प्रसव के दौरान 35 हजार मांओं की मौत, 8.82 लाख शिशु नहीं बचे
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2017 में भारत में 35 हजार महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान हो गई। वहीं 2018 में जन्म के पांच वर्ष से कम आयु के 8.82 लाख बच्चों को भी नहीं बचाया जा सका। यह आंकड़ा डब्ल्यूएचओ ने गुरुवार को बाल एवं मातृत्व मृत्यु रिपोर्ट मे जारी किया है। हालांकि साथ ही उसने इन मानकों पर भारत सहित वैश्विक स्तर पर सुधार की बात भी कही है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 के मुकाबले आज विश्व में बच्चों की मौतें आधी रह गई हैं, प्रसव के समय होने वाली महिलाओं की मृत्यु का आंकड़ा एक तिहाई हो गया है। इसकी वजह स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और जांच व निगरानी व्यवस्थाओं के सख्ती से हुए पालन को बताया गया है। इसके बावजूद विश्व में 2018 में 62 लाख बच्चाें की मौत 15 वर्ष की उम्र पूरी करने से पहले हो गई थी। इनमें से 53 लाख बच्चे पांच वर्ष से छोटे थे। वहीं 2.9 लाख महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान बिगड़ी स्थितियों की वजह से 2017 में हुईं।
इसलिए हो रही मौतें
डब्ल्यूएचओ के अनुसार बच्चों की मौतों की वजह निमोनिया, डायरिया, मलेरिया हैं। बड़े बच्चों में सड़क हादसे, चोट या पानी में डूबना प्रमुख वजहें रहीं। प्रसूताओं की मौत की प्रमुख वजहें प्रसव के समय हाई बीपी, रक्त ज्यादा बह जाना और संक्रमण रहीं।
भारत में हालात
प्रसूताओं की मौतें : नाइजीरिया के बाद भारत दूसरा
भारत में हर 290 प्रसूताओं में से एक की प्रसव के दौरान मौत हुई। भारत में 35 हजार प्रसूताओं की मौतें विश्व में दूसरी सर्वाधिक हैं। नाइजीरिया में 67 हजार मौतें हुईं थीं।
उम्मीद भी...क्योंकि तेजी से हुआ सुधार
भारत ने 2000 से 2017 के दौरान इन मौतों की संख्या 61 प्रतिशत घटाई। 2000 में प्रति एक लाख 370 प्रसूताओं की प्रसव के दौरान मौत हो रही थी, जिसे 145 तक लाया गया है। एसडीजी के लिहाज से यह अब भी दोगुने से अधिक है।
बच्चों की मौतें : नाईजीरिया से ज्यादा
पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की आधी मौतें भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, कांगो और इथियोपिया में हुईं। नाइजीरिया में 8.66 लाख और भारत में 8.82 लाख मौतें हुईं।
यहां भी किया सुधार
भारत में सर्वाधिक बच्चों की मौतों की वजह अधिक जनसंख्या भी है। 1990 के मुकाबले हमने काफी सुधार किया है, उस वर्ष डब्ल्यूएचओ ने यहां 34.17 लाख बच्चों की मौतों का आकलन किया था। आज हर एक हजार बच्चों में 37 की मौत पांच वर्ष आयु पूरी करने के पहले हो रही है। 1990 में यह संख्या 126 थी।