शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के सपने को उद्धव ठाकरे साकार करने जा रहे हैं. वह आज शाम शिवाजी पार्क में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. सत्ता के सिंहासन पर काबिज होने से पहले शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा था कि मुख्यमंत्री की कुर्सी में बहुत कीलें होती हैं.
- शिवसेना प्रमुख के सिर सजेगा कांटों भरा ताज
- उद्धव को कई चुनौतियों का करना होगा सामना
शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के सपने को उद्धव ठाकरे साकार करने जा रहे हैं. वह आज शाम शिवाजी पार्क में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. सत्ता के सिंहासन पर काबिज होने से पहले शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा था कि मुख्यमंत्री की कुर्सी में बहुत कीलें होती हैं.
इससे साफ जाहिर है कि उद्धव ठाकरे के सिर मुख्यमंत्री का ताज कांटों भरा है. उद्धव भले ही कुर्सी के लिए बीजेपी से नाता तोड़कर कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार बनाने जा रहे हों, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं है. ऐसे में सवाल है कि उद्धव ठाकरे जिसे कीलों वाली कुर्सी बता रहे हैं, उस पर कितनी देर तक टिक पाएंगे?
सहयोगी दलों के साथ सामंजस्य
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने सहयोगी कांग्रेस और एनसीपी के साथ सामंजस्य बनाकर चलने की होगी. शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी तीनों दलों की अपनी-अपनी विचाराधार और राजनीतिक एजेंडे हैं. तीनों पार्टियां विचारधारा और संस्कृति के मामले में एकदूसरे से बिलकुल अलग हैं.
चुनाव के बाद सत्ता के लिए बने गठबंधन का ट्रैक रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है. इसीलिए बीजेपी से लेकर राजनीतिक पंडित तक उद्धव ठाकरे सरकार को दूर का सफर तय करते नहीं देख रहे हैं. हालांकि शिवसेना के नेता कह रहे हैं कि यह गठबंधन पांच साल के लिए नहीं बल्कि 25 से 30 साल के लिए बना है.
हिंदुत्व छवि को बरकार रखना
शिवसेना शुरू से ही कट्टर हिंदुत्व की छवि को लेकर आगे चली है. उद्धव ठाकरे ने सावरकर को भारत रत्न देने की भी मांग की थी. इतना ही नहीं अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन में उन्होंने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था. शिवसेना छत्रपति शिवाजी महाराज को अपनी राजनीति का आदर्श मानती है. ऐसे में सवाल है कि शिवसेना ने सत्ता के लिए कांग्रेस और एनसीपी जैसे दलों के साथ हाथ मिलाया है. ऐसे में बीजेपी लगातार सवाल खड़ी कर रही है कि शिवसेना ने हिंदुत्व की राजनीति से समझौता कर लिया है. हालांकि उद्धव ठाकरे ने मंगलवार को कहा कि हमारी हिंदुत्व की विचारधार कायम रहेगी. अब देखना है कि इस पर वो कितना बरकरार रहते हैं
केंद्र से किस तरह बैठाएंगे तालमेल
उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद के लिए बीजेपी से 25 साल पुराना नाता तोड़ा है. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार केंद्र में है. उद्धव ठाकरे ने बीजेपी को लेकर जिस तरह से तेवर अख्तियार कर रखा है, ऐसे में केंद्र के साथ तालमेल बैठाने की बड़ी चुनौती होगी. इसके अलावा शिवसेना के सामने बीजेपी जैसा मजबूत विपक्ष है, जिसे साधकर चलना भी उद्धव के लिए आसान नहीं होगा.
क्षत्रप वर्चस्व कायम रखने की चुनौती
महाराष्ट्र में कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां शिवसेना और एनसीपी एकदूसरे के धुर-विरोधी के तौर पर स्थापित हैं. ऐसे में किसी भी एक पार्टी को दूसरे को नुकसान पहुंचाकर ही उन इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत करनी होगी. इस बार के विधानसभा चुनाव में 57 सीटों पर शिवसेना और एनसीपी का सीधा मुकाबला था. एनसीपी प्रमुख शरद पवार अच्छी तरह से जानते हैं कि उनकी पार्टी को मिले वोटों में बड़ा हिस्सा सत्ता-विरोधी मतों का था. इसमें भी कुछ हिस्सा शिवसेना के विरोध के कारण एनसीपी की झोली में गिरा था.
किसान से लेकर इन मुद्दे पर खींचतान
उद्धव अगले पांच साल के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने जा रहे हैं लेकिन इस बार कई चुनौतियां हैं. सबसे पहली चुनौती तो होगी मराठा युवाओं को रोज़गार देना. राज्य में बेरोज़गारी की समस्या से निपटना होगा. सरकार को राज्य में आर्थिक सुस्ती से भी जूझना होगा. इसके अलावा सबसे बड़ी चुनौती किसानों के बीच विश्वास पैदा करने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. इन सब पर अगले पांच साल में उन्हें नतीजे देने होंगे.