयोग संवैधानिक प्रवधानों के तहत दिल्ली को केंद्रीय करों में से हिस्सेदारी का फार्मूला तय करता था। पत्र में आगे कहा गया है कि 10वें वित्त आयोग तक इसी आधार पर हिस्सेदारी तय करती थीं। 

लेकिन 2000 में संशोधन करके संवैधानिक धाराओं में बदलाव किया गया। इसका दिल्ली की वित्त व्यवस्था पर बुरा असर पड़ा। इसके बाद से दिल्ली को केंद्र से हर साल 325 करोड़ रुपये मिलता है। 
 

पत्र में कहा गया है कि दिल्ली तेजी से बढ़ता शहर है। इससे संसाधनों तक बहुत दबाव है। बावजूद इसके दिल्ली को वैश्विक शहर बनाने की दिशा में बड़े पैमाने पर काम हो रहा है। लेकिन संविधान के बदलाव न होता तो 10वें वित्त आयोग के फार्मूले पर करीब 6,500 करोड़ रुपये दिल्ली को केंद्र से मिलता।

शहरी निकायों के लिए अनुदान बढ़ाने की मांग
दिल्ली में पांच शहरी स्थानीय निकाय हैं। इसमें से तीन नगर निगम हैं। इनकी आबादी 39 लाख से 62 लाख के बीच है। दिल्ली के नगर निगमों के पास दूसरे राज्यों की निगमों जैसी ही अधिकार हैं। लेकिन तीनों नगर निगम आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं।

14वें वित्त आयोग ने 2015-20 के लिए तीनों निगमों को 2.87 लाख करोड़ रुपये का अनुदान दिया था। आबादी के हिसाब से यह प्रति व्यक्ति हर साल 488 रुपये बैठता है। मुख्यमंत्री ने लिखा है कि दिल्ली की आबादी 193.86 लाख है। ऐसे में सालाना बढ़ोत्तरी के साथ नगर निगमों के लिए दिल्ली सरकार को केंद्र से 1150 करोड़ रुपये मिलने चाहिए।

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