राहुल के बाद अब भाजपा की नजरें सोनिया के किले पर, शुरू की रायबरेली फतह की तैयारी
भाजपा ने अमेठी का कांग्रेसी किला फतह करने के बाद उसके दूसरे गढ़ रायबरेली पर भी भगवा फहराने के लिए गोटें बिछानी शुरू कर दी हैं। जिस तरह रायबरेली से कांग्रेस के दोनों विधायक अदिति सिंह और राकेश सिंह भाजपा के साथ खड़े दिख रहे हैं, उससे यह बात साफ दिखने लगी है। यह तो वक्त बताएगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली का नतीजा क्या रहेगा, लेकिन आज की परिस्थितियों से यही लग रहा है कि रायबरेली को कांग्रेस मुक्त करने की रणनीति परवान चढ़ रही है।
नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने अपनी रणनीति बदली है। अब वह हर दिन चुनाव को ही सामने रखकर काम करती है। इसे शाह कई बार खुलकर भी कह चुके हैं कि राजनीतिक दलों का अभीष्ट चुनाव ही होता है, इसलिए भाजपा अन्य कामों के साथ लगातार चुनावी जमीन मजबूत करने पर भी काम करती है।
याद होगा कि भाजपा ने अमेठी का किला फतह करने और राहुल गांधी का उत्तर प्रदेश से लोकसभा जाने का रास्ता रोकने के लिए किस तरह गोटें बिछाई थीं। पहले केंद्र से स्मृति ईरानी के रूप में एक बड़े चेहरे को लेकर आई और उन्हें अमेठी में चुनाव लड़ाया। एक चुनाव हारने के बाद भी स्मृति को लगातार अमेठी में सक्रिय रखा गया।
सरकार बनी तो सरकारी कामों के सहारे और स्मृति को अमेठी के गांव-गली तथा खेत व खलिहान तक पहुंचाकर यह संदेश देने की कोशिश की गई कि भाजपा न सिर्फ अमेठी के विकास को और आगे बढ़ाएगी बल्कि स्थानीय सरोकारों का कांग्रेस से ज्यादा ध्यान रखेगी। भाजपा को इसका लाभ भी हुआ और 2019 में उसने राहुल को शिकस्त देकर अमेठी का किला फतह कर लिया।
नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने अपनी रणनीति बदली है। अब वह हर दिन चुनाव को ही सामने रखकर काम करती है। इसे शाह कई बार खुलकर भी कह चुके हैं कि राजनीतिक दलों का अभीष्ट चुनाव ही होता है, इसलिए भाजपा अन्य कामों के साथ लगातार चुनावी जमीन मजबूत करने पर भी काम करती है।
याद होगा कि भाजपा ने अमेठी का किला फतह करने और राहुल गांधी का उत्तर प्रदेश से लोकसभा जाने का रास्ता रोकने के लिए किस तरह गोटें बिछाई थीं। पहले केंद्र से स्मृति ईरानी के रूप में एक बड़े चेहरे को लेकर आई और उन्हें अमेठी में चुनाव लड़ाया। एक चुनाव हारने के बाद भी स्मृति को लगातार अमेठी में सक्रिय रखा गया।
सरकार बनी तो सरकारी कामों के सहारे और स्मृति को अमेठी के गांव-गली तथा खेत व खलिहान तक पहुंचाकर यह संदेश देने की कोशिश की गई कि भाजपा न सिर्फ अमेठी के विकास को और आगे बढ़ाएगी बल्कि स्थानीय सरोकारों का कांग्रेस से ज्यादा ध्यान रखेगी। भाजपा को इसका लाभ भी हुआ और 2019 में उसने राहुल को शिकस्त देकर अमेठी का किला फतह कर लिया।
रायबरेली में इस तरह कोशिश
अमेठी की तरह रायबरेली में भी चुनाव हारने के बावजूद भाजपा ने लगातार सक्रियता बनाए रखी है। न सिर्फ रायबरेली के विकास की चिंता करने का संदेश दिया बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने रायबरेली में सभाएं कीं और विकास योजनाओं की शुरुआत करके लोगों को बताने की कोशिश की कि चुनाव हारने के बावजूद उन्हें रायबरेली की चिंता है।
पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री और बड़े चेहरे अरुण जेटली को उत्तर प्रदेश से राज्यसभा भेजने और उनसे रायबरेली को नोडल जिला बनवाकर यहां के लोगों में भाजपा का भरोसा भरने की कोशिश की। हालांकि जेटली की अब मृत्यु हो चुकी है लेकिन भाजपा से संकेत मिल रहे हैं कि वह जल्द ही किसी न किसी राज्यसभा सदस्य को फिर रायबरेली सौंपकर इस भरोसे को और मजबूत करने की कोशिश करेगी।
पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री और बड़े चेहरे अरुण जेटली को उत्तर प्रदेश से राज्यसभा भेजने और उनसे रायबरेली को नोडल जिला बनवाकर यहां के लोगों में भाजपा का भरोसा भरने की कोशिश की। हालांकि जेटली की अब मृत्यु हो चुकी है लेकिन भाजपा से संकेत मिल रहे हैं कि वह जल्द ही किसी न किसी राज्यसभा सदस्य को फिर रायबरेली सौंपकर इस भरोसे को और मजबूत करने की कोशिश करेगी।
कुछ कहते हैं ये समीकरण
इस समय रायबरेली से कांग्रेस के दो विधायक सदर से अदिति सिंह और हरचंदपुर से राकेश सिंह हैं। विधान परिषद में दो एमएलसी में एक दिनेश सिंह भी रायबरेली के हैं। इन तीनों के ही सोनिया गांधी के साथ काफी घनिष्ठ रिश्ते रहे। दिनेश सिंह हरचंदपुर से कांग्रेस विधायक के भाई भी हैं।
दिनेश पहले ही भाजपा में शामिल होकर इस बार सोनिया के खिलाफ लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। राकेश सिंह भी व्यावहारिक रूप से अब भाजपा के साथ दिख रहे हैं। बची थीं अदिति सिंह तो उन्होंने भी अपना इरादा जता दिया। सरकार का भी उन्हें वाई प्लस श्रेणी की सुरक्षा देना भाजपा से उनके गाढे़ होते रिश्तों का ही संकेत है।
ऊपर से कांग्रेस ने जिस तरह शुक्रवार को यहां अदिति सिंह और भाजपा के रिश्तों को लेकर बयान जारी किया, उसने भी साफ कर दिया कि अदिति भी अब उनके साथ सिर्फ तकनीकी रूप से ही रह गई हैं। जाहिर है कि भाजपा ने एक तरह से रायबरेली जैसे कांग्रेसी गढ़ से ही विधानमंडल सदन में कांग्रेस का व्यावहारिक तौर पर प्रतिनिधित्व खत्म कर दिया है। रायबरेली जैसे कांग्रेसी गढ़ में यह कामयाबी भाजपा का हौसला बढ़ाने वाली है।
दिनेश पहले ही भाजपा में शामिल होकर इस बार सोनिया के खिलाफ लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। राकेश सिंह भी व्यावहारिक रूप से अब भाजपा के साथ दिख रहे हैं। बची थीं अदिति सिंह तो उन्होंने भी अपना इरादा जता दिया। सरकार का भी उन्हें वाई प्लस श्रेणी की सुरक्षा देना भाजपा से उनके गाढे़ होते रिश्तों का ही संकेत है।
ऊपर से कांग्रेस ने जिस तरह शुक्रवार को यहां अदिति सिंह और भाजपा के रिश्तों को लेकर बयान जारी किया, उसने भी साफ कर दिया कि अदिति भी अब उनके साथ सिर्फ तकनीकी रूप से ही रह गई हैं। जाहिर है कि भाजपा ने एक तरह से रायबरेली जैसे कांग्रेसी गढ़ से ही विधानमंडल सदन में कांग्रेस का व्यावहारिक तौर पर प्रतिनिधित्व खत्म कर दिया है। रायबरेली जैसे कांग्रेसी गढ़ में यह कामयाबी भाजपा का हौसला बढ़ाने वाली है।