'अयोध्या' पर 'सुप्रीम' सुनवाई: कोर्ट रूम का माहौल, चीफ जस्टिस बोले- पहले दिन से आप...
अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद (फाइल फोटो) : bharat rajneeti
खास बातें
- एक शताब्दी से अधिक समय से हिन्दू वहां पर देवता की पूजा करते है
- दावा नहीं कर सकते कि वे कुछ समय तक वहां नमाज अदा करते थे
- मुस्लिम शासक ने मंदिर को नष्ट कर दिया
रामलला विराजमान की ओर से पेश वकील ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि भले ही विदेशी आक्रांताओं ने मंदिर को तहस नहस कर दिया लेकिन भगवान राम के जन्मस्थान को लेकर लोगों के विश्वास को खत्म नहीं किया जा सका। रामलला विराजमान की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीएस वैधनाथन ने चीफ जस्टिस रंजन गोगई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष कहा कि लोगों के लिए उस जन्मस्थान की पवित्रता सिर्फ इसलिए डगमगा नहीं सकती कि वहां मस्जिद का निर्माण किया गया।
वैधनाथन ने कहा कि हिन्दू धर्म की मान्यता है कि अगर मूर्ति हट भी गई तो भी स्थान की पवित्रता बरकरार रहती है। उन्होंने दावा कि ऐसे कई पुख्ता प्रमाण है जो साबित करते हैं कि हजारों वर्ष से राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादित जमीन हिन्दुओं के पास था और एक शताब्दी से अधिक समय से हिन्दू वहां पर देवता की पूजा करते है।उन्होंने 1858 के एक दस्तावेज का हवाला दिया जिसमें एक इतिहासकार ने कहा था कि हिन्दू उस जगह पर 100 वर्षों से पूजा कर रहे हैं। इसकेअलावा उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अग्रवाल की उस टिप्पणी का भी हवाला दिया जिसमें कहा था कि मुस्लिम शासक ने मंदिर को नष्ट कर दिया। ढांचा न होने के बावजूद हिन्दू वहां पूजा करते रहे। वैधनाथन ने कहा कि मुस्लिम पक्ष ने अब तक मालिकाना हक साबित करने को लेकर कोई दस्तावेज पेश नहीं किया। उन्होंने कहा कि उस जगह पर मस्जिद तब बनाई गई जब देश में इस्लामिक शासन था। उस वक्त हिन्दू मंदिर नहीं बना सकते थे। लेकिन जैसे ही उन्हें मौका मिला, उन्होंने वहां ढांचा खड़ा किया गया और पूजा शुरू कर दी। उन्होंने कहा कि मुस्लिम महज इसलिए उस जगह का दावा नहीं कर सकते कि वे कुछ समय तक वहां नमाज अदा करते थे।
उन्होंने कहा कि भगवान राम की जन्मभूमि लोगों के लिए देवता समान है। 16वीं सदी में उस स्थल पर मस्जिद बन जाने से हिन्दुओं का उस जन्मस्थान को लेकर विश्वास खत्म नहीं हुआ। जन्मस्थान को देवता माना जाता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वहां मूर्ति हो या नहीं। उन्होंने 2.77 एकड़ जमीन पर अपना दावा किया। उन्होंने कहा कि उस जगह पर मुस्लिम वर्ष 1850 से 1949 के बीच नमाज पढ़ते थे। इसका यह मतलब नहीं कि उनका उस जगह के एक तिहाई हिस्से पर हक है।
मुस्लिम पक्ष ने अब तक मालिकाना हक साबित करने को लेकर कोई दस्तावेज नहीं किया। वहीं हिन्दुओं का इस जगह पर कब्जे को लेकर कोई विवाद नहीं है। हर दस्तावेज में इसका जिक्र है। वैधनाथन ने कहा कि जब जन्मस्थान ही देवता हो तो ऐसे में संयुक्त कब्जे का सवाल ही नहीं उठता।
जस्टिस चंद्रचूड़ (वैधनाथन से): आपका कहना है कि स्थान ही देवता है और यह सर्वभौम है। वहीं दूसरा नजरिया यह है कि यह पूजा का स्थल है, जिससे कुछ अधिकार मिलते हैं। सवाल यह है कि क्या दो नजरिए हो सकते हैं?
वैधनाथन: सुप्रीम कोर्ट और प्रिवी कौंसिल ने यह व्यवस्था दे रखी है कि देवता की संपत्तियों का विभाजन नहीं किया जा सकता। इसलिए देवता का बंटवारा नहीं किया जा सकता। वह सदा के लिए देवता होते हैं। महज इसलिए कि उस स्थल पर मस्जिद के बन जाने से लोगों के लिए उस स्थान की पवित्रता का विश्वास खत्म नहीं हो जाता। कुछ समय के लिए वक्फ बोर्ड के पास वह जगह थी, इसका मतलब यह नहीं है कि बोर्ड मालिक हो गया।
जस्टिस बोबडे: यानी आपका कहना है कि वहां मंदिर हुआ करता था लेकिन उसके तहत-नहस के बावजूद वहां देवता है।
वैधनाथन: ढांचे को जरूर तहस-नहस किया गया होगा लेकिन लोगों का इस जगह के प्रति विश्वास कायम रहा।
सीएस वैधनाथन (रामलला विराजमान के वकील): ने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि जिस तरह से मुस्लिमों के लिए मक्का है उसी तरह हिन्दुओं के लिए अयोध्या है। इस दौरान चीफ जस्टिस ने उस दस्तावेज के कुछ चुनिंदा खंडों का जिक्र किया।
वरिष्ठ वकील राजीव धवन (मुस्लिम पक्षकारों के वकील): वैधनाथन जिस तरह से बहस कर रहे हैं यह ट्रिपल जंप की तरह है। अब तक कोई साक्ष्य या सबूत नहीं प्रस्तुत किया गया। वैधनाथन जिन दस्तावेजों का हवाला दे रहे हैं, उनमें से अधिकतर को हाईकोर्ट ने एडमिट ही नहीं किया था।
चीफ जस्टिस: यह उनका (वैधनाथन) कमजोर पक्ष है। अगर आप साक्ष्य दिखाना चाहते हैं तो आप दिखा सकते हैं। हम आपके साथ पढ़ेंगे।
धवन: मैं आशा करता हूं कि आप ऐसा करेंगे।
चीफ जस्टिस: आपके कहने का क्या मतलब है। डॉ. धवन, यह कुछ अधिक हो रहा है। पहले दिन से आप इस तरह की व्यंग्यात्मक टिप्पणी कर रहे हैं। (जस्टिस चंद्रचूड़ ने बीचबचाव कर धवन को शांत किया)
चीफ जस्टिस: हम यह साफ कर देना चाहते हैं कि सभी पक्षकार दलीलें पेश करने के लिए अपने हिसाब से वक्त ले सकते हैं। हमें कोई हड़बड़ी नहीं है।