दिव्यांगों को सहानुभूति नहीं अधिकार के तौर देना चाहिए रोजगार, सुप्रीम कोर्ट ने की टिप्पणी

नीतू हर्ष नाम की यह आवेदक दृष्टिबाधित थी। इसके बावजूद उसने सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार के तौर पर ही मुख्य परीक्षा तथा उसके बाद इंटरव्यू में भी सफलता हासिल की थी। इस दौरान उसने अपना दिव्यांगता प्रमाणपत्र पेश नहीं किया था। परिणाम घोषित होने पर नीतू 136 अंकों के साथ 137वें नंबर पर रही थी। लेकिन दिव्यांग जनों के लिए आरक्षित दो रिक्तियों के सापेक्ष एक अन्य दिव्यांग उम्मीदवार ने 138 अंकों के साथ 57वां स्थान हासिल किया था।
इसके बाद नीतू हर्ष ने खुद को दिव्यांग श्रेणी में रखे जाने के आग्रह वाला आवेदन पेश किया। हालांकि उनका आवेदन निरस्त कर दिया गया। नीतू हर्ष ने इसके बाद राजस्थान हाईकोर्ट में अपील की थी। हाईकोर्ट ने नीतू के आवेदन पर सहानुभूतिपूर्ण विचार करते हुए उन्हें दिव्यांग श्रेणी के तहत मानने का निर्देश अपने प्रशासकीय तंत्र को दिया था। लेकिन शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को हाईकोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया।