वूहान से तनाव मिटा, महाबलीपुरम से मिट सकती है तनाव की जड़ - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

.

अन्य विधानसभा क्षेत्र

बेहट नकुड़ सहारनपुर नगर सहारनपुर देवबंद रामपुर मनिहारन गंगोह कैराना थानाभवन शामली बुढ़ाना चरथावल पुरकाजी मुजफ्फरनगर खतौली मीरापुर नजीबाबाद नगीना बढ़ापुर धामपुर नहटौर बिजनौर चांदपुर नूरपुर कांठ ठाकुरद्वारा मुरादाबाद ग्रामीण कुंदरकी मुरादाबाद नगर बिलारी चंदौसी असमोली संभल स्वार चमरौआ बिलासपुर रामपुर मिलक धनौरा नौगावां सादात

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

वूहान से तनाव मिटा, महाबलीपुरम से मिट सकती है तनाव की जड़

वूहान से तनाव मिटा, महाबलीपुरम से मिट सकती है तनाव की जड़

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर : bharat rajneeti
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में हां का मतलब होता है शायद और शायद के मायने हैं नहीं, क्योंकि वैश्विक कूटनीति की शब्दावली में नहीं शब्द है ही नहीं। इसलिए एसे वक्त में जब भारत और चीन न सिर्फ खुद कई तरह की आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से जूझ रहे हैं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी भारी उठापटक जारी है, तब दोनों देशों के शिखर नेताओं की अनौपचारिक बैठक बेहद अहम हो जाती है और उनके बीच होने वाली बातचीत भले ही वह अधिकृत रूप से सार्वजनिक न हो, लेकिन उसके एक एक शब्द के बेहद दूरगामी नतीजे निकल सकते हैं।

11 अक्तूबर से हो रही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अनौपचारिक शिखर वार्ता पर पूरी दुनिया की नजर है। मुमकिन है कि डोकलाम विवाद के बाद पैदा हुए तनाव को वूहान की अनौपचारिक शिखर बैठक ने दूर किया तो कश्मीर की बयानबाजी के बाद हो रही महाबलीपुरम की अनौपचारिक शिखर बैठक से तनाव की जड़ मिटाने का रास्ता निकल आए। पिछले करीब सत्तर वर्षों से जब भारत आजाद हुआ था और चीन की क्रांति पूरी हुई थी, एशिया के इन दोनों महादेशों के रिश्तों के उतार चढ़ाव से न सिर्फ एशिया बल्कि विश्व के देशों की नीतियां और रणनीतियां तय होती हैं और कूटनीतिक खेमेबंदी में उलटफेर हो जाता है। 

नेहरू युग में पंचशील और हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे ने अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो और तत्तकालीन सोवियत संघ के झंडे तले गठित वारसा संधि के देशों के बीच शीतयुद्ध के दौर में विकासशील देशों के एक तीसरे समूह की जरूरत महसूस कराई। हालांकि बाद में 1962 के युद्ध ने एशिया में अमेरिका के दखल और सोवियत संघ के दबदबे की नींव रखी और 1986 में जब लंबे समय बाद तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने चीन यात्रा करके चीन के तत्कालीन सर्वोच्च नेता तंग श्याओ फंग के साथ जो कूटनीतिक केमिस्ट्री बनाई उसने भारत चीन संबंधों का दरवाजा फिर खोला। 

तब से लगातार हर चीनी शिखर नेता और भारतीय प्रधानमंत्री ने लगातार दोनों देशों के के कूटनीतिक आर्थिक और सांस्कृतिक रिश्तों को बढाने में अहम भूमिका निभाई। राजीव के बाद नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और अब नरेंद्र मोदी हर भारतीय प्रधानमंत्री ने दोनों देशों के रिश्तों में कोई न कोई नया आयाम जोड़ा है। राजीव गांधी के समय दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को हल करने के लिए बनी सहमति को अमली जामा नरसिंह राव और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकारों ने पहनाया। 

जब सीमा विवाद के लिए गठित कार्यदल के बीच बातचीत के दौर एक तरफ तो दूसरी तरफ आर्थिक व्यापारिक वाणिज्यिक सांस्कृतिक तकनीकी सहयोग, निवेश आयात निर्यात और जन संपर्क आदि क्षेत्रों में सहयोग लगातार बढ़ता रहा। नतीजा आज भारत में चीनी कंपनियों का बढ़ता निवेश, भारतीय कंपनियों और व्यापारियों का चीन में कारोबार, दोनों देशों में पर्यटकों की लगातार बढ़ती संख्या, भारत में चीनी उत्पादों की भरमार, भारतीय फिल्मों की चीन में बढ़ती लोकप्रियता और चीनी खानपान के प्रति भारतीयों की बढ़ती रुचि के रूप में सामने है। 

अब जबकि भारत में नरेंद्र मोदी एक सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री के रूप में प्रचंड बहुमत की सरकार चला रहे हैं तो चीन में शी जिनपिंग पिछले सत्तर सालों में माओत्से तुंग के बाद दूसरे सबसे ताकतवर शिखर नेता हैं, जिनके हाथ में सत्ता के सारे सूत्रों की बागडोर है। इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि तमाम आर्थिक सामाजिक सांस्कृतिक तकनीकी सहयोग के अलावा अब उन मुद्दों पर भी दोनों देश कोई समाधान निकाल सकते हैं जो अक्सर इन दोनों के बीच कई बार अमन और सहयोग के रास्ते का रोड़ा बनने लगते हैं। 

हाल ही में बीजिंग में हुए भारत-चीन उच्च स्तरीय मीडिया फोरम में भाग लेने गए भारतीय प्रतिनिधि मंडल के साथ अनौपचारिक बातचीत में चीन के राजनयिकों ने कहा था कि चीन एशिया में और अपने पड़ोस में शांति चाहता है जिससे कि उसकी प्रगति निर्बाध रहे। 

एक चीनी राजनयिक का कहना था कि आप चाहे तो इसे चीन का स्वार्थ भी कह सकते हैं क्योंकि हमें अपनी जनता को बेहतर सुख सुविधाएं देनी हैं, सुखद जीवन देना है और देश को हर तरफ से सुरक्षित और समृद्ध करना है, जिसके लिए क्षेत्रीय शांति और स्थिरता पहली और अनिवार्य शर्त है। चीनी राजनयिकों का कहना था कि इसके लिए चीन न तो खुद किसी से उलझना चाहता है और न ही दो पड़ोसी देशों (उनका इशारा भारत और पाकिस्तान की तरफ था) के बीच किसी तरह का तनाव या सामरिक संघर्ष होते देखना चाहता है।

चीन की मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग के साथ भारत चीन सीमा विवाद को लेकर चर्चा के दौरान आम राय दिखी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कार्यकाल में इस दिशा में सार्थक और सकारात्मक प्रगति हो सकती है। चीन का आम जन मानस भी मानता है कि मोदी जिस तरह का जोखिम भरा फैसला ले सकते हैं, पिछली सरकारों के पास न उतना जन समर्थन था और न ही उनकी इच्छाशक्ति थी। एलओसी और पाकिस्तानी सीमा में आतंकवादी शिविरों पर हमले और जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 में संशोधन के बड़े फैसलों के बाद मोदी की साहसिक निर्णय लेने वाली इस छवि में और इजाफा हुआ है। 

वहीं राष्ट्रपति शी ने जिस तरह अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध में दो-दो हाथ कर रखे हैं और दक्षिण चीन सागर हो या हांगकांग और ताईवान का मुद्दा उनके कड़े रुख से उनकी प्रखर राष्ट्रवादी छवि हर चीनी के मन में है। दोनों नेताओं के बीच जिस तरह की समझदारी दोकलम विवाद के समय दिखी और जिस तरह वूहान की अनौपचारिक बैठक से न सिर्फ दोनों देशों के बीच बना युद्धोन्माद और तनाव खत्म हुआ बल्कि सहयोग के नए रास्ते भी निकले। चेन्नई के महाबलीपुरम की दूसरी अनौपचारिक बैठक वूहान मे बनी कूटनीतिक समझदारी का अगला अध्याय है। 

एक दूसरे की पूंछ दबाने के लिए भी दोनों देशों के पास पर्याप्त मुद्दे हैं। चीन के पास अगर कश्मीर का मुद्दा है तो भारत के पास हांगकांग है। चीन अगर पाकिस्तान की पीठ सहलाता है तो भारत के पास रूस और अमेरिका का भी विकल्प है। प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति इस मामले में बेहद सफल मानी जा सकती है कि भारत ने बिना किसी को नाराज किए सबको साधने में सफलता पाई है। इसलिए कश्मीर पर चीन का पाकिस्तान परस्त रुख और एनएसजी में भारत के प्रवेश पर वीटो के बावजूद चीन एक सीमा से आगे भारत के खिलाफ नहीं जा सकता। 

चीनी कंपनियों के भारत में व्यापक निवेश और भारत के बाजार में चीनी माल की मांग उसे भारत के साथ दोस्ताना रिश्तों के लिए मजबूर भी करती हैं। अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध के बाद चीन पर भारत को साधे रखने का दबाव और बढ गया है। 

इस स्थिति का फायदा भारत उठा सकता है। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी टीम इसे समझ रही है और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जिस तरह कश्मीर को लेकर चीन के सामने भारत के पक्ष को मजबूती से रखा उससे भी चीन को समझ आ गया है कि भारत का पक्ष कितना मजबूत है। इसलिए उम्मीद है कि अगर वूहान बैठक से तनाव दूर करने में कामयाबी मिली तो महाबलीपुरम बैठक से संभव है कि तनाव के मुद्दों की जड़ पर मट्ठा डालने की शुरुआत हो सके।

Loan calculator for Instant Online Loan, Home Loan, Personal Loan, Credit Card Loan, Education loan

Loan Calculator

Amount
Interest Rate
Tenure (in months)

Loan EMI

123

Total Interest Payable

1234

Total Amount

12345