कूड़े के पहाड़ हटाने का काम एक अक्तूबर से होगा शुरू
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर दिल्ली की तीनों लैंडफिल साइट्स से कचरा हटाने में सभी नौ फर्म एक अक्तूबर से जुट जाएंगी।गाजीपुर, भलस्वा और ओखला लैंडफिल साइट्स पर एकत्रित करीब 2.8 करोड़ टन कचरे और मलबे को फेंकने के लिए जमीन नहीं मिल पा रही है। इस वजह से शुरुआती दौर में कचरे को अलग अलग किया जाएगा। इस कचरे की वजह से आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की सेहत पर पड़ रहे असर को देखते हुए एनजीटी ने इसे हटाने के निर्देश दिए गए हैं।
सबसे ज्यादा कूड़ा गाजीपुर में
तीनों लैंडफिल साइट्स में सर्वाधिक 140 लाख टन कचरा गाजीपुर में इकट्ठा हो चुका है। उत्तरी दिल्ली के भलस्वा में लैंडफिल साइट पर 85-90 लाख टन जबकि ओखला से 55 लाख टन कचरा एकत्रित है।
निस्तारण हर माह 55 लाख रुपये होंगे खर्च
तीनों लैंडफिल साइट के लिए जारी टेंडर के बाद नौ फर्म को कूड़े को अलग-अलग करने सहित सभी जरूरी इंतजाम करने के निर्देश दिए गए हैं। कचरे को अलग अलग करने के लिए ट्रॉमल (मशीन) का उपयोग किया जाएगा।
माना जा रहा है कि तीनों साइट्स के लिए कुल नौ मशीनें चाहिए। कर्मियों सहित एक मशीन पर प्रतिमाह करीब 6.29 लाख रुपये का खर्च आएगा। यदि नौ मशीनों का प्रयोग होता है तो कचरे को हटाने में प्रति माह करीब 55 लाख रुपये का खर्च आएगा।
सबसे ज्यादा कूड़ा गाजीपुर में
तीनों लैंडफिल साइट्स में सर्वाधिक 140 लाख टन कचरा गाजीपुर में इकट्ठा हो चुका है। उत्तरी दिल्ली के भलस्वा में लैंडफिल साइट पर 85-90 लाख टन जबकि ओखला से 55 लाख टन कचरा एकत्रित है।
निस्तारण हर माह 55 लाख रुपये होंगे खर्च
तीनों लैंडफिल साइट के लिए जारी टेंडर के बाद नौ फर्म को कूड़े को अलग-अलग करने सहित सभी जरूरी इंतजाम करने के निर्देश दिए गए हैं। कचरे को अलग अलग करने के लिए ट्रॉमल (मशीन) का उपयोग किया जाएगा।
माना जा रहा है कि तीनों साइट्स के लिए कुल नौ मशीनें चाहिए। कर्मियों सहित एक मशीन पर प्रतिमाह करीब 6.29 लाख रुपये का खर्च आएगा। यदि नौ मशीनों का प्रयोग होता है तो कचरे को हटाने में प्रति माह करीब 55 लाख रुपये का खर्च आएगा।
पुलिस कर्मियों की मौत के बाद दो थाने शिफ्ट करने की आग्रह
पिछले छह साल में गाजीपुर थाने में तैनात दो पुलिसकर्मियों की फेंफड़ों के संक्रमण से मौत हो चुकी है। इसका हवाला देते हुए गाजीपुर और भलस्वा थानों को कम प्रदूषित क्षेत्रों में शिफ्ट करने का आला अधिकारियों से आग्रह किया गया है।
सूत्रों के मुताबिक भौगोलिक कारणों और लोगों को पहुंचने में होने वाली परेशानियों की वजह से थानों को कहीं और शिफ्ट करने के लिए जमीन नहीं दी जा सकती है। वहीं डॉक्टरों ने लैंडफिल की वजह से फेंफड़ों की बीमारी होने से इंकार किया है।
एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर थाने के लिए जमीन पर विवाद होने की वजह से फिलहाल इसे शिफ्ट नहीं किया जा सका है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जनवरी-अप्रैल के दौरान किए सर्वे के दौरान यहां पीएम-2.5 और पीएम-10 की मात्रा कई गुना अधिक पाई गई।
सूत्रों के मुताबिक भौगोलिक कारणों और लोगों को पहुंचने में होने वाली परेशानियों की वजह से थानों को कहीं और शिफ्ट करने के लिए जमीन नहीं दी जा सकती है। वहीं डॉक्टरों ने लैंडफिल की वजह से फेंफड़ों की बीमारी होने से इंकार किया है।
एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर थाने के लिए जमीन पर विवाद होने की वजह से फिलहाल इसे शिफ्ट नहीं किया जा सका है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जनवरी-अप्रैल के दौरान किए सर्वे के दौरान यहां पीएम-2.5 और पीएम-10 की मात्रा कई गुना अधिक पाई गई।